हैसियत

हैसियत

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एक राज्य में एक राजा राज करता था। उसका प्रधानमंत्री बड़ा स्वामिभक्त था। उसकी नीतियों से राज्य की आमजनता सुख से जीवनयापन कर रही थी। राज्य में राजा से ज्यादा लोकप्रियता उनके प्रधानमंत्री की थीं। कई बार जनता और मंत्रियों ने प्रधानमंत्री को कहा कि राजा से बगावत करके आपको राजा बना लेते हैं मगर प्रधानमंत्री हमेशा इसके लिए मना कर देते और कहते कि मेरी ये हैसियत नही है। प्रधानमंत्री जहां भी जाता तो अपने साथ एक बक्सा रखता। उस बक्से में क्या था? ये कोई नहीं जानता था, यहां तक कि राजा को भी जानकारी नहीं थी। जब राजा उनको उस बक्से के बारे में पूछता तो प्रधानमंत्री हंसकर सिर्फ इतना कहते कि महाराज। इसमें आपका राजयोग हैं। जिस दिन ये बक्सा खो गया, उस दिन आपका राज्य चला जाएगा। धीरे धीरे समय गुजरता गया और राजा वृद्ध हो गया। राजा जब काफी बीमार हुआ और अपनी अंतिम सांसे गिन रहा था। तब उसने अपने प्रधानमंत्री को कहा कि मैं ये जानता हूँ कि मेरे राज्य में मेरे से ज्यादा आपकी लोकप्रियता हैं और जनता भी आपको राजा देखना चाहती हैं। आप चाहते तो कभी भी बगावत करके राजगद्दी पर अधिकार कर सकते थे तो फिर आपने किया क्यों नहीं।

प्रधानमंत्री कुछ देर शांत रहे हो फिर अपना बक्सा खोलकर राजा के सामने रख दिया। राजा ने देखा कि उसमें कुछ पुराने कपड़े और जूते थे। ये सब देखकर राजा में पूछा- 'ये क्या है?'

प्रधानमंत्री ने जवाब दिया- 'हैसियत महाराज। मेरी हैसियत हैं ये।' 

महाराज ने चकित होकर पूछा- 'क्या मतलब?'

प्रधानमंत्री ने मुस्कुराते हुए कहा कि महाराज। मैं अक्सर आपको कहता था ना कि जिस दिन यह बक्सा खुल गया उस दिन आप की राजगद्दी चली जाएगी। दरअसल यह बात सही है कि राज्य की जनता मुझे राजा बनाना चाहती थी मगर मैं आपसे गद्दारी नहीं कर सकता था। लिहाजा मैंने अपने ये पुराने कपड़े अपने सदा पास रखे कि जब भी मुझे इस बात का घमंड हो कि मैं राजा बन सकता हूँ तब मैं ये बक्सा खोलकर देखता हूँ जिससे मुझे स्मृति हो आती हैं कि एक गरीब को कैसे आपने अपना प्रधानमंत्री बनाकर उपकार किया था। ये बक्सा सदा मुझे अपनी हैसियत याद दिलाता है।

कहकर उन्होंने बक्से को गौर करके देखने लगे। जैसे अपने अतीत को ताजा कर रहे हो। दूसरी तरफ राजा की आंखे अपने स्वामिभक्त प्रधानमंत्री की निष्ठा देखकर देखकर छलछला रही थी।



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