श्रद्धा
श्रद्धा
एक गांव में दो दोस्त रहते थे। दोनों एक बार घूमने गए। वहां कोई संक्रामक रोग फैला हुआ था लिहाजा दोनों दोस्त उसकी चपेट में आ गए। गांव आकर एक दोस्त ने कहा कि चलो गांव के वैद्य को दिखाते हैं। इस बात पर दूसरा दोस्त राजी नहीं हुआ। उसका मानना था कि इस बीमारी का इलाज गांव के वैद्य के पास नही है इसलिए शहर जाकर दिखाना चाहिए।
पहले दोस्त ने काफी मशक्कत के बाद दोस्त को मना लिया और दोनों गांव के वैद्य को दिखाने चले गए। वैद्य में जांच करने के बाद कहा कि तुम दोनों को एक ही बीमारी है। निरन्तर मेरी दवाई लो तो ठीक हो जाओगे। दवाई लेकर दोनों दोस्त घर आ गए। एक दोस्त निरन्तर अपने से दवाई लेता मगर दूसरा ऐसा नहीं करता। पहला दोस्त भी उसके दवाई का अपने से ख्याल रखना लगा और अपने साथ उसको भी टाइम पर दवाई देता था। दिनों दिन एक दोस्त ठीक होता गया और दूसरा दोस्त अस्वस्थ जबकि दोनों समय पर दवाई ले रहे थे। एक दोस्त पूर्णतया स्वस्थ हो गया। दूसरे दोस्त की तबियत में सुधार नहीं हुआ तो वह शहर में डॉक्टर को दिखाने चला गया और उसकी दवाई से ठीक भी हो गया।
दोनों दोस्तों को ये समझ में नही आ रहा था कि जब दोनों के बीमारी एक जैसी ही थी तो दोनों एक ही दवाई से ठीक क्यों नहीं हुए। कुछ दिनों बाद वो पुनः उस वैद्य के पास गए और उनको इसके बारे में पूछा तो वैद्य ने जवाब दिया कि तुम दोनों को मैने एक ही दवाई दी थी मगर फर्क श्रद्धा का था। एक को ये विश्वास था कि मैं इस दवाई से ठीक हो जाऊंगा तो वो ठीक और एक को ये विश्वास था कि मैं इस दवाई से ठीक नहीं होऊंगा तो वह नही हुआ। जिस प्रकार बिना श्रद्धा के भक्ति व्यर्थ है वैसे ही बिना विश्वास के उपचार भी व्यर्थ है।
जीत जांगिड़