alok singh

Drama

4.7  

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दरवाज़े का भूत

दरवाज़े का भूत

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एक दिन सुबह जब माँ बाप दोनों अपने बच्चे के कमरे में सुबह गए तो दरवाज़ा ऐसा लग की मानो अंदर से कहीं अटका हुआ है, थोड़ी ताक़त लगाकर जब अंदर गए तो उन्होंने देखा कि दरवाज़े से सटकर उनका बच्चा सोया हुआ है और उसकी आँख के आँसू उसके गालों पर ठहर कर सूख गए थे, बड़े प्यार से उठाते हुए उन्होंने पूछा कि ईशु बेटा आप यहां दरवाज़े पास क्यों सो रहे थे, पूछते पूछते माँ माथे पर हाथ फेरा तो एहसास हुआ कि ईशु का बदन तो मानो किसी भट्टी की तरह तप रहा था, खैर ईशु ने धीरे से डरते डरते आँखें खोली और अपनी माँ से लिपट कर ज़ोर ज़ोर से दरवाज़े की तरफ इशारा कर के रोने लगाउसने माता पिता को बताया भी की दरवाज़ा उसकी तमाम कोशिशों के बावजूद नहीं खुला, चूंकि सुबह उन्हें दरवाज़ा खुला मिला तो उन्हें लगा कि शायद बच्चा नींद में होने कारण ऐसा सोच रहा होगा।

फिर उसने कहा

" मैंने आप दोनों को कितनी बार फोन किया लेकिन आप लोगों ने मेरा फोन क्यों नहीं उठाया, पता है डर के मारे मेरी आवाज नही निकल रही थी",

 उसकी आवाज़ में शिकायत, गुस्सा और डर, तीनो ही भाव कोई भी आसानी से महसूस कर सकता था, बरहाल माँ बाप दोनों को याद आया कि फ़ोन तो उन दोनों के ही साइलेंट पर थे, देर रात किसी फालतू आये मिस्ड काल के कारण उन्होंने फोन साइलेंट पर कर दिया था, और अब बच्चे की ये दशा देखकर दोनों ही मन ही मन आत्मग्लानि से दबे जा रहे थे

ईशु ने उस रात वाली घटना फिर से दोहराई की उसे सुससु लगी थी और फिर रात में उसकी तमाम कोशिशों के बाद भी दरवाज़ा नहीं खुला, उसके फोन भी किया लेकिन वो भी नहीं उठा और वो वही दरवाज़े के पास कब सो गया पता नही चला, तभी इशू के पापा को एहसास हुआ कि फर्श भी गीला है, उन्हें समझते देर नही लगी की ये ईशु ने ही घबराहट में सोते में कर दी होगी।

लेकिन अब ये उन दोनों के लिए चिंता का विषय था, उनको लगा कि, ईशु शायद किसी मनोवैज्ञानिक दबाव में है,

सो उन्होंने डॉ नेहा जो कि एक बाल मनोवैज्ञानिक चिकित्सक हैं, उनको सम्पर्क करने का निश्चय किया।

चूंकि इस बार भी दरवाज़ा खुला हुआ था तो उन्हें ईशु की बात में कोई दम नही लगा कि कोई पारलौकिक शक्ति के कारण ऐसा हुआ होगा।

खैर डॉ नेहा से संपर्क किया गया और परामर्श के बाद नतीजा ये निकला के चिंता की कोई बात नही है और कुछ दिनों के लिए वो ईशु को अपने साथ सुला लेंगे और जब उसकी मानसिक स्तिथि सामान्य हो जाएगी तो उसे फिर से उसके कमरे में सोने के लिए भेज देंगे।

यूँही कुछ दिन बीते और सब कुछ सामान्य हो गया, ईशु भी खुश दिख रहा था।

और ईशु से बात करने के उपरांत, ईशु को फिर से उसके कमरे में सोने के लिए मना लिया गया और उस रात ईशु फिर अपने कमरे में सोने चला गया , इस बार दोनों ने अपने फोन को भी नॉर्मल मोड में रख लिया,अचानक देर फिर से ईशु के चीखने और रोने की आवाज़ फोन पर सुनने के बाद वो दोनों उसके कमरे की तरफ भागे और मुश्किल से दरवाज़ा खोलकर अंदर गए तो देखा ईशु डरकर कोने में सुबक रहा है और बोलने लगा कि मैंने कहा था न कि दरवाज़ा नही खुलता है, खैर उन्होंने उसे संभाला और सुबह होते ही Mr प्रसाद ने ब्रोकर को फोन कर ख़ूब खरी खोटी सुनाई की कैसा भुतहा घर दिलवा दिया है किराये पर, इसपर दूसरी तरफ से ब्रोकर ने समझाने की कोशिश की और बोला कि आकर देखता हूँ।

