धब्बा
धब्बा


बीरेंद्र माघ संक्रांति को गंगा स्नान कर रात वाली ट्रेन से वापस लौट रहा था। वैसे तो वो नास्तिक था पर दिन -रात बिना कुसूर का थाने -जेल का चक्कर लगा कर परेशान हो गया था, घरवाले के कितना कहने पर सोचा चलो एक बार गंगा स्नान कर ही लेता हूँ शायद मेरे ऊपर लगे दाग -धब्बे धूल जाये।
ट्रेन में काफी भीड़ थी। जनरल बोगी थी,लोग अंदर सीट तक जाने की उम्मीद से गेट में जबरन घुस तो जाते थे पर सीट तक जा नहीं पाते थे क्योंकि वो पहले से भरी हुई थी बीरेंद्र के साथ भी ऐसा ही हुआ, सीट नहीं मिलने के कारण रास्ते के बगल में ही खडा हो गया। भीड़ बढ़ती ही जा रही थी, तभी उसका ध्यान सामने से आ रही आवाज पे गया -
"थोड़ा सा आगे जाने दो मुझे !" कहते -कहते 12 साल का दीपू गेट के पासवाली भीड़ को तो पार कर गया पर सीट की पासवाली भीड़ को पार कर पाना मुश्किल हो रहा था उसने भी गेट के पासवाली भीड़ में ही खड़े रहना उचित समझा पर उसे कोई खड़ा होने दे ही नहीं रहा था मजबूरन आगे बढ़ना पड़ा। उसे तो समझ ही नहीं आ रहा था क्या करे ?
पीछे वाले जबरन आगे धकेल कर डांट रहा था और आगे वाले उसे आगे जाने नहीं दे रहा था इसी कर्म में उसने एक महिला, जिसे साथ वाले सुनीता कह रहे थे ; की पैर की ऊँगली चीप दी अनजाने में। सुनीता ने उसे डांटा -"दिखाई नहीं दे रहा तुम्हे ? कहाँ तुम मेरे सर पे चढ़े आ रहे हो !"
सुनीता के इस कड़क डांट से दीपू डर से वंही रुक गया। दीपू काफी दुखी मालूम हो रहा था ऐसा लग रहा था जैसे वो रूठ कर घर से भाग गया हो या फिर किसी ने मारा हो जैसे घंटो पहले भी जी भर रोया हो और इस तरह की डांट से वो फिर से रो देगा पर वो अपने आंसू को रोकने की सफल कोशिश कर रहा था। सुनीता को उसकी हालत पर दया आ गयी उसने दीपू को अपने आगे खड़ा कर दिया उसे देख के लग रहा था की वो अकेला ही है।
" अकेले हो तुम ?" सुनीता ने पूछा तो वो बोला -" हाँ !" " क्या नाम है तुम्हारा ?""दीपू !""कहाँ जा रहे हो ?""गांव !""आ कहाँ से रहे हो ?"" अस्पताल से …|"" अच्छा !अस्पताल में काम करते हो ?""नहीं दीदी है।""औ !तुम्हारी दीदी काम करती है |""नहीं ! वो रहती है।""वो बीमार है ?"इस बार दीपू असमंजस में बोला -"नहीं वो अस्पताल में भर्ती है।"
सुनीता को लगा शायद वो प्रेग्नेंसी की वजह से भर्ती होगी या फिर जो भी हो हमे क्या ?वो बोली -"अच्छा ठीक है तुम जाओ वहां उस खिड़की की पास दोनों सीट के बीच में जमीन पर बैठ जाना।"
वो किसी तरह आगे चला गया पर वहां दोनों तरफ सीट पर बैठे यात्रियों ने उसे जमीन पर बैठना तो दूर किसी ने खड़े भी होने नहीं दिया। हार कर फिर वो भीड़ की ओर ही आ कर खड़ा हो गया। रात का सफर था आधे से अधिक लोग लम्बी दुरी की यात्रा कर रहे थे, जो खड़े थे वे भी, और जो बैठे थे वो भी।जो बैठे थे वे पसर कर बैठे थे,लड़ना हो तो लड़ लो पर क्या मजाल जो जरा सा सिकुड़ कर बैठे और थोड़ी सी जगह किसी ओर को दे दे। अरे ! बैठने को तो छोड़िये पैरों के पास जमीन पर किसी को खड़े नहीं होने दे रहे थे !!सुनीता ये सब देख के बड़बड़ाई -"इतनी भीड़ है गेट के पास, दो -तीन जने तो हर डिब्बे के दोनों सीट के बीच में जा कर खड़े हो ही सकते हैं अगर मै पुरुष होती तो जबरन बीच में जा कर खड़ी हो जाती पर दोनों ओर पुरुष के बीच में, मैं महिला जा के खडी हो जाऊं अच्छा नहीं लगता।"
