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Prashant Wankhade

Horror

4  

Prashant Wankhade

Horror

दो मृत राक्षस – तालाब का रहस्य

दो मृत राक्षस – तालाब का रहस्य

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मैं एक छोटे, शांत गाँव में रहता हूँ।

बचपन से ही मुझे डरावनी कहानियों का बहुत शौक रहा है।

और मेरे दादाजी…

वो तो जैसे चलते-फिरते "कहानी-घर" थे।

रात को मिट्टी के घर की छत पर लेटकर, चाँदनी में मैं उनसे कहानियाँ सुनता था—

कभी गाँव की परंपराएँ, कभी पुराने किस्से… पर सबसे खास थीं वो भूत-प्रेत वाली सच्ची घटनाएँ, जिन्हें सुनकर दिल की धड़कन तेज हो जाती थी।

एक दिन मैंने उनसे पूछा—

“दादा, हमारे गाँव में ऐसी कोई वास्तविक घटना हुई है क्या? जो आपने अपनी आँखों से देखी हो?”

उन्होंने मुझे कुछ सेकंड देखा… फिर धीमे से कहा—

“बेटा, एक कहानी है…

जिसे मैं भूलना चाहता हूँ, पर भूल नहीं पाता…”

उसी रात उन्होंने जो बताया—

वह सिर्फ कहानी नहीं थी…

वह दहशत की जंजीर थी, जो आज तक दिमाग में बंधी है।

🔥

हमारे गाँव से थोड़ा दूर एक बहुत पुराना तालाब था।

लोग उसे सिर्फ “पुराना तालाब” ही कहते थे।

कहते हैं वहाँ कभी घना जंगल था,

जहाँ सूरज भी मुश्किल से पहुँचता था।

समय बदला—

जंगल कटे, खेत बने, फिर घर भी बस गए…

लेकिन तालाब?

वह आज भी उतना ही अंधेरा,

उतना ही चुप,

और उतना ही खतरनाक लगता है।

गाँव के बुज़ुर्ग कहते थे—

वहाँ की मिट्टी हमेशा ठंडी रहती है

चाँदनी रातों में पानी पर हल्की भूरी धुँध तैरती है

और सबसे डरावनी बात—

वहाँ रात में अजीब आकृतियाँ देखी गई हैं

कई लोग गुम हुए,

कुछ बुरी हालत में लौटे,

और कुछ तो कभी वापस नहीं आए।

लेकिन नए लोग इसे अंधविश्वास मानते थे।


एक रात की बात है, दादा अपने दोस्त राजेश के साथ किसी काम से गाँव के दूसरे छोर से लौट रहे थे।

रात गजब की ठंडी थी।

हवा अजीब भारी।

रास्ता तालाब के पास से जाता था, और दोनों यह जानते थे कि वहाँ से गुजरना कितना ख़तरनाक है। पर कोई और रास्ता न था। इसलिए वह उसी रास्ते से जाने लगे

लेकिन जैसे ही तालाब की सीमा आई—

दोनों अचानक चुप हो गए।

हवा में एक भारीपन…

एक सन्नाटा…

एक नजर न आने वाला डर घुला हुआ था।

वह दोनों डरते डरते ही आगे बढ़ रहे थे कि 

तभी—

पानी की गहराई अचानक हिली।

दादा कहते हैं:

“ऐसा लगा जैसे किसी ने पानी के अंदर से जोर से धक्का दिया हो… जैसे कोई बड़ी चीज ज़िंदा हो।”

दोनों तेज चलने लगे,

लेकिन तभी…

पेड़ों के पीछे से चार पैरों वाली कोई चीज़ उनके पीछे दौड़ पड़ी।

उसकी आवाज़?

जानवर जैसी… पर जानवर नहीं।

भारी साँसें… खुरदुरी घरघराहट…

मिट्टी पर तेज चोट जैसे कोई बड़ा शरीर दौड़ रहा हो।

दोनों घबरा गए और गलत मुड़ गए—

अब वे सीधे तालाब के किनारे पहुँच चुके थे।

पीछे वो प्राणी।

सामने तालाब का काला पानी।

और तभी…

पेड़ों के बीच से एक परछाईं निकली।

फिर दूसरी।

दो आकृतियाँ – पतली, लंबी, काली, और इंसान जैसी… लेकिन इंसान नहीं।

उनकी चमड़ी पानी से भीगी हुई—

जैसे किसी ने उन्हें अभी-अभी पानी से खींचकर बाहर निकाला हो।

उनकी आँखें—

सड़ी हुई पीली चमक।

और उनकी चाल—

झटकेदार, टेढ़ी-मेढ़ी, डरावनी।

दादा कहते हैं—

“मैंने जिंदगी में उतना डर कभी महसूस नहीं किया बेटा… वो इंसान नहीं थे… वो मृत राक्षस थे…”


कई साल बाद दादा को पता चला कि यह तालाब पहले से ही श्रापित था।

सदियों पहले दो आदमी एक बच्चे की हत्या करके तालाब की ओर भागे थे।

गाँव वाले पकड़ नहीं पाए।

एक बूढ़ा तांत्रिक उनके पीछे आया और बोला—

“तुम्हारी आत्मा कभी शांति नहीं पाएगी।

तुम इस तालाब की गहराई में कैद रहोगे…

और तुम्हारी प्यास कभी नहीं बुझेगी…”

तांत्रिक ने उन्हें पानी में धकेल दिया।

वहीं उनकी मौत हुई।

और तब से—

हर दस-पंद्रह साल में दो लोग गायब होने लगे।


दादा और राजेश तालाब के पास टूटी नाव के पीछे छिपे हुए थे।

राक्षस सूँघते हुए उनके बिल्कुल पास आ गए।

उनकी उँगलियाँ लंबी, नुकीली…

उनके शरीर पर पुरानी झील की बदबू…

उनकी आवाज़—

सूखे पत्तों को रगड़ने जैसी।

राजेश रो पड़ा।

दादा बस उसका हाथ दबाए रहे।

और तभी…

कहीं से मंत्रों की आवाज आई—

“ॐ नमः कालीकाय नमः…”

दोनों ने मुड़कर देखा—

एक बूढ़ा तांत्रिक हाथ में त्रिशूल लिए आ रहा था।

राक्षस गुस्से से उसकी तरफ झपटे—

तांत्रिक ने जमीन पर त्रिशूल मारा—

🔥 अग्नि की लपट फट पड़ी।

राक्षस चीखने लगे

उनकी त्वचा पिघलने लगी

उनके शरीर राख में बदलने लगे।

तांत्रिक ने गंगाजल मिलाकर एक लाल द्रव्य फेंका—

और दोनों राक्षस जलते हुए वहीं समाप्त हो गए।

तालाब की हवा अचानक हल्की हो गई।

पानी शांत हो गया।

दुनिया जैसे ठहर गई।

तांत्रिक बोला—

“ श्राप खत्म हुआ।”


दादाजी उस घटना के बाद कई दिनों तक ठीक से सो नहीं पाए।

पर गाँव में गायब होने की घटनाएँ उसी दिन से हमेशा के लिए बंद हो गईं।

दादा हमेशा कहते थे—

“दुनिया में हर चीज़ को विज्ञान नहीं समझा सकता बेटा।

कुछ चीज़ें ऐसी होती हैं जो सिर्फ अनुभव सिखाता है।”

और मैं आज भी उस पुरानी कहानी को भूल नहीं पाया।


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