Geeta Dhawanluckwal

Tragedy

3  

Geeta Dhawanluckwal

Tragedy

दहलीज

दहलीज

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"रीमा तुम !" "आशा तुम यहाँ !"

दोनो एकदुसरे  को देखकर खुशी से पागल हो गई । एक दूसरे के गले लग कर  पुरानी सहेलियां प्यार्का इजहार कर रही थी।सालों बाद अचानक आज दोनो की मुलाकात जो हुई थी।


रीमा ने फिर पूछा ,"तुम यहाँ कैसे आशा?"

आशा ने कहा,"मैं यहां बैंक मैं जोब करती हूँ।"

रीमा उसकी बात सुनकर अचंभित होकर बोली,

"क्या!तुम्हारे पति तो तुम्हे नौकरी नहीं करवाना चाहते थे न,फिर ..."

"हाँ रीमा पर अब मैं वहाँ नहीं रहती।" आशा ने बात काटते हुए बोला।


मगर क्यूँ?,तुमने तो बड़ी तारीफ की थी ,आकाश की।जब तुम्हारी शादी के एक साल बाद हम मिले थे। फिर ये...


रीमा ने तुरंत अपने प्रश्न उसके सामने रख दिए क्युकी उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। एक बार मिलने पर आशा ने आकाश की जो तारीफ की थी न।सब उसके विपरीत। आखिर क्यों?कैसे?

अनेकों प्रश्न उठ रहे थे उसके मन में।


"हाँ !रीमा,वो उस वक्त सच में बहुत अच्छे थे l मुझे बेहद प्यार करते थे वो ही नहीं,उनका पूरा परिवार जान छिड़कता था मुझ पर।सच बोलूं तो मायके से भी ज़्यादा प्यार मिला था मुझे यहां।"


 "आकाश और उसके परिवार वाले ,नौकरी तो क्या,किसी पार्टी फंक्शन से लौटती ,तो सासू माँ नजर उतारा करती थी..."


 "तो ,फिर अचानक क्या हुआ आशा, क्यों इतना बदल गए वो लोग?रीमा ने फिर से प्रश्न किया।

आशा कुछ बोलती उससे पहले ही रीमा ने फिर एक प्रश्न किया,"

तुम्हारे,बच्चे नहीं है क्या?"


आशा रूआंसी सी होकर बोली,"है रीमा, पर दोनों बेटियाँ है।


तो?रीमा अभी भी बैचैन थी सब कुछ अपनी सहेली के बारे में जानने के लिए।

आशा का चेहरे पर उदासी साफ दिख रही थी।रीमा पास के रेस्तरां में उसे ले गई। उसे पानी पिलाया और दो कॉफ़ी ऑर्डर की।आशा अपनी सहेली से बात करके , कुछ हल्का महसूस कर रही थी। जो दर्द तकलीफ़ उसने किसी को नहीं कही , वो सब आज खुलकर रीमा को कह देना चाहती थी वो।कॉफी पीते -पीते ,उसने रीमा की और देखा,"रीमा की आंखो में उसे प्रश्न खुद ब खुद नजर आया जैसे वो पूछ रही है ,"आगे क्या हुआ आशा बताओ? 


आशा तुरंत बोल पड़ी,"मेरी पहली बेटी के होते ही,आकाश और उनके परिवार वालों का रूख बदल सा गया।दूसरी बेटी हुई तब मुझे कोसने लगे।पर मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।मगर आकाश,अब रात देर तक घर आने लगे।न पहला सा प्यार।न बेटियों को कभी गोद में खिलाना।सासू माँ हर बात में बेटियों को लेकर ताने देती।फिर भी मैं खुश रहने की कोशिश करती रही ।किसी की बातों पर ज़रा भी ध्यान नहीं देती। सोचती थी कुछ समय बाद सब सही हो जाएगा।"

 "फिर?"

फिर क्या रीमा । आशा ने गहरी सांस ली और बोली,"उस दिन मेरे भैया का जन्मदिन था। उन्होनें बुलाया था। मैनें आकाश को चलने के लिए कहा।उन्होनें किसी काम का बहाना कियाऔर मुझे अपनी बेटियों के साथ जाने को कहा।उससे पहले कभी एेसा नहीं हुआ था,वो हरदम मेरे साथ जाया करते थे चाहे , मुझसे व मेरी बेटियों से नफरत करते थे।खैर!मैं दोनों को लेकर भाई के घर चली गयी जब मैं लौटी तो घर की दहलीज़ पर आकाश के साथ लाल जोडे़ में खड़ी औरत को देख,मेरे तो होश उड़ गये।"


"क्या!आकाश ने शादी?"


"हां रीमा , उसने दूसरी शादी कर ली थीएक बार तो सोचा,पूछुँ ।क्या बस मेरे दहलीज लाँघने का ही इंतजार था?"


"आकाश ने इतना बड़ा कदम उठा लिया। आशा और तूने कुछ..."


आशा ने फिर रीमा की बात काटी और बोली,"

"कोई फायदा नहीं था बहस करने का रीमा, इसलिए बिना  क्यों , क्या का प्रश्न किए।

मैं वहां एक पल ना टिकी ।बिल्कुल नहीं गिड़गिड़ाई उन लोगो के सामने। हिम्मत रख चल दी पुलिस थाने। उसके और उसके परिवार के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाई।"


"अच्छा किया आशा। फिर तू और बच्चे मायके.."


"न न न।मायके की दहलीज पर कदम रख उनपर बोझ नहीं बनना था मुझे रीमा।

मैंने एक कमरा लेकर ।पहले तो दो तीन घर में ट्यूशन पढ़ाने लगी और नौकरी ढूंढ़ती रही। फिर मेरी बैंक में जॉब आ गई।"


"और आकाश और उसका परिवार?सजा मिली उन्हें?"


"हां रीमा, वो सब जेल में हैं।"आकाश और उसका परिवार जेल की दहलीज पर खड़ा माफी की गुहार लगा रहा है ।और मैं बेहद खुश हूं अपनी दोनों नन्ही परी सी बच्चियों के साथ..।"





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