सीता की अग्नि परीक्षा कब तक
सीता की अग्नि परीक्षा कब तक
प्रिया कभी अपनी अंगुलियों पर तो कभी कैलेंडर पर रवि के आने के दिन गिनती रहती थी।
रोज़ कैलेंडर पर निशान लगाकर मन ही मन कहती,"आज एक दिन और कम हुआ।
आखिर रवि के लौटने का दिन आ गया ।
प्रिया सुबह से घर को व खुदको दुल्हन की तरह सजा रही थी।
रवि के मनपसंद पकवान की बाड़ लगा दी थी प्रिया ने।
रवि के आते ही वो उसके सीने से लग गई।कितने समय बाद लौटे है रवि।कितना मुश्किल था यहां एक पल भी काटना।
अब मैं तुम्हे कभी नहीं जाने दूंगी।
नहीं चाहिए मुझे बहुत पैसा।
बोली न कभी नहीं जाओगे मुझे छोड़कर?
रवि ने उसे दोनों हाथों से झ्टका और बोला,"छोड़ दो ये नाटक करना प्रिया।
"तुम मेरे बगैर कितनी खुश थी मुझे सब पता है ।
यहां कोई रोकने टोकने
वाला नहीं था।जब चाहे तुम्हारा बॉस घर आए जब चाहे जाए।
मुझे सब पता है ये नाटकबाजी किसी और के सामने करना समझी।"चली तो अब अंदर जाने दो मुझे।
कहता हुआ, अंदर की ओर चला गया।
प्रिया दरवाजे पर स्तब्ध खड़ी जी खड़ी रह गई। आंखें सावन की तरह बरस रही थी।
वो समझ नहीं पा रही थी कि वो क्या करे।मन ही मन कहने लगी,"
बॉस तो मेरे बड़े भाई जैसे है। मैं रवि को पल पल की खबर देती थी। बॉस तो सिर्फ तब घर आए थे जब मांझी यहां थी।वो भी उन्हें अस्पताल ले जाने।
कैसे यकीन दिलाए रवि को? कैसी अग्नि परीक्षा दे। अपने को सही साबित करने के लिए।
खुद तो पूरे साल बाहर रहे मैंने तो एक बार भी उनसे ये प्रश्न नहीं किया।
आखिर सीता ही कब तक अग्नि परीक्षा देगी...