दिलों के फैसले
दिलों के फैसले
"तुम्हारा कुछ सामान मेरे पास पड़ा है..."
रेडियो में आशा भोंसले का गाना बज रहा था।वह किताब पढ़ते पढ़ते उस गाने में खो गयी।अनजाने में किताब के पन्ने को कोने में मोड़ आँखे बंद कर किताब को चेहरे पर रख लिया।लेकिन यह क्या?किताब के उन पुराने पन्नों की खुशबू ने उसकी कॉलेज के दिनों की सारी यादों को ताजा कर दिया।उन यादों में भी बहुत सामान थे।कुछ गुलाब की सूखी पंखुड़ियाँ,कुछ बेतरतीब से लिखे खतों के टुकड़ें जो उसने पोस्ट नही किये थे।घंटों घंटों एक दूसरे की आँखों मे झाँकते हुए बितायें वे ढेरों जादुई पल! कॉलेज की कैंटीन में एकसाथ गुजारे वे सारे हसीन लम्हें! बरसात में साथ साथ बैठते हुए उन टप टप गिरतें पानी की बूंदों को गिनना!और उन सारी बातों पर एकसाथ ठहाके लगाना! इन सब यादों की गठरी में तिजोरी की तरह रखे गए सामान को वह कैसे माँगे? किससे माँगे?
जिससे वह हासिल हो सकते थे वह तो किसी और का हो गया था और वह जिसकी हो गयी उसको ना उस सामान के बारे में पता है और ना उसको कोई लेना देना भी है।
हर बार पुरानी संदूक की उस डायरी में रखे गुलाब की उन पंखुड़ियों को और सारे खतों को कितनी बार जलाने या फेंकने के बारे में वह सोचा करती थी लेकिन हर बार पता नही क्या हो जाता था की फिर से उन सारी चीजों को वह सहेज कर रख देती थी।
गाना खत्म हो गया और उन खयालों से वह अपनी दुनिया मे वापस आ गयी।शायद उसकी दुनिया मे अब उन सामान की कोई जरूरत नही रही थी और ना कोई अहमियत भी।
आँगन से उठकर किचन में जाते जाते ड्रॉइंग रूम में करीने से सजा कर रखी गयी सारी एन्टीक चीजों पर उसकी निगाहें गयी। कल कामवाली को उनको साफ करने के बताना होगा यह सोचते हुए वह चाय बनाने किचन में गयी.....
घर मे रखी चीजों पर बिखरी धूल को भी साफ करना होगा,नही?