STORYMIRROR

Husan Ara

Children Inspirational

5.0  

Husan Ara

Children Inspirational

एहसास

एहसास

4 mins
434


"माँ आपने शीतल की मम्मी को क्यों बताया कि मैं वहाँ आ रही हूं?" सिम्मी बहुत ही शिकायत भरे लहजे में बोली रही थी।

"बेटा वो सब कितना प्यार करते हैं तुमसे, और कितना खुश हुईं वो ये सुन कर की तुम्हारे एग्जाम का सेंटर उनके शहर में लगा है।" माँ ने समझाते हुए कहा था।

"मैं उनके यहाँ नहीं रुकना चाहती। आप तो जानती हैं कि उनका घर कितना छोटा है। माँ प्लीज मुझे निशु के घर रुकना है वहाँ.. आपको पता है उसका तो अलग कमरा है, और अपना कंप्यूटर भी। कुछ दिन की ही तो बात है क्या पता फिर कब मौका मिले वहां रहने का।" अपनी मम्मी को मनाने के अंदाज में वह बोले जा रही थी।

माँ को उसकी यह बात कुछ पसंद तो नहीं आई मगर उसकी खुशी की ख़ातिर उन्होंने पिता से कहकर निशु के यहाँ छोड़ आने को कह दिया। मगर साथ ही यह भी कहा था कि वापिस लौटने से पहले शीतल के घरवालों से भी मिलती आए।



पापा सुबह की ट्रेन से सिम्मी को वहाँ छोड़ आए थे


"कितने एग्जाम हैं? " यह था पहला प्रश्न जो निशु की दीदी ने सिम्मी से पूछा था उसके वहां जाने पर ।

"जी दो" वह इतना ही बोल पाई थी।


वहां सब अपने अपने कामों में व्यस्त थे किसी ने ठीक से पानी को भी नहीं पूछा था। आंटी अपनी सहेलियों से बातचीत में व्यस्त थी तो रिद्धि दीदी मोबाईल में। निशु अपना प्रोजेक्ट बनाने की बात कहकर घण्टो से कमरे में बन्द थी।

इतना बड़ा घर होने के बाद भी आंटी इस टेंशन में थी कि सिम्मी आज रात सोयेगी कहाँ? गेस्ट रूम की सफाई करने से काम वाली ने मना कर दिया था, रिद्धि दीदी तो किसी के साथ एडजस्ट करने की बात पर वहाँ से उठकर जा चुकी थीं।

"मैं निशु के कमरे में सो जाऊँगी।" सिम्मी कुछ सोचते हुए बोली थी।

निशु ने इस बात पर अपनी मम्मा को देख कर बुरा सा मुंह भी बनाया। लेकिन आंटी के कहने पर कि कल के लिए वो कुछ और इंतज़ाम कर लेंगी, सिम्मी निशु के कमरे में आ गई थी।


"देखो अपना ये बैग बाहर रख कर आओ, मेरा रूम पूरी तरह सेट है, यहां प्रॉब्लम होगी "आदेश के अंदाज़ में निशु बोली थी।

सिम्मी अपने बैग से अपनी किताबें ले आई थी जिसका कल एग्जाम था। मगर निशु के कमरे में बजते फुल वोल्यूम म्यूज़िक के कारण, वह पढ़ नहीं पा रही थी।

"तुम तैयारी कर के नहीं आई क्या "निशु ने चिढ़ते हुए पूछा।

"नहीं पूरे साल कितना ही पढ़ लो बस फाइनल रिविज़न तो एक रात पहले ही होता है" मुस्कुराते हुए सिम्मी बोल पड़ी थी।

मगर निशु बिना ध्यान दिए बल्ब बन्द कर के लेट गई। सिम्मी की आँखों में अब आँसू आ गए थे। उसे मम्मी की बहुत याद आ रही थी। यहां उसे कुछ भी अच्छा नही लग रहा था ,

माँ तो हर एग्जाम से पहले की रात कभी सिम्मी को बादाम दूध बनाकर देतीं कभी कॉफ़ी। मगर उसे लगा कि चलो एग्जाम तो दोपहर 2 बजे से शुरू है, सुबह पढ़ लेगी।


मगर सुबह तो घर मे अलग ही माहौल था अभी 8 ही बजे थे और आंटी ने सिम्मी को कहना शुरू कर दिया था कि जाओ तुम्हारे अंकल उसी साइड से ऑफ़िस जाते हैं, जहाँ तुम्हारा कॉलेज है।

"पर आंटी पेपर में तो बहुत टाइम है अभी" वह बोली।

"अरे तो वहाँ तो सभी होंगे ना। देखो कॉलेज दूर है, फिर कौन जाएगा तुम्हें छोड़ने।" आंटी अड़ी हुईं थीं।

सिम्मी अंकल के साथ कॉलेज चली गई।


सिम्मी कॉलेज की सीढ़ियों पर बैठी थी उसने माँ को फ़ोन करके सब बता दिया था। थोड़ी ही देर बाद एक बड़े भईया ने आकर उससे पूछा "तुम सिम्मी हो ना"।

अरे ये तो विशाल भईया थे, शीतल के बड़े भाई

तुम्हारी मम्मी ने बताया कि बहुत टाइम है पेपर में अभी, तो शीतल जो कब से तुमसे मिलने को बेचैन बैठी है लड़ने लगी मुझसे, कि लेकर आओ, मैं पक्का एक बजे तक कॉलेज वापिस ले आऊंगा , चलो गुड़िया प्लीज वरना वो शीतल की बच्ची मुझे मार डालेगी।"


मम्मी से जाने की बात पूछ कर सिम्मी शीतल के घर पहुंच गई थी।

घर मे आते ही शीतल की माँ ने उसे गले लगा लिया था। उसके लिए शीतल ने ना जाने क्या क्या मंगवा रखा था । उसकी छोटी बहन जल्दी से चाय बना लाई थी।

भूख तो सिम्मी को लग ही रही थी, मगर उन सबके प्यार ने उस खाने का स्वाद और बढ़ा दिया था।

"देखो बहुत बातें हो गई, अब कुछ देर गुड़िया को तैयारी करने दो फिर पेपर के बाद और मस्ती करना" विशाल भईया ने समझाते हुए कहा था।


सिम्मी तो इस सब मे पेपर के बारे में जैसे भूल ही गई थी।


शीतल ने उसकी पढ़ाई में मदद की। आंटी कभी आकर उसके सिर पर हाथ रखतीं, कभी पानी देती तो कभी कॉफ़ी बनाती। हँसते बतियाते उनकी पढ़ाई भी चल रही थी और मस्ती मज़ाक भी।


कुछ देर बाद वह पेपर देने चली गई।

पेपर के बाद सिम्मी कॉलेज के बाहर आई तो देखा कि विशाल भईया बाहर ही खड़े थे। उसने माँ से फ़ोन करके पूछा कि "मैं शीतल के पास रुकना चाहती हूँ, क्या आप मेरे समान का बैग वहीं भिजवाने को कह देंगी?


"हाँ ज़रूर ,तुम बेफिक्र होकर जाओ। " माँ की आवाज़ में खुशी थी।


"माँ शीतल का घर छोटा भले ही है मगर वहाँ बहुत प्यार और सम्मान है।" सिम्मी इतना ही बोल पाई थी।


माँ को सिम्मी के फैसले से खुशी थी।

यही तो वह एहसास था, जो वह सिम्मी को कराना चाहती थीं कि बड़ा घर, बड़ा पैसा होने से कुछ नहीं होता! ज़रूरी यह है कि बड़ा दिल किसका है।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Children