Pratik Prabhakar

Inspirational Tragedy

4.9  

Pratik Prabhakar

Inspirational Tragedy

डागडर या डॉक्टर

डागडर या डॉक्टर

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प्रशांत काफी देर से अपने एक दोस्त का मोबाइल नम्बर ढूंढ़ रहा था पुराने नोट्स में, किताबों में, डायरियों में। पुराने नोट्स खोलते ही यादों की खुशबू उसके सांसो में समाने लगी। कितनी सारी यादें इन किताबों , कॉपियों में छुपी हुई थी। कैसे ग्यारहवीं में बायोलॉजी लेते ही उसने मेडिकल की प्रवेश परीक्षा की तैयारी शुरू की थी। कैसे उसके नॉन मेडिकल विषयों वाले दोस्तों ने उसका मजाक उड़ाना शुरू कर दिया था। बायोलॉजी लेने के बाद मेडिकल के अलावा किसी और कोर्स के बारे में सोंचता कौन है।और यहीं पर गलती हो जाती है ।जब कई प्रयासों में सफलता नहीं मिलती तो छात्र आत्मग्लानि से भर जाता है।


खैर,इंट्रेंस की तैयारी के लिए बनारस के एक प्रसिद्ध कोचिंग में उसने एडमिशन लिया और यहीं उसकी मुलाकात हुई थी रामू से।और आज उसी रामू का नंबर ढूंढ़ रहा था प्रशान्त।कितना मजाक उड़ाते थे सहपाठी रामू का । नाम को लेकर, उसके कपड़ों को लेकर और भाषा को लेकर। जब जब रामू अपने बेल - बटम वाला पैंट को पहन कर आता ,कक्षा में हँसी का पात्र बनता। रामू का मज़ाक उड़ाने में सबसे आगे था प्रशांत। आज रामू किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज में पढ़ता है और प्रशांत को अपनी माँ के इलाज के लिए वहीं जाना था।


प्रशांत को याद आता है कैसे रामू सबसे "आप "कहकर बात करता था और प्रत्युत्तर में "जी ..जी" कहता था।इसलिए काफी साथी उसे "डागडर रामू जी" कहने लगे थे।पर रामू तो मानो चिकने घड़े जैसा था ऊपर पानी के माफ़िक पड़े टीका टिप्पणी का कोई असर ही नहीं होता था। मेडिकल इंट्रेंस की तैयारी शुरू करते ही छात्र अपने नामों के आगे डॉक्टर लगाने लगते है पर जब वो कई प्रयासों के बाद भी पास नहीं हो पाते तो यही डॉक्टर शब्द उन्हें नकारात्मक विचारों से भर देता है।


अब रामू मेडिकल स्टूडेंट था पर राह इतनी आसान भी नही थी। वर्ष था 2012। रामू ने कोचिंग में प्रवेश के लिए आयोजित प्रतियोगिता परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करते हुए फीस में 80% की छूट प्राप्त की थी और निःशुल्क होस्टल भी। रामू बहुत गरीब परिवार से था । पिताजी एक कंपनी में कपड़ों की रंगाई का काम करते थे पर ज़िन्दगी में रंग से मरहूम थे। माँ फटी साड़ी में कपड़ों की सिलाई करती थी। तभी तो रामू जब हॉस्टल आया था तो उसके पास दो जोड़ी कपड़ें, एक जोड़ी चप्पल , एक छोटी पेटी में रखे किताबों के अलावा बस एक मामूली सा मोबाइल फ़ोन था जिसके कवर को रबर से बांध कर रखा गया था। 


हिंदी मीडियम से पढ़कर आये रामू के लिए सबकुछ अंग्रेजी में पढ़ना आसान नही था। "अन्तः प्रदव्यी जालिका" पढ़कर आये रामू के लिए "एंडॉप्लसमिक रेटिकुलम" पढ़ना आसान नहीं था। कई बार तो वह शिक्षक के प्रश्नों को समझ नहीं पाता था और कई बार अपने देसी बोली के कारण हँसी का पात्र बनता था। तीन महीने तो रामू को अंग्रेजी समझने में लग गए। पर तब तक देर हो गयी थी।वह मासिक परीक्षा में अच्छा नही कर पा रहा था । दिन प्रतिदिन उसके आशाओं के आकाश में निराशा के काले बादल मंडराने लगे। रामू ने बहुत प्रयास किये पर प्रयास फलीभूत होते नजर नहीं आ रहे थे ।अब उसका खुद पर से विश्वास उठने लगा था।

