धीरज
धीरज
एक राजा हुआ करता था बड़ा ही परोपकारी और दानी। साधू संतो की सेवा किया करता था और सबकी मदद करता था। एक बार एक महात्मा उसके दरबार में उपस्थित हुए। राजा को उनका खूब आदर सत्कार किया। उंसी सेवा से खुश होकर महात्मा ने उनको एक कपड़ा दिया जो थैली की तरह बंधा हुआ था। महात्मा ने राजा को कहा कि जब तुम विप्पत्ति में हो और कहीं से कोई भी मदद की आस नजर ना आए तब तुम इसको खोलना। राजा ने वो कपड़ा संभाल कर रख दिया।
धीरे धीरे समय गुजरता गया। एक बार दुश्मन देश की सेना ने उस राज्य पर आक्रमण कर दिया और नगर को आग के हवाले कर दिया। राजा को मारने के लिए सैनिक उनके पीछे लग गये। राजा एक झोपड़ी में छिप गया। कुछ देर बाद उस झोपड़ी में भी आग लग गयी। सैनिक ये सोचकर वापस चले गये कि राजा जलकर मर गया हैं। धीरे धीरे आग की तपिश राजा तक पहुँचने लगी। राजा ने अपना अंतिम समय निकट जानकर वो कपडे की पोटली खोली तो उनको बड़ी निराशा हुई। उसमे लिखा हुआ था कि "चिंता मत करो। सब ठीक हो जाएगा।"
राजा ने सोचा कि उन महात्मा ने मुझे मुर्ख बना दिया। मैं इतने सालो तक ये कपड़ा संभाल कर रखा कि मुश्किल में काम आएगा। आज मैं जलकर मरने वाला हूँ और ये कहता हैं कि चिंता मत करो।
राजा क्रोधित हो गया मगर अगले ही पल अपनी मौत को नजदीक देख आँखे मींचकर बैठ गया। जैसे अपनी मौत का इंतजार कर रहा हो। कुछ ही देर बाद मौसम बदला और बारिश शुरू हो गयी। बारिश से आग बुझ गयी और राजा सुरक्षित हो गया। राजा को अपार प्रसन्नता हुई ।वो ख़ुशी से झूम उठा। उसके आसपास पानी का बहाव हो गया और उस पानी में पड़े उस कपड़े पर लिखा था- "चिंता मर करो। सब ठीक हो जाएगा।"
आज राजा को धीरज रूपी धन की कीमत मालूम हो गयी थी।