उसकी बातें बीरेंद्र ने सुनी तो उसे लगा ठीक ही तो कह रही है। वो थोड़ा आगे बढ़ कर सीट के बीच में खड़ा होने गया पर थोड़ी ही देर में वो भी वापस आ गया उसे लगा किसी से उलझने का मतलब मुसीबत को बुलाना है ¡ वैसे भी उसकी शकल ही अपराधी जैसी दिखती है ना शायद इसलिए लोग खैर छोड़ो।
इस बीच दो -तीन स्टेशन पर गाड़ी रुकी हर स्टेशन पर पांच लोग उतरते थे तो दो लोग चढ़ते थे इस वजह से भीड़ थोड़ी घट गई थी तो जिनके खड़े -खड़े पैर थक गए थे वे सब अपनी -अपनी जगह पर ही बैठ गए थे, सामने वाले डिब्बे में भी तीन -चार महिलाएं रास्ते की जमीन पर ही चादर फैला कर बैठ गयी उसके बगल में थोड़ी सी जगह बची थी सुनीता ने दीपू को इशारा किया की वो जा के वहां बैठ जाये ; वो वहां जा कर खड़ा हो गया पर उसे डर लग रहा था की कोई उसे यहाँ से भी डांट कर न भगा दे पर थोड़ी देर खड़े होने के बाद उसे भी नींद आने लगी तो वो वहीँ पर हिम्मत कर के बैठ गया और बगल की सीट से सर अटका कर सो गया।
रात के डेढ़ -दो बज रहे होंगे गाड़ी की चाल थोड़ी धीमी हुई तो ऊपर बैठे कुछ यात्री दीपू के पास ही कूद के उतर गये इससे उसकी नींद टूट गई। जब गाड़ी खुली तो रास्ता थोड़ा खाली लग रहा था दीपू भी उठ कर बाथरूम की ओर गया फिर आकर जंहा बैठा था जमीन पर, वंही आकर बैठ गया।बैठे -बैठे फिर उसकी आँख लग गयी |
थोड़ी देर बाद वहां पर बैठी महिलाएं उसे झकझोर कर उठाने लगी -" ऐ उठ !मेरे मोबाईल है यंहा पर ढूंढने दे |"
सबने मिलकर मोबाईल ढूंढा पर मिली नहीं ¡अब सब दीपू पर संदेह करने लगे महिलाएं पूछने लगी-" मोबाईल तुमने लिया है ?""नहीं !""अरे नहीं !तुम यंहा पर सटकर बैठने आया था ताकि तुम मोबाईल चुरा सको तुमने ही लिया है मोबाईल |""मैंने नहीं लिया है मोबाईल !मै क्या करूंगा आपका मोबाईल ले के।"
हंगामा हो गया सभी उसपर दबाव देने लगे। हर तरफ से उसे डांट -फटकार मिलने लगी , वो बेचारा रोते हुए बस यही कहे जा रहा था - " मैंने नहीं लिया मैंने नहीं लिया।"
सुनीता को अब बहुत पछतावा हो रहा था बेकार ही उसे वहां बैठने के लिए बोला, बेचारा फंस गया बेवजह। उसने उन महिलाओं से कहा -" आप जहाँ बैठीं हैं वहां से कई लोग आये गए पर आप किसी और को न बोल के सिर्फ उसे ही क्यों बोल रहीं हैं ?क्योंकि वो अकेला और शरीफ बच्चा है इसलिए !मै आपसब को बता दूँ की मैंने ही उसे वहां बैठने को कहा था, वो तो डर से जाना भी नहीं चाहता था| अगर उसने मोबाईल चुराई होती तो वापस वो उसी जगह पर मार खाने के लिए नहीं आता वो या तो दूसरे डिब्बे में चला जाता या फिर ट्रेन से ही उतर जाता।"
सुनीता की बातों से कुछ लोग सहमति में सर हिलाते हुए चुप हो गए पर कुछ थे जो अब भी उस पर सक कर रहे थे।सीट पर आराम से पसर कर बैठे एक यात्री ने कहा -"तभी तो मैंने उसे यहाँ बीच में खड़े होने नहीं दिया पता नहीं कब आँख लगती और ये सामान ले के गायब हो जाता |"
तभी बीरेंद्र ने व्यंग करते हुए कहा -"हाँ भाई !आपकी बात मानने वाली है, जहाँ लोग मुश्किल से चल पा रहे हैं वहां पर आपका का सामान ले कर कोई भी भाग सकता है !"
