STORYMIRROR

dr.Arti Vajpai

Classics

3  

dr.Arti Vajpai

Classics

दानवीर कर्ण की कहानी ।।।

दानवीर कर्ण की कहानी ।।।

2 mins
769


महाभारत की कथा में कई महान चरित्रों का जिक्र है। उन्हीं में से एक थे दानवीर कर्ण। श्रीकृष्ण हमेशा कर्ण की दानवीरता की प्रशंसा करते थे। वहीं, अर्जुन और युधिष्ठिर भी दान-पुण्य करते रहते थे, लेकिन श्रीकृष्ण कभी उनकी प्रशंसा नहीं करते थे। एक दिन अर्जुन ने श्रीकृष्ण से इसका कारण पूछा। श्रीकृष्ण बोले, “समय आने पर वह यह साबित कर देंगे कि सबसे बड़ा दानवीर सूर्यपुत्र कर्ण है।”


कुछ दिनों के बाद एक ब्राह्मण अर्जुन के महल में आया। उसने बताया कि पत्नी की मृत्यु हो गई है। उसके दाह संस्कार के लिए उन्हें चन्दन की लकड़ियों की जरूरत है। ब्राह्मण ने अर्जुन से चंदन की लकड़ी दान में मांगी। अर्जुन ने अपने मंत्री को आदेश दिया कि राजकोष से चन्दन की लकड़ियों का इंतजाम किया जाए, लेकिन उस दिन न तो राजकोष में चंदन की लकड़ियां मिली और न ही पूरे राज्य में। अर्जुन ने ब्राह्मण से कहा, “आप मुझे क्षमा करें, मैं आपके लिए चंदन की लकड़ी का इंतजाम नहीं कर सका।


श्रीकृष्ण इस पूरी घटना को देख रहे थे। उन्होंने ब्राह्मण से कहा, “आपको एक जगह चंदन की लकड़ियां जरूर मिलेगी, आप मेरे साथ चलिए।” श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भी अपने साथ ले लिया। श्रीकृष्ण और अर्जुन ने ब्राह्मण का वेश बनाया और उस ब्राह्मण के साथ कर्ण के दरबार में पहुंचे। वहां भी ब्राह्मण ने कर्ण से चंदन की लकड़ी दान में मांगी। कर्ण ने अपनी मंत्री से चंदन की लकड़ी का इंतजाम करने को कहा। थोड़े समय बाद कर्ण के मंत्री ने कहा कि पूरे राज्य में कहीं चंदन की लकड़ी नहीं मिली।

इस पर कर्ण ने अपने मंत्री को आदेश दिया कि उसके महल में चंदन के खंभे हैं, उन्हें तोड़कर ब्राह्मण को दान दिया जाए। मंत्री ने ऐसा ही किया। ब्राह्मण चंदन की लकड़ी लेकर अपनी पत्नी के दाह संस्कार के लिए चला गया। श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा, “देखो तुम्हारे महल के खंभों में भी चन्दन की लकड़ी लगी है, लेकिन तुमने ब्राह्मण को निराश किया। वहीं, कर्ण ने एक बार फिर अपनी दानवीरता का परिचय दिया।”


कहानी से सीख:__


दान वो नहीं जो समृद्ध स्थिति में किया जाता है, बल्कि असली दान वो है, जो अभाव होने पर भी किया जा सकता है।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Classics