दु:ख में आधार, मेरा परिवार
दु:ख में आधार, मेरा परिवार
वह बरसात की एक शाम थी। दीनानाथ की पत्नी गौरी घर के दरवाजे पर बैठी उसका इंतजार कर रही थीं। दीनानाथ पासही के एक गांव में एक फैक्ट्री में मजदूर के रूप में काम करता था। दीनानाथ, उसकी पत्नी गौरी, उनका बेटा नामदेव और बेटी पार्वती डोंगरगांव में रहते थे। दीनानाथ के पैतृक गांव में कुछ खेती थी। उनके बड़े भाई रामनाथ खेती की देखभाल करते थे। चूंकि दीनानाथ और रामनाथ के परिवार का इतने छोटे से खेती में गुजारा करना संभव नहीं था, दीनानाथ ने 10 वीं के बाद तकनीकी शिक्षा पूरी की और डोंगरगांव की एक फैक्ट्री में काम करने लगा। उसकी पत्नी गौरी ने भी आडोस पडोस के घरों में कपडे धोकर और बर्तन मांझकर आपने परिवार को आर्थिक सहयोग दिया करती थी। दीनानाथ रोज सुबह करीब 10 बजे नाश्ता करने के बाद साइकिल से फैक्ट्री जाता । वह सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक फॅक्ट्री में काम करता और श्याम साडेपाँच बजेतक घर वापस आता l
हालांकि, आज शाम के छह बज चुके थे, फिरभी दीनानाथ का कुछ आतापता नही था। मानसून के मौसम के दौरान, डोंगरगांव में भारी बारिश होती थी। घना जंगल, ऊँचे-ऊँचे पेड़, जंगली जानवर, काले बादल, बिजलीकी कडकडाहट और घर का बढ़ता अंधेरा ये सब गौरी को परेशान करने के लिए काफी थे। उनके दो बच्चे, नामदेव और पार्वती शाम का समय होने के कारण घरके सामने के आंगन में खेल खेलने में तल्लीन थे। लेकिन कुछ देर बाद शाम छह बजे बारिश तेज हो गई। अंधेरा हो रहा था और रोशनी चली गई थी, इसलिए बच्चे अपनी माँ के पास बैठ गए और बाबा के घर आने का इंतज़ार करने लगे। अंत में, प्रतीक्षा से थककर गौरी उठी और दीनानाथ के साथ फैक्ट्री में काम करने वाले सदानंद के घर चली गई। सदानंद घर पर अपनी पत्नी और अपने दो बच्चों के साथ बातें कर रहा था। वह पिछले 2-3 दिनों से बीमारी के कारण फैक्ट्री नहीं जा रहा था। उसने फॅक्ट्री मालिक को गैर हाजिरी की छुट्टी भी दे रखी थी। गौरी जैसे ही उसके घर गई, उसने सदानंद के पास दीनानाथ संबंधि पूछताछ की। तब सदानंद ने उससे कहा, "मैं बीमारी के कारण पिछले 2-3 दिनों से कारखाने नहीं जा रहा हूं। तो मुझे पता ही नहीं चला कि दीनानाथ आज घर आने के लिए कब फैक्ट्री से निकल गया।
गौरी के कहने पर सदानंद ने फैक्ट्री में फोन किया और दीनानाथ के बारे में पूछताछ की। तब फैक्ट्री के मुख्य द्वार पर मौजूद एक सिपाही ने उन्हें बताया की शाम 5 बजे जैसे ही फैक्ट्री बंद हुई और दीनानाथ घर जाने के लिए निकल पड़ा l शाम 5 बजे दीनानाथ घर आने के लिए निकल पडा हैं तो अच्छे से घर क्यों नहीं आया ? इस चिंता ने अब उसके मित्र सदानंद को भी डरा दिया। वैसे, दीनानाथ एक निर्व्यसनी और गरीब आदमी था। वह हमेशा दूसरों की मदद किया करता था। इसीलिए उसने फैक्ट्री के सभी मजदूरों और यहाँ तक कि फैक्ट्री के मालिक का भी विश्वास जीत लिया था। भयभीत होकर सदानंद अपने दो-तीन दोस्तों के साथ फैक्ट्री जानेके लिये निकल पडा । रास्ते में उन्होंने देखा कि दीनानाथ जंगल की सड़क पर अपनी साइकिल के साथ बेहोश पड़ा हुआ हैं। जंगली भालू ने उसे गंभीर रूप से घायल कर दिया था। इस पर सभी का ध्यान गया। क्योंकि आसपास की जमीन पर भालू के पैरों के निशान दिखाई दे रहे थे। दरअसल, पिछले कुछ महीनों में डोंगरगांव में भालू के हमलेमें घायल होने की कई घटनाएं घट रहि थी l दुर्भाग्य से दीनानाथ भी उसी घटना का शिकार हुआ था।