तभी किसी ने कहा इस लड़के को दो - चार चांटा लगाओ कस के अपनेआप बताएगा उसी ने चोरी की है। ये सुनकर सुनीता बुदबुदाई -" मार के डर से बड़े -बड़े निर्दोष होते हुए भी जुर्म कबूल लेते हैं। वो तो बच्चा है कोई उसका अपना है नहीं ना, इसीलिए सभी उसको परेशान कर रहे हैं अरे उसकी तलाशी ले लो मारोगे क्यों ?"
सुनीता की बातें सुन कर बीरेंद्र को भी कुछ बोलने की हिम्मत जागी उसने तेज आवाज में बोला --"भाई आपलोग उसकी तलाशी ले लो, मारोगे उसे कैसे आपने उसका जुर्म साबित किया ?आप उसकी तलाशी ले लो, उसका सामान चेक कर लो अगर आपका मोबाईल मिल गया इसके पास तो आप अपना मोबाईल रख लो और इसे पुलिस के हवाले कर दो और अगर ये दोषी साबित नहीं होता है तो आपको इसे मारना तो दूर डांटने का भी कोई हक़ नहीं है उल्टा पुलिस केस आप पर हो जायगा। तभी से देख रहा हूँ सभी इसे कितना परेशान कर रहे हो।"
भीड़ थोड़ी शांत हो गयी पर वो महिलाएं बोल उठी - "आप बोल रहें हैं तो क्या आप मेरा मोबाईल दे देंगे ?"
"नहीं दूंगा तो इसका मतलब ये तो नहीं है की आप जबरदस्ती किसी बच्चे को मार- पिट कर चोर कह दो आप सबकी तलाशी लो मिल जाये ले लेना।"
उसने दीपू को बोला - " रे लड़के तू इधर आ !अपना आंसू पोछ और डर मत अगर तुमने चोरी नहीं की है तो ये लोग तुम्हें कुछ नहीं कर पाएंगे तेरा सामान कहाँ है ?"
दीपू ने एक चावल की बोरी से बने झोले की ओर इशारा किया तो बीरेंद्र ने कहा --"बस !यही है तुम्हारा सामान।"
जिन्होंने उसके हाथ में वो झोली देखी थी सबने उसकी बातों में सहमति जताई। लोगों ने दीपू की भी तलाशी ली उसके पास से दस रूपये के नोट और एक ट्रेन टिकट के आलावा कुछ नहीं मिला। बीरेंद्र बोला - "अब आपलोग इधर देखिये मै इसका सामान पलट रहा हूँ।"
उसके झोले में से एक पुरानी निकर, एक धूली हुई पेटीकोट और एक गमछा साथ में PMCH के दवाई की एक पर्ची थी बीरेंद्र ने कहा - " इसमें तो रूपये भी नहीं है रुपया कहाँ है तुम्हारे पास।"
" है न !ये 10 रूपये है ना !"
उसने अपने आंसू पोछते हुए 10 रूपये के नोट निकाल कर दिखा दिए, लोगों ने उससे नाम पता वगैरह पूछा तो उसने सबका वही जवाब दिया जो उसने सुनीता को बताये थे तभी किसी ने कहा --"हो सकता है ये मोबाईल चुरा कर किसी और को दे आया हो ये एक बार यहाँ से उठ कर बाहर भी गया था क्योंकि ये छोटी -मोटी चोरियां इस उम्र के बच्चे बखूबी करते हैं, ये लोग किसी बड़ी चोर गिरोह में मिले होते हैं।"
" किसी ने देखा भी तो नहीं है इसे लेते -देते हुए ! तो ये बेगुनाह भी तो हो सकता है, और जब एक बेगुनाह को सजा मिलती है तो उसका प्रतिशोध उसे गुनाहगार बना देती है वैसे भी अगर आपको ऐसा लगता है तो, आप पुलिस को बोलो वो पता लगायेगी।"
" पुलिस क्या कर लेगी ?वो भी मिली होती है गिरोह से।"
" आपलोग क्या कर लोगे इसे मारने -पीटने के आलावा क्या आप मोबाईल दे दोगे ?भला तो कर न पाओगे किसी का ,पर किसी का बुरा करना हो तो साथ देने जरूर आओगे।"
वो आदमी चुप हो गया। बीरेंद्र ने दीपू से पूछा - " कहाँ उतरोगे ?""नारायण पुर "लोगों ने उसका टिकट चेक किया तो वो पटना से नारायण पुर तक का ही था। उससे पूछा - "उसके बाद कहाँ जाओगे ?"
