दोस्त....!
दोस्त....!
दोस्ती, कुछ तो बात है इस लफ्ज़ में वरना यूहीं नहीं कोई अनजान से खास बनता। एक प्यारा सा रिश्ता जहाँ बस अपने हैंं। एक खाली सी किताब हैं ये जिंदगी, दोस्ती ने हर पन्ने भर से दिये हैं। आज कुछ केहना हैं उस दोस्तसे, खत तो नहीं पर जज्बात पोहचाने जरुर हैं।
हम मिले नहीं, पर मिलकर भी मिले हैं। हमारी दोस्ती ऑनलाईन हुई थी, कब मुझे याद नहीं। शुरु शुरु में बातें तो अलग थी पर अब बहुत सारी हैं। हम कभी मिले नहीं पर एक दूसरे को समझते जरुर हैं। गुस्सा नाक पे चढा़ रहता है उसके, पता नहीं कब किस चीज पर गुस्सा आ जाये। मुझ पर भी गुस्सा जरुर आता होगा उसे पर कभी कहता नहीं।
मुझे उसे चिढा़ना पसंद हैं पर वो हाथ आये तब ना। मुझे याद है एक बार उसने लेमन टी बनाई थी, कडवी। एक कप चाय मे दो निंबू डाल दिये थे, भगवान ऐसी चाय किसीको ना पिलाये। हमारी बातें अक्सर गुड नाईट से शुरु होकर गुड नाईट पे खत्म होती हैंं, औ बीच में होता बातों का सिलसिला।
उस रात बहुत तेज बारिश थी, अंधेरा था, डर था पर दूर कहीं वो था, साथ में, अपनी नासमझी वाली बातों के साथ। गर्ल फ्रेंड्स काफी होंगी उसकी पर मैं जानती हूँ मै दोस्त हूँ उसकी। तभी तो मेरे कितने भी इग्नोर के बाद भी मेरे एक मेसेज से उसे मेरा हाल पता चल जाता है ,एक प्रोब्लम जरुर है उसकी, मेरा बर्थ डे हर बार भुल जाता है। फिर चार दिन बाद मुझे याद दिलना पडता है। क्या किया माफ तो करना पडेगा दोस्त जो है।काम के बीच अगर मेरा मेसेज आये तो साहबजादे गुस्सा भी बॉहत जल्द हो जाते हैं, परेशान होकर रिप्लाय तो दे देंगे पर बतायेंगे नहीं।
इन दिनो शादी करने करने का अजब भूत चढा़ है इन के सर पे। भगवान जाने किस के नसीब में हैं। पर मैं जानती हुं जो भी होगी नसीबवाली होगी।कहते हैं हजार दोस्तो की जरुरत क्या जब एक यार हो। मुझे मेरा वो यार वो दोस्त मिला है। ये सब उसे बस ये बताने के लिये कि मै तुम पर यकीन करती हूँ....!!!!
