Rashi Singh

Drama Tragedy

1.7  

Rashi Singh

Drama Tragedy

दूर के ढोल सुहावने

दूर के ढोल सुहावने

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सुहानी आज बहुत खुश थी क्योंकि उसके पति विक्रम का तबादला उसके शहर यानी मायके में ही हो गया था। दो छोटे छोटे बच्चे, जिनकी वजह से उसने अपनी अच्छी खासी नौकरी छोड़ दी थी, क्योंकि सास-ससुर, देवर के साथ दूसरे शहर में रह रहे थे, उनका साथ रहना मुमकिन नहीं था और बच्चों को वह आया के ऊपर छोड़ नहीं सकती थी।

"अब कम से कम बच्चों को माँ के पास तो छोड़ दिया करूँगी, वहीं आस -पास घर ले लेंगे।" सुहानी ने पति से खुशी से उछलते हुए कहा।

"देख लेना। " विक्रम ने गंभीरता से कहा।

"हेलो भाभी !"

"हाँ ....दीदी हेलो कैसी हो।"

"अच्छी हूँ ...और भाभी आप हमेशा कहती रहती थीं कि मैं मायके नहीं आती, मायके नहीं आती, अब संभल जाओ, परमानेंट आ रही हूँ रहने के लिए।"

"आ जाओ, आ जाओ, नन्दोई जी भेजेंगे क्या तुमको ?" भाभी ने जोर का ठहाका लगाते हुए कहा।

"नहीं ...बिल्कुल नहीं ...मगर अब यह भी आ रहे हैं।"

"मतलब ?"

"मतलब यह है कि इनका तबादला वहीं हो गया है, तो वहीं आ रहे हैं हम सब।"

"अच्छा..।" अब भाभी के स्वर में उदासी आ चुकी थी।

"विक्रम तो कह रहे थे कि पहले घर देख लेते हैं फिर चलेंगे मगर मैंने कहा कि आप घर देखते रहना मेरा घर तो है।" सुहानी अपनी लय में हँसते हुए कहे जा रही थी। भाभी चुपचाप सुन रही थी मानों साँप सूँघ गया हो।

"एक मिनट सुहानी दीदी, तुम्हारे भैया ऑफिस जा रहे हैं उनका लंच दे दूँ ..और यह खुशखबरी भी सुना दूँ।" कहकर भाभी ने फोन रख दिया।

"हो गयी बात ननद-भाभी की उधर से आवाज आई।

"हाँ, हो गयी ..इंतजाम कर लो परमानेंट रहने के लिए आ रही है तुम्हारी बहन, बच्चे और उनके पति देव।" भाभी ने क्रोध भरे स्वर में कहा।

"अरे, मैं तो मना करता था कि ज्यादा बात मत किया करो। तुम्हीं कहती रहती थी कि दीदी आ जाओ, आ जाओ ...अब भुगतो", भैया ने गुस्से से कहा।

"सुनो जी कहीं तुम्हारी बहिन घर में हिस्सा न माँग ले ?" भाभी ने चिंतित स्वर में कहा।"

घर को मारो गोली तुमको काम न करना पडेगा !" भैया ने धम्म से कुर्सी पर बैठते हुए कहा।

सुनकर सुहानी की आँखों में आँसू आ गए उसने फोन पर सारी बातें सुन ली थीं क्योंकि भाभी ने फोन काटा ही नहीं था।

विक्रम पत्नी की मनोदशा समझ चुके थे।

"सुहानी..पहले घर देख लेते हैं। उस में शिफ्ट करने के बाद तुम दो-चार दिन के लिए अपने मायके चली जाना।"

"जी" कहते हुए सुहानी ने अपनी आँखों में आये आँसुओं को पी लिया।


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