दसवीं की परीक्षा में राज्य के मेरिट लिस्ट में नाम आने के बाद ये हाल , पर अब क्या, देर तो हो गयी थी।


2014 में बारहवीं की परीक्षा में 74% अंकों से उतीर्ण हो गया पर रामू ऑल इंडिया प्री मेडिकल टेस्ट में विफल रहा। प्रशांत को याद है कैसे रामू फूट-फूट कर रोया था। अब क्या करेगा रामू ,क्या पढाई छोड़ देगा, क्या उसे भी कपड़े की रंगाई करनी होगी ।यह सब सोंच भारी मन से रामू घर पहुंचा ।किस मुँह से रामू कहे कि वह फेल हो गया पर माँ ने भाँप लिया।मां दिलासा देने लगी पर उनमें भी हिम्मत नहीं थी और ना ही आर्थिक स्थिति इतनीअच्छी थी कि रामू को फिर से तैयारी को कहे ।


इधर प्रशांत कोटा के एक मशहूर कोचिंग में दाखिल हो गया जहां से हर वर्ष टॉपर्स निकलते थे।2014 से 2015 तक रामू ने घर पर ही रह कड़ी मेहनत की । साथ ही उसने कोचिंग में पढ़ाना शुरू किया।पढ़ाने से भी आदमी कई चीजें सीखता है।कुछ पैसे भी बनने लगे थे ।तैयारी जारी थी इंट्रेंस रूपी युद्ध के लिए।


2015 में होने वाली मेडिकल टेस्ट निरस्त कर दी गयी । रामू की परीक्षा अच्छी गई थी । शायद परीक्षा पास भी कर जाता। पर परीक्षा के प्रश्न -पत्र लीक हो गए थे । कितने सारे छात्र -अभिभावक पकड़े गए थे । रामू के सपने पर मानो ग्रहण लग गया था ।रही- सही कसर पिताजी की सांस लेने में दिक्कत ने पूरी कर दी ।इस बार रामू बस क्वालीफाई करके रह गया । मेडिकल कॉलेज की सीट नहीं मिल पाई । प्रशांत तो लाखों में रैंक लिए घर वापस आया।



कई बार मेहनत करनी से नहीं होता ,सही दिशा में प्रयास ही सफलता दिलाती है। अब क्या करेगा रामू , तैयारी छोड़ दे , सपना तोड़ दे ।। नहीं, नहीं एक बार और। कहते ही हैं मेडिकल इंट्रेन्स की तैयारी पंचवर्षीय योजना जैसी होती है । पर तैयारी कहाँ से करे ?


पिताजी की बीमारी भी अब ठीक हो गयी थी ।अब क्या करें?

कुछ तो खास होगा बड़े शहरों में ऐसा सोंच रामू ने भी कोटा जाने की तैयारी की और अपने साथ एक वर्ष की जमा राशि ले ट्रेन से रवाना हुआ । माँ ने आँचल के खूंट में बांधें पांच सौ के दो नोट उसके जेब मे डाल दिये । ये वही नोट थे जो माँ ने चायपत्ती के डब्बे में साड़ी खरीदने के लिए जमा किये थे। रामू का मन किया कि रुपये लौटा दे, पर क्या पता ये रुपये भी काम में आ जाये। ये सोंचते हुए उसने रुपये वापस नहीं किये। माँ अपने आँचल से आँसू पोछ रही थी। ऐसा करुण दृश्य। रामू का दिल भी भर आया।


