मेरे मार्गदर्शक
मेरे मार्गदर्शक
जीवन हमें नित्य निरंतर कुछ ना कुछ सिखाता है। शिक्षा के विभिन्न प्रकार हैं l जैसे - औपचारिक-अनौपचारिक, नियमित-दूरस्थ, पारंपरिक-पेशेवर आदि। लेकिन इन सभी रूपों में “ मार्गदर्शक" की भूमिका महत्वपूर्ण है।
विशेष रूप से 21वीं सदी में, आधुनिक शिक्षण विधियों से पता चलता है कि शिक्षकों को सुविधा दाता होना चाहिए। मार्गदर्शक का काम सुविधाएं देना ही होता है। क्योंकि हर कोई अपनी बौद्धिक और शारीरिक क्षमता के अनुसार सीखता है। हालांकि उसके लिए सही रास्ते पर चलने के लिए मार्गदर्शक की भूमिका अहम होती है। 18 साल की उम्र तक माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के बाद, हम विश्वविद्यालय शिक्षा की ओर रुख करते हैं और अगले 4 से 5 वर्षों में डिग्री हासिल करते हैं। मानव जीवन की शैक्षिक यात्रा में मार्गदर्शक से संबंधित प्रश्न उठता है कि क्या जीवन में मार्गदर्शक की आवश्यकता सभी को होती है ? यदि हां, तो वास्तव में किस क्षेत्र में मार्गदर्शक की सबसे अधिक आवश्यकता है ? क्या सच में सभी के पास कोई मार्गदर्शक होता है ? यदि आप इन सभी सवालों के जवाब सकारात्मक तरीके से खोजते हैं, तो यह समझा जा सकता है कि हर व्यक्ति को किसी भी क्षेत्र में सफलता के शिखर पर पहुंचने के लिए मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। विषय वस्तु के संदर्भ में इसे "विशेषज्ञ मार्गदर्शक" कहा जाता है। मेरे अपने जीवन में ऐसे कई मार्गदर्शक रहे हैं। दरअसल, मराठी में एक कहावत है-
“जो जो गुण देखियला तयासी गुरु केला ”
अर्थात जिसने जिस व्यक्ति में जो भी अच्छा गुण देखा, उसे गुरु बन लिया !
इस कहावत के प्रत्यय के साथ मैं आज तक जीवन यात्रा कर रहा हूं। नवजात शिशु का पहला मार्गदर्शक उसके माता-पिता होते हैं। उसके स्कूल में प्रवेश मिलने के बाद, उस विषय के शिक्षक उसे उस विषय पर मार्गदर्शन करते हैं l मेरे जीवन में मेरे भी निश्चित रूप से मेरे पिता स्वर्गीय डॉ रवींद्र माणिकराव केंद्रकर और माता श्रीमती चित्रा केंद्रकरही मेरे पहले मार्गदर्शक थे l मैंने उनसे कई सारे गुणों को अपनाया l जैसे - साफ-सफाई, अनुशासन, समय की पाबंदी, अध्ययनशीलता, योजना, धैर्य। मेरे पिता ने विशेष रूप से मुझे दैनंदिन व्यवहार के बारे में बहुत अच्छी जानकारी दी। उनके मार्गदर्शन से ही मैं आज जीवन में सभी निर्णय निष्पक्ष तरीके से ले सकता हूं।
मेरे संगीत विषय के क्षेत्र में परभणी भूषण डॉ. पं. कमलाकर परलीकर मेरे लिए एक महान मार्गदर्शक रहे हैं। उनसे मैंने न केवल संगीत बल्कि दैनंदिन जीवन की छोटी-छोटी चीजें भी सीखीं है और अब भी सीख ही रहा हूँ। उनके साथ साथ ही मैंने जिन जिन शिक्षकों से संगीत की शिक्षा प्राप्त की , उन सभी से मैंने संगीत के बारे में कुछ ना कुछ मार्गदर्शन प्राप्त किया l भारती विश्वविद्यालय के डॉ. शारंगधर साठे, पं. विकास कशालकर, श्री कासलीकर, शिवाजी कॉलेज की सौ. अरुणा गिरीधारी आदि लोगों का मेरे सांगितीक जीवन को समृद्ध करने में खास योगदान रहा है l
जब मैंने जीवन में पहली बार नौकरी के माध्यम से जिला शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्था, परभणी में प्रवेश किया तब भी कई सारे लोगों ने मुझे मार्गदर्शन किया l मिसाल के तौर पर श्री भातलवंडे सर, जिन्होंने जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्था, परभणी के कार्यालय में मुझे सरकारी दस्तावेजों से परिचित करवाया, श्री चौधरी और श्री देशपांडे सर, जिन्होंने मुझे फाईलींग करना सिखाया, अध्यापन और प्रशासन में हमारे तत्कालीन प्रशिक्षण संस्था के प्रधानाचार्य डॉ. श्री जगदीश कानडे और श्री बी बी पुटवाड़ सर के मार्गदर्शन में मैं “ तैयार “ हुआ, जिनके मार्गदर्शन में मैंने क्रमशः सेवा पूर्व और सेवा अंतर्गत शिक्षक प्रशिक्षण विभागों का प्रबंधन किया वे श्री चिटकुलवार और श्री योगेश सुरवासे सर, जिनके मार्गदर्शन में मैंने स्कूल पाठ अनुसूची बनाना सीखा वे पुनेकर मॅडम, जिन्होने तासिका तत्वपर मेरे कार्यरत होते हुए भी मुझे संभाला और मेरी हौसला अफजाई की वे वरीष्ठ शिक्षक श्री वसंत खडकेकर इन सभी के मार्गदर्शन से ही मैं जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान में अपनी पहली सरकारी सेवा के साथ न्याय कर पाया।
