दलदल

दलदल

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विकास बचपन से ही पढ़ने में तेज़ और व्यवहार कुशल बालक था। पढ़ने में अच्छा होने के कारण उसका पहले प्रयास में ही आई.आई.टी. में सिलेक्शन हो गया था ।सबसे अच्छी बात यह हुई थी कि उसे अपना शहर कानपुर छोड़कर नहीं जाना पड़ा था क्योंकि उसे वहीं एडमिशन मिला था ।उसके माता-पिता उसकी इस उपलब्धि पर बहुत खुश थे। वह हमेशा से उसके अच्छे स्वास्थ्य एवं पढ़ाई पर ध्यान देते आए थे ।


कानपुर से बी.टेक. करने के बाद उसका सिलेक्शन पूना में एक अच्छी कंपनी में अच्छे पैकेज पर हो गया था।पूना उसके लिए एक अंजान शहर था ।यहां अकेले उसका मन भी नहीं लग रहा था पर धीरे-धीरे उसके कुछ नए दोस्त बन गए।वो उनके साथ रोज़ पार्टियों में जाने लगा। दोस्त जो नशे के आदी थे, उनहोंने  विकास को भी नशे के लिए उकसाया। विकास पहले तो इसके लिए तैयार नहीं हुआ पर धीरे-धीरे उसे भी नशे में मज़ा आने लगा। अनजान शहर, अनजान लोग, ना परिवार का खौफ, न पैसों की कमी, गलत लोगों का साथ इन सब ने मिलकर ऐसी परिस्थितियां पैदा करीं कि वह पूरी तरह से नशे की गिरफ्त में आ गया। जहां पहले सिगरेट एवं शराब ही पीता था वहीं अब अफीम एव़ गांजे का भी शौकीन हो गया ।


ना केवल उसका शरीर खोखला होता जा रहा था बल्कि वह आर्थिक रूप से कमज़ोर होने लगा था। अपनी कंपनी में भी वक्त बेवक्त पहुंचता था और उसका वहां किसी ना किसी से रोज़ झगड़ा भी हो जाया करता था‌ रोज़-रोज़ के झगड़ों से तंग आकर कंपनी वालों ने उसे नौकरी से निकाल दिया था और उसकी कॉन्फिडेंशियल रिपोर्ट भी खराब ही बनाई थी। उसकी इज़्ज़त मिट्टी में मिल गई थी ।सच में नशे के दलदल में फंस कर उसने अपने आप को बर्बाद कर लिया था। इन सब समस्याओं को उसने खुद ही न्यौता दिया था। सच में "आ बैल मुझे मार" वाली कहावत उस पर पूरी तरह चरितार्थ हो रही थी।


जब विकास के माता-पिता को उसकी नौकरी छूटने एवं नशे की लत के बारे में पता चला तो उन्हें गहरा धक्का लगा। फिर उन्होंने अपने आप को संभाला और विकास को नशे के दलदल से मुक्त कराने के लिए नशा मुक्ति केंद्र से संपर्क साधा और फिर उसको वहां लेकर पहुंचे ताकि उसके वर्तमान के साथ साथ उसका भविष्य भी सुरक्षित हो सके।


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