दीपदान..!!(पहला प्यार)
दीपदान..!!(पहला प्यार)
सूर्यास्त का समय काशी का दशाश्वमेघ घाट चारों ओर घंटियां, डमरू, शंखनाद, मृदंग, झाल की गूंज सुंदर वेशभूषा में दिखते पुजारी.. गजब की महक के साथ उठती हुई ज्वाला.. आसमान को आगोश में लपेटता हुआ धुआं ये काशी की गंगा आरती है जो हर शाम काशी के लिए बहुत खास होती है।
भव्य गंगा आरती का साक्षी बनने हर शाम लोगों का हुजूम बनारस के घाट पर उमड़ पड़ता है। मंत्रों के उच्चारण, घंटों की आवाज, नगाड़ों की गूंज को सुन कर ऐसा लगता है कि ये हमारे अंतरात्मा को शुद्ध कर रही हो और आप उस दिव्य अनुभूति में ध्यान लगा कर आरती के स्वर में कही खो जाएंगे।
लेकिन कोई था जो उस भीड़ में भी कहीं शून्य में खोया हुआ था और देख रहा था दूर तक फैले गंगा के पाट को, दूर दूर तक दीपों से सजे घाट को, तेज गति से बहती हुई गंगा की धार को, और देख रहा था नए जोड़ों को करते दीपदान को।
हां दीपदान..!!
यही तो मृगाक्षी की इच्छा थी उस दिन कबीर के साथ गंगा की अविरल धारा में दीपदान करने की। अपने प्रेम को गंगा की लहरों से संघर्ष करते दूर तक दीप के रूप में जाते हुए देखने की। कितना जिद किया था उसने उस दिन काशी के घाट पे देर रात तक बैठने की।
कितनी ही बार मना किया था कबीर ने चलो लौट चले सूर्यास्त होने को है मगर वो नहीं मानी थी और बैठी रही कबीर के कांधे पे अपना सर रख उसके मजबूत हाथों को अपने कोमल हाथों से कस कर पकड़ कर।
उस वक्त तो कबीर को भी लग रहा था बस ये पल यही ठहर जाए और ये उम्र यूं ही गुजर जाए। कैद कर लेना चाहता था वो मृगाक्षी के साथ गुजरा हर पल मगर वक्त कहां कैद हो पाता है किसी की मुट्ठी में।
कहते हैं ना ऊपर वाले का लिखा कोई मिटा नहीं सकता कुछ ऐसा ही हुआ था उस दिन जब मृगाक्षी देर रात अपने घर पहुंची थी। दोस्त के घर रुक के पढ़ाई करने का बहाना दे के तो पहले घर वालों ने उसकी बात मान ली। मगर दूसरे दिन महौले की एक आंटी जी ने बात बात में उसके मां के कान भर ही दिए। उसके बाद शुरू हुआ सिलसिला मृगाक्षी के लिए योग्य वर ढूंढने का। कितनी ही बार मृगाक्षी रोई थी गिड़गिड़ाई थी मगर किसी ने उसकी एक न सुनी। घर से निकलना बंद हो गया और चंचल सी हिरनी जैसी आंखों वाली लड़की अपने आंखों में सपनों को जगह आँसुओं का सैलाब लिए घर में कैद हो के रह गई।
कबीर रोज सूर्यास्त के बाद घाट के सीढ़ियों पे बैठा उसका इंतजार करता रहा। मगर न मृगाक्षी आई न ही उसका कोई संदेश आया। संदेश आता भी तो कैसे उसने कभी किसी को अपने और कबीर के प्रेम के बारे में बताया ही नहीं था।
बस उनके प्रेम के साक्षी थे तो वो घाट की सीढ़ियां जिस पे दोनों घंटों एक दूसरे के साथ बैठे बातें करते रहते थे और वो दीपदान जो उसने आखिरी दिन कबीर के साथ उसके हाथों में हाथ दे किया था।
उस दिन उसके ऊपर पीली साड़ी कितनी जंच रही थी। कमर तक खुले बाल, जिसमें सुनहरे रंग की झुमकी कभी छुपती तो कभी बालों की लटों के साथ अठखेलियां करती दिख रही थी। दोनों भौंहों के बीच बिंदी की जगह उसके माथे का काला तिल उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा दे रहा था मानो। पैरों में पतली सी पाजेब और हाथों में हमेशा हरी चूड़ियां पहनी जब वो कबीर के कानों के पास खनकाती थी तो मानो उससे सुंदर मधुर ध्वनि कभी कबीर के कानों ने सुनी ही न हो और वो मंत्रमुग्ध भाव से उसके सौंदर्य को एक टक देखता ही रह गया था।
अपने ख्यालों में खोया कबीर बैठा ही था की तभी वही चूड़ियों की खनक की आवाज उसके कानों के पास से होते हुए गुजरी। लाल साड़ी, कमर तक खुले काली नागिन से लहराते बाल, मेहँदी रची हाथों में लाल चूड़ियां, पैरों में मोटा सा छागल और आलता से रंगे पैर लिए लड़की धीमे धीमे सीढ़ियों से उतर रही थी।
कबीर ने एक पल को हाथ बढ़ाया उसकी तरफ की उसको रोक के देख सके की क्या वो उसकी मृगाक्षी ही है या कोई और या कोई स्वप्न मगर वो ऐसा कर न सका वो वही जड़ हो गया मानो।
वो लड़की धीरे धीरे घाट पे नीचे तक उतरी और अपने पैरों को पानी में डालती हुई खड़ी हो गंगा को प्रणाम कर मंगलकामना करती दीपदान करने लगी। तभी कबीर का ध्यान उस लड़की के हाथ के नीचे हाथ को देखते हुए गया की बगल में उसका पति उसके साथ था।
कबीर ये सोच की ये उसकी मृगाक्षी नहीं हो सकती उसने उधर से नजरें फेर ली मगर रह रह के चोर नजरों से वो एक नजर छुप के उस ओर देख ही लेता। तभी वो जोड़ा जब पलटा तो कबीर की नजर उसके मांग में पड़े चौड़े लाल सिंदूर से होती हुई उसकी भौंहो के बीच लगी तिल की काली बिंदी पे पड़ी और उसका दिल वही धक कर गया उसके आगे उसे देखने की हिम्मत न हुई।
जब मृगाक्षी कबीर के बगल से गुजरी तो कबीर के कांधे पे उसके आंखों से बहते आंसू की एक बूंद पड़ी। जिससे कबीर विचलित हो उठा वो चाहता था मृगाक्षी को रोकना मगर बस जाती हुई मृगाक्षी को देखता रहा जब तक वो आंखों से ओझल ना हो गई।
कबीर उठा और किनारे से एक दीपदान खरीदता हुआ सीढ़ियों से नीचे उतरने लगा और उसने गंगा में अकेले ही मृगाक्षी के नए जीवन की मंगलकामना के साथ दीपदान कर वापस लौटने लगा अपने पहले प्यार के यादों के साथ।
...समाप्त।

