धनवान
धनवान
वहां चारों तरफ बिखरी दूधिया रोशनी से नन्हे मयंक की आंखें चुंधिया सी गई थी। आज अपनी माँ के साथ, पहली बार काम करने बंगले पर आए। इस बच्चे ने, शायद पहली बार इतना बड़ा जलसा देखा था।
फिर अपनी माँ के काम में हाथ बटाते वह अपनी माँ से बोला, माँ तुम देखना एक दिन मैं भी पढ़ लिख कर इनकी ही तरह एक बड़ा आदमी बनूंगा।
और फिर बहन पिंकी का जन्मदिन, हम भी इतनी ही धूम धाम से ही मनाएंगे।
उसकी बात सुन अब उसकी माँ के चेहरे के भाव एकदम बदल से गए। और वह बोली, नहीं बेटा हम तो गरीब ही ठीक है। भगवान करे हम इतने धनवान कभी न बने।
माँ आखिर तू ऐसा क्यों कहती है, मयंक ने आश्चर्य भरी निगाह से उसकी ओर देखते हुए पूछा।
तब माँ उसे समझाते हुए बोली, क्योंकि बेटा गरीब के बच्चे चाहे रूखी सुखी खाकर गुजारा कर ले। पर अपने माता पिता को बुढ़ापे में कभी वृद्धाश्रम नहीं भेजते। इतना कहते हुए उसकी नजरें अब बड़ी मालकिन के खाली कमरे को निहार रही थी।
