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Sheikh Shahzad Usmani

Fantasy

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Sheikh Shahzad Usmani

Fantasy

दि वर्ल्ड ऑफ़ रंजन वागले (भाग-1)

दि वर्ल्ड ऑफ़ रंजन वागले (भाग-1)

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"अब मैं घर कभी नहीं लौटूँगा। तुम लोग मुझे और मेरी शक्तियों को कभी नहीं समझ सकोगे, तो न तो तुम उन शक्तियों का इस्तेमाल कर सकोगे और न ही मुझे करने दोगे। ... तुम्हारे प्रदूषित घर, धर्म, समाज, देश और दुनिया... यहाँ तक कि इस बहुआयामी प्रदूषित धरती से मैं उकता गया हूँ। बेटा, पति, बाप, शिक्षक, नेता, अभिनेता, व्यापारी, दलाल, और धर्मगुरु सब कुछ बनकर ज़िन्दगी जी कर मैं तंग आ चुका था इस कलियुग के चाल-चलन, पालन-अनुपालन, आज्ञा-अवज्ञा नैतिकता-अनैतिकता, धर्म-अधर्म, दुष्कर्म .... सबसे जूझते हुए ... क़िताबी, आध्यात्मिक, ज्योतिष, तंत्रशास्त्र, धर्मशास्त्र ... सतरंगी-बदरंगी दुनिया में भटकते हुए,... मुक्तिधाम, क़ब्रिस्तान, सीमेट्री... न जाने कहाँ-कहाँ अज्ञात दुनिया की तलाश में यायावरी करते हुए।

तुम लोग मुझे पागल, सनकी, दार्शनिक कहते रहे... लेकिन अंततः मुझे लिंक मिल ही गई! मुझे एक जादुई तावीज़ मिल गया है। अब मैं अपनी मनचाही दुनिया बना सकूंगा या मनचाही दुनिया में पहुँच सकूँगा।

मुझे भूल जाओ। मुझे क्षमा करना। मैं जा रहा हूँ अपना लक्ष्य साधने!"

यह चिट्ठी क़ाग़ज़ में लिखकर, ईमेल कर और सोशल मीडिया के सभी प्लेटफार्मों पर अपलोड कर अधेड़ रंजन वागले केवल एक जोड़ी कपड़े और जूते पहने देर रात उस स्थान पर पहुँच गया, जहाँ, जिस वक़्त उसे पहुँचने की समझाइश दी गई थी।

उसने एक अंधकारमय सुनसान स्थान पर एक पुलिया पर बैठ कर अपनी पेंट की चोर ज़ेब से वह जंग लगा अजीब से आकार-प्रकार का तावीज़ निकाला और तीन बार ज़ोर-ज़ोर से घिसा। एक अजीब सी, आध्यात्मिक सी रिंगटोन सी बजी। एक डेड़-दो फुट का एलियन जैसा बिना हाथ-पैरों वाला सफ़ेद जिन्न प्रकट हुआ। 

"सुपर एजेंट प्रजेंट है... प्लेस योर ऑर्डर यायावर!" - बहुत ही सुरीले स्वर में वह जिन्न सीना तानकर बोला, "अंग्रेज़ी समझ लेते हो न! इसी के तो दीवाने हैं तुम्हारे देश के लोग न!"

"कई भाषायें बोल-लिख और पढ़ लेता हूँ। ढेर सारी डिग्रियां और सम्मान हैं मेरे पास!... तुम तो अब यह बताओ कि इस दुनिया से अब किस दुनिया में और कैसे ले जा रहे हो तुम मुझे?... न पैसे लाया हूं, न आधार कार्ड-पेनकार्ड और न ही डेबिट-क्रैडिट कार्ड। न ही मेरे पास कोई पासपोर्ट- वीज़ा वगैरह है... और न ही कल तुमने कुछ लाने को कहा था!" रंजन वागले ने एक साँस में अपनी बात कह दी और पूछा, "वैसे तुम्हारा नाम क्या है? कल समझ नहीं सका था मैं? कौन सी प्रजाति के जिन्न हो तुम?"

"तुम्हें खाली हाथ ही आना था यहाँ! ... बल्कि तुम्हें ये कपड़़े-जूते वग़ैरह भी त्याग देने चाहिए। क्या ज़रूरत है इस धरती के नंगे से इंसानों को अब इन चीज़ों की!" वह जिन्न हवा में लहराता हुआ बोला।

"पहले अपना नाम बताओ और फ़िर अपना काम शुरू करो! मैं यहाँ एक पल भी रुकना नहीं चाहता!" रंजन वागले ने अपने माथे का पसीना रूमाल से पोंछते हुए कहा।

"बड़े इमपेशेन्ट हो!... वैसे मेरा नाम लिलीपुट है। गुलीवर्स ट्रैवल ऐजेंसी का चीफ़ एजेंट हूँ। मिस्टर गुलीवर के भारतीय भाई ज्ञानी लीवर के अंडर में काम करता हूँ। ... अभी इतना परिचय काफ़ी है। ... बाक़ी तुम ख़ुद समझ जाओगे!" जिन्न की अजीब सी आवाज़ में ग़ज़ब की सम्मोहन शक्ति थी। वह रंजन के सिर के चक्कर लगाते हुए बोला, "अब तुम अपनी आँखें बंद करो। मनपसंद आसन लगाकर आख़िरी बार अपने माँ-बाप, रिश्तेदारों, गुरूजनों, नेताओं, मंत्रियों, एक्टरों, खिलाड़ियों, अफ़सरों और देवी-देवताओं वग़ैरह के नाम जप लो... वहाँ ये सब चोचले नहीं चलेंगे! तुम्हें घूमने-फ़िरने, भटकने और यायावरी की सनक है न... इसलिए मुझे भेजा गया है। क़िस्मत वाले हो, जो तुम्हें हज़ारों साल पुराना यह तावीज़ मिला कहीं पर!"

कुछ ही पलों में वह पुलिया खाली हो चुकी थी। रंजन वागले को वह डेढ़-दो फुटिया जिन्न लिलीपुट किसी दूसरी दुनिया की सैर कराने ले गया था।

दूसरे गृह की अजीबोगरीब दुनिया में रंजन वागले को देखने ढेर सारे बोने जिन्न वहाँ इकठ्ठे हो गये। रंजन की गहरी नींद लगी हुई थी। ज़मीन पर पड़े उसके शरीर पर 'शोधकर्ता जिन्न' ज्ञानी लीवर के बताये अनुसार काम पर जुट गये। एक विशेष जिन्न ने उसे होश में लाने की रस्म निभाई। रंजन आँखें मलता हुआ वहीं ज़मीन पर बैठ कर चारों तरफ़ नज़रें दौड़ने लगा। उसे न तो हैरत थी और न ही किसी तरह की घबराहट, क्योंकि उसने ऐसे सभी नज़ारों के बारे में भिन्न-भिन्न भाषाओं की फ़िल्मों, कार्टून मूवीज़ में पहले ही देख लिए थे और धार्मिक, तांत्रिक क़िताबों व रहस्यमयी कहानियों-उपन्यासों पर पढ़ लिये थे। वह तो यह समझने की कोशिश कर रहा था कि ये जिन्नात पढ़ी हुई किस किस्म के जिन्न हो सकते हैं। ........




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