इस नौकरी को छोड़ने के बाद मैं सौ कमलाताई जामकर महिला महाविद्यालय में संगीत विभाग में स्नातकोत्तर स्तर पर पढ़ाने के लिए तसिका के सिद्धांत पर दाखिल हुआ । यहां मेरी मुलाकात प्रधानाचार्य डॉ. अविनाश सरनाइक, प्रधानाचार्य डॉ. वसंत भोसले, संगीत विभाग के प्रमुख डॉ. रवींद्र इंगले, डॉ. सौ. पल्लवी कुलकर्णी से हुई l इन सभी ने मुझे अगले तीन वर्षों तक मार्गदर्शन किया l विशेष रूप से इंगल सरसे मैंने संगीत कला के सैध्दांतिक पक्ष का अध्ययन करना सिखा l संगीत विभाग में कार्यरत होते हुए मेरा मुख्य विषय “ गायन ” होने के बावजूद, मैंने ड्रम, डफ और वायलिन जैसे विभिन्न वाद्ययंत्र बजाना सीखा।
उसके बाद मैंने इस नौकरी का इस्तीफा देकर श्री शिवाजी कॉलेज में पदवी स्तर पर तसिका सिद्धांत पर पढ़ाने के लिए प्रवेश किया। वहाँ पर मुझे संगीत विभाग प्रमुख श्रीमती सविता कोकाटे और प्रधानाचार्य डॉ. बी.यू. जाधव सर से मार्गदर्शन मिला। इन दोनों महाविद्यालयों में कार्य करते हुए मैंने स्वयं को केवल अध्यापन तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि विभिन्न लोगों से प्रशासन का मार्गदर्शन भी प्राप्त किया। इसमें उपप्रधानाचार्या डॉ. विजया नांदापूरकर और रजिस्ट्रार श्री विजय मोरे सर का मार्गदर्शन मुझे प्राप्त हुआ l इन दोनों कॉलेजों में कार्यरत रहते हुए नांदेड़ विश्वविद्यालय के साथ साथ मैने मुक्त विश्वविद्यालयों के परीक्षा विभाग में भी कार्य किया। इसलिए मुझे परीक्षा कार्य का भी अनुभव प्राप्त हुआ ।
लगभग सव्वा सालकी सरकारी सेवा और 6 वर्ष की निजी सेवा के अपने अनुभव के बल पर मैंने पिछले वर्ष 22 अक्टूबर 2021 को नवोदय विद्यालय में संगीत शिक्षक के तौर स्थाई रुप से पर प्रवेश किया। राज्य सरकार एवं निजी कॉलेजों में अध्यापन और प्रशासन का प्रगाढ़ अनुभव होने के कारण इस केंद्र सरकार की सेवा में मुझे काम की किसी भी प्रकार की चिंता सताती नहीं है l क्योंकि मेरे पास पर्याप्त अनुभव है और कई सारे लोगों का मार्गदर्शन भी है l
जवाहर नवोदय विद्यालय, निजामपुर रायगढ़ में संगीत शिक्षक की स्थायी सेवा में मेरा प्रवेश – “ सही जगह पर सही व्यक्ति “ इसी उक्ति को दर्शाता है। चूंकि यह एक आवासीय विद्यालय है, इसलिये यहाँ पर मुझे अध्यापन के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के प्रशासन को संभालना पड़ता है। यहां भी मेरा परिचय हमारे नूतन प्रधानाचार्य श्री. के. वाय. इंगले सर से हुआ , जो एक संत आदमी है l उनके मार्गदर्शन में पिछले 6 माह से "केंद्रीय कर्मचारी" के रूप में मै स्वयंको तैयार कर रहा हूं। यहां भी परीक्षा विभाग के प्रमुख श्री अर्जुन गायकवाड, पुस्तकालयाध्यक्ष और नवोदय विद्यालय कक्षा 6 के प्रवेश परीक्षा के प्रमुख श्री संतोष चिंचकर, मराठी के श्री कैलास वाघ सर, कक्षा नौवीं प्रवेश परीक्षा के प्रमुख श्री सुनील बिरादार सर , वरीष्ठतम शिक्षक श्री संजय माने सर एवं श्री अन्नासाहब पाटिल और कई अन्य लोगों द्वारा मुझे मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है l नवोदय विद्यालय के कार्यालय से अध्यापन के साथ-साथ मुझे श्री शैलेश पड़वाल, श्रीमती सुषमा पाटिल, श्रीमती अर्पिता जोशी, श्री विवेक पाटिल का केंद्रि प्रशासन के संदर्भ में मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है।
मार्गदर्शक शब्द पर मेरा सकारात्मक दृष्टिकोण हमेशा से यही रहा है की चाहे वह छोटा कर्मचारी हो या कोई वरिष्ठ अधिकारी हो, जो भी आपको किसी विषय से संबंधित उपयुक्त जानकारी देता है, वह आपका मार्गदर्शक होता है !