दिल का टुकड़ा
दिल का टुकड़ा
विजय आजकल बहुत दुखी ओर उदास रहता है .. उस का बेटा लकवा कोमा जैसी बीमारी में है। उसका इलाज तो चल रहा है. पर उसकी हालत में कोई सुधार नहींं.. ओर इधर विजय को उसके दफ्तर में रोज़ कोई न कोई संत्वना देता रहता है जो किसी ताने से कम नहीं .. की जिस उम्र तुम्हें बेटे का सहारा मिलना चाहिए वहा भगवान ने ऐसी लाचार औलाद दे दी... यह तक की कई दोस्त तो अपने बच्चो का उदाहरण देके कोसते भी है। पर विजय सब बातों को हँस के मज़ाक़ में ताल देता था लेकिन अंसार ही अंदर उसका मन बैठा जा रहा है। ना तो वो अपनी औलाद के किये कुछ कर पा रहा है उसका बेटा उसके सहारे के लिए कहा हो पा रहा है शाम को घर आता है तो बीवी भी बड़ी उदास मन से बैठी रहती है ओर बेटे की याद में रोती रहती है डॉक्टर अंजली भी जवाब दे चुकी है।
अब दवा नहीं दुआ का ही सहारा है उसकी इस मजबूरी को समझते हु डॉक्टर अंजली उसे सलाह देते है कि वैसे भी कोई उम्मीद नहीं दिख रही। तुम चाहो तो तुम्हारे बच्चे के बाकी अंग सही सलामत है मतलब तुम चाहो तो अपने बच्चे के अंग दान कर सकते हो।इस से उसे मुक्ति मिल जाएगी और किसी जरूरतमंद को जीवन दान मिल सकता है। ये बात सुन के विजय का थोड़ा बोहोत बचा हुआ मनोबल भी टूट जाता है और वो फूट फूट के रोने लगता है। जैसे तैसे विजय अपनी पत्नी से बात कर के उसे मन लेता है। ओर मन को कठोर कर के डॉक्टर को हा बोल देता है..। अगले दो दिन तक वो अकेले बैठा बेटे को याद करता रहता और बीच बीच मे सिसक सिसक के रोता रेहता। मानो भूक प्यास सब खत्म हो गई। दिल की धड़कने भी अब धीमी हो गई। उसकी बीवी ने एक माँ होते हुए भी मन पे पथ्थर रख केविजय को समझाया कि। ऐसे उदास रहने से बेटे की आत्मा को शांति तो नहीं मिल जाएगी ना। उसने भी जाते जाते अपने मा बाप का नाम ही तो रोशन किया है। कल से दफ्तर जाओ।
काम मे लगे रहोगे तो कम से कम ध्यान दूसरी तरफ जाएगा।
बीवी की बात मान के विजय अगले दिन दफ्तर पोहोचते है। जब से उसका बेटा बीमार था तभी से विजय का काम अस्त व्यस्त था। आये दिन सुपरवाइजर विजय पे भड़क जाता था।और आज सुपरवाइजर किसी बात पे गुस्से बैठा होता है और विजय पर पूरी भड़ास निकाल देता है। विजय शांत रहता है। थोड़ी देर बाद एक गहरी सास ले के कहता है कि अब कल से आप को मुझ से कोई शिकायत नहीं होगी।हर काम समय पे करूँगा।अब हमेशा समय पे आऊंगा।कोई छुट्टी नहीं लूंगा ना किसी बीमारी पे ना किसी तेवहार पे। क्यों कि।अब।अब मेरा बेटा नहींं रहा.. इतना कह के विजय वही फूट फूट के रोने लगता है। सुपरवाइजर थोड़ा शांत होता है।उसका गुस्सा ठंडा पड़ जाता है। वो विजय को संत्वना देते है..ओर उस के थोड़ा खुश करने के लिए शाम को एक ऑफिसियल पार्टी पे बुला लेता है। जो कि उन के कंपनी के बॉस से रख्खी हुई था।।
शाम को विजय ओर उस की बीवी तयार हो के पार्टी में जाते है.. वहाँ बड़े बॉस लंदन से आए हुए रहते है।. सुपरवाइजर एक एक कर के बोस को अपने स्टाफ से मिलवाता है. फिर विजय से मिलवाता है और काम शब्दो मे विजय की दुखद व्यथा भी सुनाता है. विजय ऊनी बीवी के साथ जा के एक कोने में बैठ जाता है ! इत्तिफाक से उस पार्टी में विजय की डॉक्टर भी आये होते है.. विजय को देख के खुश भी हो जाते है ओर थोड़े हैरान भी। वो खुद विजय से जा के मिलते है विजय भी डॉ अंजली को देख के चौक जाता है.. पूछता है कि आप यह कैसे.. डॉ अंजली कुछ बताये उस से पहले ही वह विजय के बॉस आ के दोनो को मिलवाते है।कि ये डॉक्टर करीबी दोस्त और फैमिली डॉक्टरभी है और है इन्ही की बदौलत आज हमारी बेटी ओ नया जीवन दान मिला है।जिसकी खुशी में हुने ये पार्टी रख्खी है। तभी डॉ अंजली बॉस के तरफ मुखातिब हो के बोलती है कि नहीं भाईसाहब, मेरी बदौलत कुछ भी नहीं हुआ है। आप के बेटी को अगर जीवन दान मिला है तो वो सिर्फ और सिर्फ विजय के सही निर्णय ओर त्याग के कारण मिला है।
उस के आसुओ के कारण ही आप अपनी बेटी की खुशियां देख पा रहे हो। विजय ने अपने दिल के दुकड़े को अपने से दूर कर के आप की बेटी निशा को उसकी धड़कने दी है। बॉस ये सुन के अचंबित हो जाता है ! डॉ अंजली.. "आप की बेटी के अंदर दिल धड़क रहा है वो विजय के बेटे का ही है.. उसकी रज़ामंदी से ही हम ने उसके बेटीके अंगदान किये है और 3 जीवन बचाये है।" इधर निशा की आँखे नम हो जाती है।वो ज़ोर से विजय के गले लग के रोने लगती है। बोलती है "पाप ,तुम सच मे बोहत धनवान हो।तुम्हारे एक नहीं 3 3 बेटे है इस दुनिया मे।" विजय भी बरसो बाद अपने बेटे क़ी धड़कने महसूस कर के रोने लगता है वह मौजूद बाकी सभी लोगों की आखो में आंसू आ जाते हैं और सब विजय के लिए तालिया बजा देते हैं।