"कीरत नगर ""पैसे तो हैं नहीं तुम्हारे पास में !""10 रूपये है टेम्पू वाले को दे दूंगा वो चौक पर उतार देगा वहां से 2 मिनट में घर पहुँच जाऊंगा।"बीरेंद्र ने अपने पास से पचास रूपये देने चाहे पर उसने मना कर दिया बोला -"नहीं माँ मारेगी।"
बीरेंद्र उसे सही -सलामत डिब्बे से उतार दिया। अब वो महिलाएं उस से उलझने लगी बोली - "आपने तो उस लड़के को उतार दिया अब मेरा मोबाइल कौन देगा ?"
"क्या बात कर रहे हैं आप और ये भीड़ मिल के उसे मार देते तो क्या आप का मोबाईल मिल जाता ? गलती तो आगे होके आपने ये की, की इतनी भीड़ में मोबाईल को जमीन पर रख के लापरवाह सा बैठ गई वहां से कितने लोग आये -गए मोबाईल तो कोई भी ले सकता है ना, मै भी !ये भाई साहब भी !और आपकी साथ वाली भी !आप इनलोगों को क्यों नहीं बोलती ?क्यों की इनलोगों पर ऊँगली उठाना आपके बस की बात नहीं है, ये लोग आपसे मजबूत हैं दीपू के जैसे अकेला और कमजोर नहीं।"
सुनीता ने गुस्से में कहा -'"अभी कोई बंदूक लेके आये और इतने लोगों के सामने किसी को मार के चला जाये तो सभी अंधे -बहरे -गूंगे,बन जायेंगे।"
"पर किसी बेगुनाह को या छोटी सी गलती करने वाले को सजा देनी हो तो मुर्दों में भी जान आ जाती है।"
बीरेंद्र बीच में ही बात काट कर बोल दिया फिर सुनीता बोली -
" पता है होता क्या है ?जब किसी का भला करना हो तो आप अकेले होते हो पर किसी का बुरा करना हो तो पूरी भीड़ हाथ सफाई के लिए आ जाती है जब गुनहगार को सजा और बेगुनाहो की जान बचाने की बात हो तो कोई नहीं बोलेगा क्योकि गुनहगार से सभी डरते है की कही हमारा भी कुछ बुरा न कर दे पर वो बच्चा क्या कर लेता इसलिए सभी टूट पड़े।"
" पर जानते हैं इससे क्या होता है, एक निरपराध बालक पर भी अपराधी का दाग लग जाता आप सब तो उसे पिट -पाट कर अधमरा कर पुलिस के हवाले कर देते आपका सामान पुलिस तो दे नहीं सकती पर उस बच्चे को जेल में रख कर अपराधी का मुहर जरूर लगा देती। कुछ दिन सजा दे कर उसे छोड़ देती, फिर कुछ दिन बाद कोई अपराध होता तो उसे ही पकड़ के ले जाती और कुछ महीनो बाद फिर छोड़ देती ये सब सिलसिलेवार होता फिर बड़ा होकर ना चाहते हुए भी वो एक धब्बेदार अपराधी बन जाता क्योंकि आपसब मिलके उसपे खुद किये गए अपराध का धब्बा जो लगा चुके होते और आप ही सोचिये !अगर आपका बच्चा अकेले सफर कर रहा हो और उसके साथ कुछ ऐसा हो जाये तो आपको कैसा लगेगा ?ये धब्बा क्या होता है ? मै जनता हूँ !! मै इसका भुक्तभोगी हूँ !"
अबतक उसका स्टेशन भी आ चूका था, वो उतर कर अपने गन्तव्य की ओर ख़ुशी -ख़ुशी चला गया। उसे महसूस हो रहा था कि आज उसने अपने ऊपर लगे धब्बे को धोया है उस बालक को अपराधी के धब्बे से बचा कर।