अमावस की रात –और वह रास्ता
अमावस की रात –और वह रास्ता
नमस्ते दोस्तों,
स्वागत है आपका मेरे Mysterious Kahaniyan ब्लॉग में,
जहाँ हम ऐसी कहानियाँ साझा करते हैं
जो महसूस की जाती हैं।
आज मैं आप को एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हू
जो आपको शुरुआत में बिल्कुल सामान्य लगेगी,
लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ेगी,
आप इसका डर महसूस करने लगोगे,
यह कहानी मेरे साथ हुई एक घटना पर आधारित है।
अब ज़रा सोचिए…
अगर आप रोज़ जिस रास्ते से आते-जाते हों,
वह दिन में बिल्कुल सुरक्षित लगता हो,
एक नाइट ड्यूटी से लौटते वक्त लिया गया छोटा रास्ता…
जो दिन में बिल्कुल सामान्य था,
लेकिन अमावस की रात कुछ और ही बन गया।
यह हिंदी हॉरर कहानी
एक वास्तविक अनुभव पर आधारित है,
जहाँ डर दिखाई नहीं देता,
बस धीरे-धीरे महसूस होता है।
🌘 कहानी की शुरुआत
यह बात 2018 की है।
उस समय मैं कस्बे के बाहर स्थित
एक कोल्ड स्टोरेज गोदाम में
नाइट शिफ्ट सुपरवाइज़र की नौकरी करता था।
मेरी ड्यूटी रात 3 बजे खत्म होती थी।
क्योंकि गोदाम शहर से थोड़ा बाहर था,
इसलिए रोज़ देर रात
अकेले ही घर लौटना मेरी मजबूरी थी।
उस रात अमावस थी।
मोबाइल की बैटरी कम थी
और शरीर थकान से बोझिल।
घर पहुँचने के दो रास्ते थे।
एक पक्का, लंबा और रोशनी वाला —
जो बस स्टैंड होकर जाता था
और कम से कम 40 मिनट लेता था।
दूसरा छोटा, कच्चा रास्ता —
जो एक पुराने पीपल के पेड़ों वाले मैदान को काटता हुआ
सीधे मेरे मोहल्ले में निकलता था।
दिन में मैं हमेशा उसी छोटे रास्ते से जाता था।
रात में भी कई बार जा चुका था —
कभी कुछ गलत नहीं हुआ था।
उस दिन
थकान ज़्यादा थी,
और बस घर पहुँचने की जल्दी।
इसीलिए मैंने वही रास्ता चुना।
🌞
दिन के वक्त वह मैदान
बिल्कुल साधारण लगता था।
सूखी घास,
बीच-बीच में पीपल के पेड़,
एक पुराना बंद कुआँ
और खुला आसमान।
पास के गाँव के लोग
दिन में वहाँ से गुजरते थे।
कभी किसी ने उस जगह को लेकर
कुछ अजीब नहीं कहा था।
लेकिन रात में
वही मैदान
अलग ही तरह से भारी लगता था।
चाँद नहीं था।
रोशनी इतनी कम
कि चीज़ें साफ़ दिखें नहीं,
बस मौजूद होने का एहसास दें।
पेड़ जैसे
सीधे खड़े नहीं,
बल्कि थोड़ा झुके हुए लग रहे थे।
मैंने खुद को समझाया —
“रोज़ का रास्ता है… कुछ नहीं होगा।”
⚠️
मैदान के बीच पहुँचते ही
मुझे लगा
जैसे मेरे पीछे
किसी ने कदम बढ़ाए हों।
मैं रुका।
सब शांत।
मैंने थकान पर डाल दिया
और आगे बढ़ गया।
लेकिन तभी
घास में चलने की
एक अलग-सी आवाज़ आई।
🧠
मुझे डर का एहसास हुआ,
पर मैंने उसे नाम नहीं दिया।
बस गला सूखने लगा।
हाथ भारी हो गए।
और कदम
अपने आप धीमे पड़ गए।
मैंने पीछे देखा।
कुछ नहीं।
मैंने फिर चलना शुरू किया।
तीन कदम…
और वही आवाज़
फिर से।
इस बार
मेरे रुकने से पहले
वह भी रुक गई।
यहीं
मेरे सारे बहाने टूट गए।
👁️
मेरी बाईं ओर
एक अधूरी-सी परछाईं थी।
पूरा शरीर नहीं,
बस कंधे और सिर का अंदाज़ा।
वह मेरी तरफ नहीं देख रही थी।
बस मौजूद थी।
उस पल
मुझे डर लगना
अचानक बंद हो गया।
⚡
तभी मोबाइल बजा।
घर से कॉल था।
स्क्रीन की रोशनी में
वह परछाईं
गायब हो चुकी थी।
मैं दौड़ पड़ा।
उस रात के बाद
मैंने नाइट शिफ्ट छोड़ दी।
आज भी
अगर उस मैदान के पास से
दिन में भी गुजरता हूँ,
तो कदम तेज़ हो जाते हैं।
और कभी-कभी
रात की खामोशी में
घास की वही आवाज़
आज भी याद आ जाती है।
🌑 समापन
दोस्तों,
यह कहानी यहीं समाप्त होती है…
लेकिन सवाल आज भी वही है —
क्या वह सिर्फ मेरी थकान थी?
या सच में
कुछ कुछ और....
तो मिलते हैं दोस्तों,
अगली Mysterious Kahani में…
क्योंकि कुछ एहसास
समझाए नहीं जाते…
महसूस किए जाते हैं।

