Vibha Patil

Children Stories

4.8  

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सहेली

सहेली

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नन्ही सी मैथिली के लिए वह बिल्कुल नया दिन था,नए स्कूल का पहला दिन।सब कुछ नया नया था।नये शहर में नया स्कूल और हर तरफ नये और सारे अजनबी चेहरे।

मैथिली मेरी बेटी है।ये सारी बातें तब की है,जब हमारा ट्रांसफर मुम्बई से दिल्ली हुआ था और फिर उसकी यह पहले दिन की सारी बातें।स्कूल से आते ही पहले दिन ही मेरे सवालो की झडी लग गयी, मैंने पुछा, "आज क्या हुआ स्कूल में? वह बोली, "कुछ भी नही।"वह चुपचाप बस देखे जा रही थी।फिर थोडी देर के बाद उसने बोलना शुरु किया, "मेरी तो कोई सहेली नही है। मै अकेली हुँ और आज किसी ने मुझसे कोई भी बात नही की क्योंकि सबकी पहले से ही अपने अपने फ्रेंड्स है।मम्मी आज मैंने लंच ब्रेक मे पेड के नीचे बैठकर अकेले खाना खाया।" उसके मासुम चेहरे के पिछे कितना दर्द था,सब उसकी बातो से साफ झलक रहा था। थोडी देर रूक कर फिर से कहने लगी, "मम्मी, फिर थोड़ी देर के बाद क्लास की एक लडकी मेरे पास आयी। आकर उसने मुझे पूछा कि खाना खाया क्या? और थोडी सी बात करके वो भी अपनी सहेलियो के पास चली गयी। लेकिन मम्मी मुझे वह उसकी बात भा गयी। किसी ने तो मुझसे मेरा हाल पूछा। वह लड़की उसकी पहली सहेली बन गयी इस नये शहर में।"

समय का पहिया गतीमान है, वह कभी रुकता नही,बस चलते जाता है।उनकी दोस्ती कभी भी नही टूटी। हर साल दोनो के क्लास बदलते गये, लेकिन स्कूल के अंतिम साल मे फिर से दोनो एक ही क्लास मे आ गयी।

आज यह सब लिखने का मन हुआ क्योंकि कल मैथिली की स्कूल का आखरी दिन है।और यह जर्नी सिर्फ़ मैथिली की नही है, एक माँ के रूप में मेरी भी रही है। उसको बढ़ते देखना,अपने आसपास के लोगों के लिए उसका कंसर्न और केयरिंग स्वभाव।

उस पहले दिन की छोटी सी बात ने कितनी बड़ी बात कर दी।आज भी दोनो एक दुसरे की अच्छी और सच्ची सहेलिय़ा हैं।


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