दुनिया में बहुत कुछ है करने को
दुनिया में बहुत कुछ है करने को
मुझे याद है कि २००७ से मैं लिख रही हूँ, जो उस वक़्त मेरा पेशा हुआ करता था। लोग मेरी कविताओं को सुनने के लिए बेताब रहते थे। उस वक़्त एक अलग ही जुनून था पर जब दुबारा ये मौका मिला तो मैंने एक माँ को मैं का सफर तय करने के लिए प्रेरित किया।
शब्दों से मेरा गहरा नाता शायद सिर्फ मेरी रुचि नहीं बल्कि मेरे पिता से मिला वो गुण है जो मेरी विरासत है। मेरे पिता आकाशवाणी में बहुत ही अच्छे कवि थे, उनकी कहानियाँ उस वक़्त अख़बारों में आती थी। ये गुण शायद मुझ में वहीं से आया। मैंने फिर से अपने आप को जगाया और आत्मविश्वास दिलाया कि "दुनिया में बहुत कुछ है करने को, बस अपने जुनून को रखो..."