ठीक एक घण्टे बाद छाबड़ा ( ब्रोकर) वहां पहुंच गया और प्रसाद साहब से उस कमरे तरफ ले चलने के लिए कहा जहाँ उन्हें लगता था कि भुतहा घटना घटी थी, प्रसाद साहब ने कमरे तरफ इशारा किया छाबड़ा को उखड़े मन से कहा

"जाकर खुद देख लीजिए, हम ही मिले थे क्या आपको ऐसा घर किराये पर चढ़ाने के लिए"

कमरे की तरफ जाते हुए छाबड़ा बोला,

"अरे प्रसाद साहब देखने तो दीजिये और फिर कपूर साहब ने आपकी सिफारिश की थी और उनकी सिफारिश हो और मैं आपको ऐसा घर दूँगा, ना ना ना"

कहते कहते छाबड़ा कमरे में गया और चारों तरफ देखने लगा जैसे कोई डिटेक्टिव मुयायना कर रहा हो, कभी खिड़की तो कभी पलँग के नीचे तो कभी अलमारी के पीछे

इतने में प्रसाद सहाब झुंझलाकर बोले,

"अरे दरवाज़ा कहा था कि नहीं, तो यहाँ वहाँ क्या देख रहे हैं""ओह हाँ" छबड़ा बोला और दरवाज़े की तरफ बढ़ गया और उसे गौर से देखने लगा तभी एक दम से कूदकर कर बोला "

मिल गया भूत प्रसाद साहब , मिल गया "

प्रसाद साहब कमरे की तरफ लपके और फिर चिढ़कर बोले

"किधर है भूत दिखाईये, दिखाईये किधर है?"

छाबड़ा ने दरवाजे के ऊपर और नीचे दोनों कोनो की तरफ इशारा किया और कहा ये देखिए रबर के टुकड़े!!

"हाँ तो" प्रसाद साहब फिर मुँह बिचकाकर बोले,

"हाँ तो मसला ये है प्रसाद सर की आपसे पहले वाले किराएदार ने दरवाज़ा आसानी से बिना कुंडी लगाए बन्द होकर रुक जाए इसलिए ये रबर टुकड़े डोर स्टॉपर की तरह लगा दिए, लेकिन चूंकि अब बरसात का मौसम आ गया है और दरवाज़े की लकड़ी भी गयी है फूल सो वो अब ज़्यादा कस कर फंसने लगा , खासकर जिस वक्त बारिश हो रही हो उस वक़्त और बच्चा आपका छोटा है सो उतनी ताक़त से नही खींच पाया होगा बस", छबड़ा आँखों में चमक लिए बोला,

प्रसाद साहब ने दिमाग पर ज़ोर दिया और यादाश्त रिवाइंड की तो वाक़ई जब जब ये घटना घटी उस रात मूसलाधार बारिश हुई थी।

अब उन्हें समझते देर नही लगी और उन्होंने छाबड़ा से माफी मांगी और कहा कि यार ये इतनी छोटी सी चीज़ उनसे कैसे छूट गई, इसपर छाबड़ा बोला कि सर आप तो बच्चे को लेकर वैसे ही काफी परेशान थे तो कोई बात नही ऐसा हो सकता है, चलिए अब चिंता मत कीजिये मैने वो रबर निकाल दी है अब परेशानी नही होगी, कहकर छाबड़ा प्रसाद साहब से इजाज़त लेकर चल गया।

अब दरवाज़ा मस्त खुल रहा था फिर भी ऐतिहातन प्रसाद साहब ने दरवाज़े और कब्ज़ों में प्रॉपर ग्रीसिंग और ऑयलिंग कर दी ।

दरवाज़े का भूत जा चुका था और मन का भी,

ईशु भी अब समझ चुका था, लेकिन ईशु के साथ दोनों ने वहीं सोने का निर्णय लिया और मस्त खिड़की खोलकर उमस और भूत दोनों को मुँह चिढ़ाकर सो गये।


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