पढ़ाई की फीस में उसे कुछ छूट मिल गई थी क्योंकि पिछले इंट्रेंस में उसके नंबर अच्छे थे ।एक दो टेस्ट्स के बाद ही वह टॉपर्स की लिस्ट में शुमार हो गया। उसका खोया आत्मविश्वास फिर से लौट आया था ।आत्मविश्वास से बढ़कर कोई हथियार नहीं है और इसी के बल पर बड़ी से बड़ी जंग जीती जा सकती है।


अब कोई बाधा उसे रोक नहीं सकती थी । उस वर्ष नीट मैं उसनेे पूरे भारत में टॉप दो सौ में स्थान पाया। कॉउंसलिंग के पश्चात उसे दिल्ली की मेडिकल कॉलेज भी मिल रही थी पर उसने घर के पास के ही कॉलेज में पढ़ना ठीक समझा औऱ किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज में दाखिला ले लिया।


प्रशांत को याद है कैसे उसने पेपर में छपे रामू के इंटरव्यू से उसके बारे में सच जाना था। अखबारों में छपी इंटरव्यू की तस्वीर को उसने व्हाट्सएप ग्रुप में डाला था और साथी भी हतप्रभ थे। पूरे प्रदेश की अखबारों में रामू के माता- पिता के साथ तस्वीर छपी थी और शीर्षक था" गुदड़ी के लाल ने किया कमाल"।


प्रशांत किस मुंह से बात करे। प्रशांत उस बार भी सफल न हो सका ।उसने एग्रीकल्चर कॉलेज में दाखिला ले लिया । जब कोई मित्र परीक्षा उतीर्ण हो जाता है तो उसे लगता है कि फेल हुए साथी से फ़ोन पर बात करने से विफल साथी सोंचेगा कि अपनी शेखी बघारने के लिए फ़ोन किया होगा।और फ़ेल साथी को लगता है कि पास साथी अब उससे बात नही करेगा। ये दोनों ही सोंच दोस्ती को खत्म करने पर आमदा हो जाते हैं। पर दोस्ती तो निभाई जाने वाली चीज है , ये ना तो एक दिन में शुरू होती है न एक दिन में खत्म।


अभी आंखों के सामने यादें तैर ही रही थी कि प्रशांत की नजर फिजिक्स की किताब की कवर पर परी जहां पर रामू का नंबर लिखा था और रामू के नाम के साथ ही लिखा था "डॉक्टर प्रशांत"। ये देख प्रशांत के दिल में एक लहर सी उठी जो रुकती मालूम नहीं होती थी।


प्रशांत ने नंबर मिलाया और कॉल लगाई । कॉल लग गई ।उधर से आवाज आई 

"कौन बात कर रहे हैं ,जी ?"


प्रशांत इधर मुस्कुरा रहा था ।उसने रामू को माँ की बीमारी के बारे में बताया । रामू ने उसे मदद का दिलासा दिया । और भी कई सारी बातें हुईं । दोनों ने कई यादें साझा की। तभी प्रशांत को पता चला रामू अभी भी एक कोचिंग में दो घंटे पढ़ाता है ताकि अपना खर्च खुद उठा सके।


अपनी मां को डॉक्टर से दिखने लखनऊ ले जाते हुए प्रशांत रास्ते में सोच रहा था प्रण करने से कुछ भी हासिल हो सकता है और चाहे आप किसी भी माध्यम से पढ़ते हो , चाहे आप किसी भी परिस्थिति से आते हो ,अगर काबिलियत होती है ,मेहनत करते है तो सफलता जरुर मिलती है ।प्रशांत मन ही मन सोंचने लगा जब रामू पास हो सकता है तो मैं क्यों नहीं। उसने फिर से एक बार मेडिकल इंट्रेन्स की तैयारी करने का मन बनाया।


अब जब प्रशान्त मेडिकल कॉलेज पहुंचा था रामू उसके आगे सफ़ेद एप्रन (कोट)में खड़ा था और इसी कोट को रामू ने अपने मेहनत ,लगन और अडिग आत्मविश्वास से कमाया था ।तब प्रशांत की नजर कोट पर लगे बैच पर पड़ी ,जिसपर अंकित था" डॉक्टर रामू"।


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