दीनानाथ के दोस्तों ने उसे उसी हालत में उठा लिया और डोंगरगांव ले आए और वहां के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया l वहां उसकी जख्मों का इलाज किया गया। हालांकि, उसके हाथ पैरकी हडडीयाँ टूट जाने के कारन उसे पास के शहर के अस्पताल ले जाया गया। दीनानाथ के परिवार पर आयी इस भीषण आपत्ती को देख डोंगरगांव के सभी ग्रामीणों की आंखों में आंसू आ गए। लेकिन नियति के आगे सभी लोग बेबस थे। दीनानाथ का इलाज करनेवाले डॉक्टर ने उसे अगले छह से सात महीने तक आराम करने की सलाह दी । इस अवधि के दौरान, दीनानाथ को अपने हाथों और पैरों पर डाले गए प्लास्टर और दवाईयों पर बहुत पैसा खर्च करना पड़ा। दीनानाथ के परिवार की स्थिति आर्थिक रूप से नाजुक थी। अत: इस पूरे परिवार ने खुद को बहुत बड़े आर्थिक संकट में पाया। गांव के अन्य लोगों ने उसकी काफी मदद करने की कोशीश की। लेकिन परिवार अभी भी किसी बडी आर्थिक मदत का इंतजार कर रहा था। उसी समय मोहन नाम का एक "फ़रिश्ता" उनकी मदद के लिए आगे आया। वह एक स्वास्थ्यकर्मी और एक सामाजिक कार्यकर्ता था। उसने दीनानाथ के घर की बदहाली और दीनानाथ के इलाज के कारण हुई उसके परिवार की दुर्दशा को देखा और परिवारको पूरी आर्थिक मदद देने का दृढसंकल्प किया। मोहन ने दीनानाथ की पत्नी को अस्पताल का पूरा मेडिकल बिल और उसकी पूर्ति के लिए उपलब्ध सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने के लिए सभी आवश्यक कागजी कार्रवाई पूरी करने में मदद की। लेकिन मोहन की आर्थिक मदद मिलने की प्रक्रिया पूरी होने तक दीनानाथ के परिवार के हर सदस्य ने पैसे जुटाने के लिए काफी मेहनत की l उसकी पत्नी गौरी आसपासके परिवारों के कपडे एवं बर्तन धोती रही। उनकी बेटी पार्वती ने अपनी मां का सबसे ज्यादा साथ दिया। न केवल उसके साथ, बल्कि अस्पताल में उसकी पीठ पर भी, वह दीनानाथकी देखभाल करने के लिए अपने पिता के साथ रही। दीनानाथ के पुत्र नामदेव ने अपने कारखाने में एक सहायक के रूप में काम करके जितना हो सके उतना पैसा कमाने की कोशिश की। दीनानाथ के भाई ने भी उनके इलाज के लिए गांव से पैसे भेजे थे। दीनानाथ पर आए संकट से उबरने में पूरे परिवार ने तहे दिल से उसका साथ दिया। आखिरकार दीनानाथ अस्पताल से घर लौटा और परिवार के घरेलू नुस्खों से पूरी तरह ठीक हो गया।
संकट के समय परिवार द्वारा दिया गया मजबूत समर्थन व्यक्ति के जीवन भर काम आता है। भोजन, वस्त्र और आवास की बुनियादी बातों के अलावा, एक व्यक्ति को उसके परिवार से मजबूत समर्थन उसके अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है। परिवार के सदस्यों के भावनात्मक सहयोग से व्यक्ति बड़े से बड़े संकट को आसानी से पचा सकती है।