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मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

Tragedy

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मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

Tragedy

देश का भविष्य

देश का भविष्य

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गर्मियों की सुबह... सूरज धीमे-धीमे प्रकट हो रहा था । रमुआ अपने झोंपड़े के सामने पड़ी टूटी सी चारपाई पर खर्राटे मार रहा था । रमुआ की घरवाली मरघिल्ली पड़ोस से पानी ला चुकी थी और रमुआ का लड़का चंपू बकरियां चराने खाली खेतों की ओर निकल चुका था । 


मरघिल्ली ने देखा रमुआ जागने का नाम ही नहीं ले रहा तो चिल्लाते हुए उसे झकझोर दिया । रमुआ उठ बैठा ।


‘अरे, थोड़ा और सो लेने देती ।’ रमुआ उवासी भरता हुआ बोला ।


तरह -तरह का मुंह बनाते हुए मरघिल्ली बोली - ‘हां, सारा दिन सोते रहो, सूरज सिर पर चढ़ आया, काम पर नहीं जाना ।’


 ‘नहीं, काम पर नहीं जाऊंगा, रामसनेही ठेकेदार बेईमान है । उसने मेरी हाजिरी कम लगाईं हैं, मुझे काम करते 25-30 दिन हो गये उसके यहां और वो ससुरा 17 दिन बता रहा है ।’


‘हां तो उसका रजिस्टर दिखवाओ ना ।’ मरघिल्ली ने सलाह दी ।


 ‘अरे किसको दिखवाऊं... मैं तो अनपढ़ गंवार हूं, मैं क्या जानू हिसाब- किताब ।’


 ‘हिसाब -किताब की चिंता क्यों करते हो अपना श्यामू सातवीं में पढ़ता है । वो देख लेगा हिसाब- किताब ।’


 ‘क्या खाक देख लेगा, कल शाम मैंने पूछा था उसे, कुछ न बोला । सरकारी स्कूल में पढ़ने वाला क्या खाक गणित जाने ।’ रमुआ मरघिल्ली की तरफ मुंह लटका कर बोला ।


 मरघिल्ली माथे पर हाथ रखते हुए बोली - ‘ये नाशमिटे सरकारी स्कूल के मास्टर- मास्टरनी मोटी- मोटी पगार लेके भी गरीबों के बच्चों को कुछ नहीं पढ़ाते । सरकार की आंखों में धूल नहीं पिसी हुई लाल मिर्च झोंक रहे हैं ।’


यह बात सही है कि अधिकांश सरकारी विद्यालयों में सेवारत अध्यापक- अध्यापिकाएं बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं । उच्चाधिकारी मौनी बाबा बने मोटी तनख्वाह व ऊपरी कमाई पाकर भी वातानुकूलित कार्यालयों में बैठ अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री कर रहे हैं । कोई किसी पर कार्यवाई करना ही नहीं चाहता । सब मिलजुलकर दीमकों का कार्य पूर्ण कर रहे हैं । देश का भविष्य खतरे में है ...।




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