दुआऐं
दुआऐं
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दरवाजे पर हुई दस्तक, कौन उठे और देखे । दोनो ने एक-दूसरे को प्रश्न भरी नजरों से देखा ।
अब तक दरवाजे पर थपथपाहट शुरू हो चुकी थी । रमा तेजी से उठी और दरवाजा खोला, किन्नरों की मंडली थी, पोता होने की बधाई देने और अपने हिस्से का नेग लेने ।
"बधाई हो अम्मा जी, पोते को लाओ आशीर्वाद दे दें । कपड़ो के साथ एक सोने की अंगूठी और एक्यावन हजार रुपए, इससे कम न लूंगी हाँ !" और उनका ढोलक बजाना और नाचना गाना शुरू । बेटा अमरीका में नौकरी करता है सो अधिक सम्पन्न श्रेणी में तो सामाजिक तौर पर हम स्वाभाविक रूप से आ ही गये, इनकी मांग भी उसी के अनुरूप ही है ।
सुबह-सुबह न ही इसकी कोई उम्मीद थी, न ही इसके लिये रमा तैयार थी । पर मन ही मन खुश थी ये सोच कर कि इनका आशीर्वाद तो शुभ होता है । दरवाजा बंद कर अंदर आई तो पतिदेव ने अलसाई करवट के साथ पूछा, "कौन था ?"
"अरे वो किन्नरों की मंडली है, पोते का नेग लेने आए हैं ।"
"देखो कुछ भी न देना, जब पोता यहाँ है ही नहीं तो कैसा नेग ?" खिजलाये हुए रोहित ने रमा से कहा ।
"अरे उनका बनता है, मैंने निकाल कर रखा है, दे देते हैं, दुआऐं ही देंगे ।" रमा अपनी धुन में मुस्कुराती हुई अलमारी की ओर चल दी ।
रोहित ने जल्दी से चप्पल पहनी और दरवाजे पर, "अरे जाओ बेटा यहाँ हल्ला मत करो । कैसा नेग ? क्यों दे हम नेग ? न पोता यहाँ है न ही आया, जहाँ है वहाँ जाओ, वहीं से नेग ले लो ।" आँखें डबडबा गई, जो कुछ कहने से बचा, वो आँखों में पढ़कर, सब किन्नर एक दूसरे के चेहरे देखने लगे । अचानक ही ढोल की थाप बंद, सब चुप हो गये । 'वो बैठे हैं विदेश में, हम यहाँ बेमतलब खुश हो ले और नेग बांटते रहें' रोहित धीरे से बड़बड़ाया ।
रमा हाथ में पैसे और एक पैकेट में कपड़े लेकर आ गई, "चुप क्यों हो गये, खूब जोर से गाओ-नाचो, हम बूढ़ा-बूढ़ी तो अच्छे से खुशी का इजहार भी न कर पाये । ढोल बजाओ, और तो और घर की दीवारों को भी तो पता चले, हमारे घर खुशियाँ आई हैं ।" रोहित की ओर देख बोल पड़ी, "जरा बच्चों को वीडियो कॉल मिला दीजिये, पोते को इनसे आशीर्वाद तो दिलवा दें ।" किन्नरों की टोली झूमकर नाचने गाने लगी, कोई तो है जिसे हमारी दुआओं की जरूरत है ।