डर का भूत
डर का भूत
मेरी पहली नौकरी थी। घर से दूर मैं इस ग्रामीण क्षेत्र में रहने के लिए आया था। यहाँ मेरी पोस्टिंग बैंक के क्लर्क के रूप में हुई थी।
मुझे बैंक से कुछ दूर गांव में एक घर में ऊपरी तल्ले पर एक कमरा मिल गया था। नित्य कर्म के लिए घर के बाहरी हिस्से में एक शौचालय था। उसके पास ही खुले में नहाने की व्यवस्था थी।
दरअसल मकान मालिक अधेड़ उम्र के व्यक्ति थे। जिनका कोई परिवार नहीं था। इसलिए इस व्यवस्था में कोई समस्या भी नहीं थी।
मैं भी अकेला था। इसलिए मुझे उस मकान में रहने से कोई समस्या नहीं थी। मैं अपना सामान लेकर आ गया।
मेरा पहला दिन था। दिन भर बैंक में काम करने के बाद मैं बहुत थक गया था। घर आया जैसे तैसे खिचड़ी बनाई और खाकर आराम करने लगा। कमरे में एक मद्धम सा बल्ब जल रहा था। मैं अपनी किताब लेकर पढ़ने लगा। अभी भी मैंने बैंक पीओ की तैयारी छोड़ी नहीं थी।
अचानक तेज़ हवा चलने लगी। लाइट चले जाने से घुप अंधेरा हो गया। कुछ ही देर में बादल गरजने लगे। बिजली चमकने से दीवारों पर अजीब अजीब सी आकृतियां उभर रही थी। दुनिया में सबसे अधिक डर मुझे अंधेरे से लगता था। मैंने इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया था कि लाइट चले जाने पर मुझे रौशनी के लिए कोई व्यवस्था करनी पड़ेगी। घर पर इनवर्टर था। लाइट जाने पर भी रौशनी रहती थी।
उस माहौल में मुझे बहुत डर लग रहा था। पर लाइट आने का इंतजार करने के सिवा मैं कुछ भी नहीं कर सकता था। ऐसे में अचानक मुझे शौचालय जाने की ज़रूरत महसूस हुई। पर डर के मारे मेरी हिलने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी।
बारिश नहीं हो रही थी। पर लगातार बिजली कड़क रही थी। प्रतीक्षा करते हुए एक घंटे से अधिक हो गया था। अब स्वयं पर नियंत्रण कठिन हो रहा था। मैं धीरे से उठा और दरवाजे तक आया। पर शौचालय सीढियां उतर कर आंगन पार करने के बाद एक कोने में था। मैंने नीचे झांक कर देखा। खाली आंगन बहुत भयावह दिख रहा था।
मैं ठिठक गया। पर अब और अधिक रुकना मुश्किल था। मैंने हिम्मत की और सीढ़ियां उतरने लगा। सीढियां उतर कर आंगन में आया और शौचालय की तरफ बढ़ने लगा। अचानक आंगन की दीवार पर मुझे कोई चलता हुआ दिखाई दिया। मैं पहले ही डरा था। दीवार पर हलचल देख कर मेरी चीख निकल गई।
चीख सुनकर मकान मालिक हाथ में बैटरी वाली लालटेन लेकर आए।
"क्या हुआ ? चीखे क्यों ?"
मैंने दीवार की तरफ इशारा कर कहा।
"दीवार पर कोई है।"
मकान मालिक ने लालटेन ऊपर उठा कर देखा। एक बंदर बैठा था। उन्होंने मुझे दिखाते हुए कहा।
"बंदर है।"
मैंने भी दीवार पर देखा। बंदर को देख कर बहुत शर्मिंदगी हुई। अपने डर के कारण मैंने बेकार का तमाशा बना दिया था।
लालटेन मांग कर मैं शौचालय में जाकर निवृत्त हुआ।
अपने कमरे में लौटा तो बिजली आ गई थी। पर मैंने तय किया कि अपने इस डर पर काबू पाने की कोशिश करूँगा।