दुख:
दुख:
आज एक अपरिचित महिला से मुलाकात हुई। वैसे तो एक साल पहले भी उन्हें देखा था, वह अपनी बेटी-दामाद के घर आयी हुई थी। उस समय, उनसे ना हाय- हैलो हुआ, न ही बातचित हुई थी। क्यों कि बेटी-दामाद उन्हे रोज कही ना कही घुमाने ले जाते थें। हम लोग भी अपने काम मे व्यस्त रहते थे। इस साल भी वह अपनी बेटी-दामाद के घर आयी हुई हैं।
कोरोना वायरस ने आज पुरी दुनिया को हिलाकर रख दिया हैं। जिदंगी मानो थम सी गयी हैं, हर एक मनुष्य के चेहरे पर डर और उदासी छायी हुई हैं। इसी वैश्विक महामारी के चलते आज इन्सान अपने घर मे पिजंरे के पंछी जैसा कैद हो गया हैं। इसी कारण हम लोग भी अपनी बालकनी मे सुबह- श्याम टहलते हैं। ऐसे मे वो महिला भी अपनी बालकनी मे टहलते हुये दिखती हैं, हाय - हैलो हो जाती हैं । सोशल डिस्टेंस की वजह से ज्यादा बात नही हो पाती।
आज अचानक ही, मुझे देखते हुये बोल पडी कि, "महाराष्ट्र मे खास करके मुम्बई मे कोरोना बहुत ही तेजी से फैल रहा है।" ये बात वह मुझसे इसीलिए साँझा कर रही थी, क्यों कि उसे पता था हम लोग "महाराष्ट्रीयन" हैं। बातो बातो मे कहने लगी, हम लोग भी पहले मुंबई में चेम्बुर मे रहते थे, बेटी उस समय छोटी थी। मुंबई का नाम सुनकर उसने प्रति मेरे मन मे अपनापन जाग गया। बातो का सिलसिला चल पडा, सवाल -जवाब चलते रहे। मैं आज उसके चेहरे की उदासी पढ़ने की कोशिश कर रही थी, न माँग मे सिदुंर न माथे पर टिका ।
उसने कहा," मेरे पति सरकारी कर्मचारी थे, उनका देहांत हो गया और पिताजी की नोकरी बेटे को मिली" , मैंने पुछ लिया " तब तो बेटा मुंबई मे होगा?" उस महिला ने जवाब दिया, " नही, अब वह इस दुनिया मे नही हैं, डेढ़ साल पहले बोन टी.बी. के कारण उसका देहांत हुआ, बेटे-बहु के सम्बन्ध अच्छे नही चल रहे थे, इसी के कारण दोनो का तलाक होने वाला था। एक पोती है नौ साल की, तलाक के पहले ही बेटा चल बसा, सारा पैसा भी बहु को ही मिला, ओर नोकरी भी मिलने वाली हैं, वो अपने मायके मे ही रह रही थी, मैं अकेली ही रहती हुँ अपने गाँव मे, कभी-कभी बेटी के पास आ जाती हुँ। बेटी-दामाद तो मुझे कहते हैं कि यही रहो, लेकिन मुझे यहा अच्छा नही लगता। बीच-बीच आते जाते रहती हुँ।" मैंने उसकी आप बिती सुन के अपना दुख: व्यक्त किया, उसने कहा, " मैंने अपना दुख: आपको बताया मेरे मन का बोझ कम हो गया, सुख: की बाते तो सभी करते हैं। लेकिन दुख: की बाते कोई नही करता।" और कहने लगी, रोज जब अखबार पढ़ती हुँ, "कि दंगे मे किसी ऑफिसर को मार दिया या कोई पुलिस कर्मचारी अपनी डयुटी निभाते हुये शहीद हुये, जिनके छोटे छोटे बच्चे हैं" , तब मुझे मेरा दुख: बहुत ही कम लगता हैं। आज मैंने उनके चेहरे की उदासी के पिछे के दर्द का राज जाना।