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Minhaj Abdullah

Inspirational

4  

Minhaj Abdullah

Inspirational

ज़मीर

ज़मीर

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6 साल कमी उम्र में ही पता चल गया था की मेरे २ पक्के दोस्त है. जो साले कभी मेरा साथ नहीं छोड़ते। दोनों की सोच विपरीत। हमेशा आपस मे लड़ेंगे झगड़ेंगे।कभी एक जैसी सलाह नहीं देंगे। .. पर फिर भी मेरा साथ नहीं छोड़ेंगे..

बचपन का ही एक वाकया बताता हु।.

दादू जब घर आते थे तो अपनी कमीज़ खूंटे पे टांग देते हे। जेब में वजन के कारण कमीज़ एक तरफ झुक जाती थी। दो तीन बार बोहोत ध्यान से देखने के बाद समझ आया की इस जेब में ज़रूर पैसे होंगे

बस फिर क्या. मेरे पहले दोस्त ने मुझे झट से कहा.. “बेटे यही सही मौका है।कोण नहीं देख रहा है।. कमीज़ तेरे सामने है और एक झटके में वो पैसे तेरे हो सकते है।तो देख क्या रहा है फटाफटt से एक हाथ मार ले.. किसी को कानो कान खबर नहीं होगी”।

 मैं ने कहा “फिर कर क्या होगा?”

दोस्त बोला कल का कल देखेंगे आज क्यों सोचना. वैसे भी कल कोनसा तुम्हे कोई कुछ बोलेगा

मैं उस की बात बाण के फ़ौरन कमीज़ की तरफ बढ़ा. और जैसे ही हाथ कमीज़ पे लगाया

फोरना मेरा दूसरा दोस्त बोला। ये क्र कर रहा है बे।दिनाज ख़राब हो गया है क्या। तेरे दादू की कामिक्स है।. और जो तू करने जा रहा है उसे चोरी कहते है। अपने घर में। अपनी दादू की कमीज़ से चोरी।उनके किसी ज़रूरी काम के होंगे तो। बोहोत पाप लगेगा. और अगर किसी को ज़रा भी पता चल गया तो सोच ले बोहोत भयंकर पिटाई होगो, सब के सामने। और सब चोर अलग बोलेंगे। भरे घर में बेज्जती हो जाएगी।और कभी जीवं में कोई भरोसा क्नाही करेगा

मैं दर गया और रुक गया।

थाभी पहला दोस्त बोला। अरे कहा इतना सोच रहा है। और अभी कोई नहीं देख रहा। ज़रा सोच इन पैसो से तू बिस्कुट , लालापोप संतरे की गोली लट्टू आइसक्रीम खरीद सकता है। झूले पे जा सकता है

पतंग ले सकता है

और ये सब कल नहीं मिलेगा। आज अगर तो ने ये मोक छोड़ दिया तो सब कीच छोड़ दिया।झट से हाथ मार और निकल ले

बस अब मुझ से रहा नहीं गया और मैं ने आओ देखा न ताओ और झट से हाथ मर के जो कुछ मुठठी में आया जेब से निकल लिया. और घर के बहार भाग गया।

माथे पे पसीना मन में डर और हाथ खोल के देखा तो 30 रूपए वाह Itne me माँ ने जोर से आवाज़ लगे राजू कहा है तू।. तयार हो जा, मेले जाना है..

और जा मेले का सुना तो ये तो सोने पे सुहागा हो गे।. इधर पैसे मिले नहीं की मेले जाने की तयार्री..

हम लोग ख़ुशी ख़ुशी मेले पोहोच गए..

Har taraf rangbirangi हर तरफ झूले दूकाने और जगमाती झालर ट्यूबलाइट.. इतने बड़े बड़े गोल गोल झूले. थोड़ी आगे गए तो गरम गरम पकवान..और उसके आगे तो टाफी बिस्कुट की दूकाने.. अब तो मन पूरी तरह से ललचाने लगा.. ज़बान पे पानी रुक ही नहीं रहे।हाथ बार बबर जेब में जा रहा और उन ३० रुपयों को मसल रहा. मन तो कर रहा था की उस ३० रुपये से आज साड़ी दुनिया खरीद ही ले।

मेरा दूसरा दोस्त जिस का नाम ज़मीर था बोला

रुक राजू अगर तो ने ये ३० रूपए ज़रा भी बहार निकले तो माँ को क्या जवाब देगा जब वो पूछेगी की कहा से आए इतने पैसे और तू पकड़ा जायेगा। तूझ से ज्यादा माँ को तकलीफ होगी .. हाँ अगर तुझे कुछ खरीदना है तो माँ से पैसे ले ले..

तभी मेरा पहला दोस्त जिस का नाम नफ्ज़ है फ़ौरन बीच में टपक के बोला

अरे कहा तू माँ से १ या २ रूपए लेगा. सोच ज़रा ३० रुपयों से सारा संसार अब तेरे चरणों में आ अकता है.

मैं ने माँ की तरफ देखा. वो मुझ मुस्कुरा के पूछती है राजू बोल तुझे क्या चाहिये। दादू ने तेरे लिए कुछ पैसे दिया है , आज तो जो चाहे ले ले जहा चाहे चूम ले। जो चाहे खा ले

बस उन शब्दों में ही तो सारा संसार कदमो में आ गया।अब ये ३० रूपए बोहोत छोटे लगने लगे।.

आज में ने पहली भार चोरी करी ओव भी दादू की कमीज़ से। जिन्हों ने वैसे ही सारा संसार नुझे भीना बोले दे दिया। मेरी आँखों में आसू आ गई में ने झट से ममा को गले लगा लिया और रोने लगा

नफ्ज़ की बातो मे लालच था. उसकी वजह से मेरा मन भी ललचा रहा था। और ज़मीर मुझे इसी लालच के अंजाम से डरा रहा था। अब मैं खुद की नज़र में चोर था

हाला की मैं ने घर जा के रात को दादू की कमीज़ में पैसे वापस रख दिए पर। ये पहला सहास था चोरी का अगर मैं टूट जाता और उन ३० रुपयों से कुछ ले लेता तो मेरी हिम्मत बढ़ जाती और शायद आज मैं कुछ और होता। यहाँ आप को ये किस्सा नहीं सुना रहा होता।


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