गरीब की दया
गरीब की दया
गाजियाबाद मे एक गरीब बिशेश्वर नाम का एक व्यक्ति रहता था तथा उसकी पत्नी अरुधंती और बेटी प्रिया थी! उनकी आर्थिक स्थिति बहुत ही कमजोर थी! विशेश्वर उसी शहर में मजदूरी करके अपने परिवार का भरण पोषण करता था! दुर्भाग्य से अचानक बुखार आने के कारण भगवान को प्यारा हो गया, अब तो परिवार पर पहाड़ जैसे टूट पड़ा , किन्तु अरुधंती हार नहीं मानी!
वह उसी शहर में एक बहुत बडे़ घराने में चौका बर्तन का काम करने लगी और उन्हीं के घर जो कुछ खाना बच जाता था तो ले आकर स्वयं इकलौती बेटी के साथ में खाकर गुजारा करती!
उस समय ठंडी का मौसम था उसने सोची की पन्द्रह दिन काम किये हो गया अब मालकिन से मजदूरी मांग कर एक कंबल ले लें तो ठंडी कट जायेगी! ऐसा सोच कर मालकिन से मजदूरी की मांग करने लगी तो मालकिन ने कही कि-- अभी महीना पूरा नहीं हुआ कैसे मजदूरी दे दें, तब अरुध़ती कहती है कि- मालकिन बहुत ठंडी है कृपा करके आप दे दें तो एक कंबल खरीद लेंगे तो हमारी और बच्ची का ठंडी आसानी कट जायेगी!
तब मालकिन ने अंदर जाकर एक कंबल निकाल कर दिया और बोली कि अंदर जो खाना बचा हुआ है तो टिफिन में भर कर ले जाओ! तब अरुधंती ने अंदर जाकर खाना टिफिन में भर कर लिया और कंबल भी और मालकिन को धन्यवाद कही और खुश होकर चल दिया!
जाते जाते आगे पार्क में एक आदमी बिना गर्म कपड़े का कांपता पड़ा था उसे देखकर अरुध़ंती को बहुत दया आई और सोचने लगी कि हमको तो ऊपर छत दिया है इसके पास तो कुछ नही है तो इसे क्यों न कंबल दे दें ऐसा सोच कर उन्हें कंबल दे दिया और पूछा खाना खाये हो तो बोला नहीं तो टिफिन में लिया भोजन खिला दिया और अपने घर की ओर चल दिया! आगे चलकर एक व्यक्ति ने हाथ में दो कंबल लिये बुलाया और कहा कि-- मैं गरीबों को कंबल बांट रहा हूँ आप भी कंबल ले लीजिए! उसने एक कंबल देकर पूछा कि घर में और कोई सदस्य है तो उसने कही की एक बेटी भी है तो उसने एक कंबल और दिया और साथ में भोजन पैकट दिया तब उस औरत ने कही कि आगे पार्क में एक गरीब ठंड में पडा़ है कृपया उस पर भी ध्यान दें तो उसने बोला जरूर ध्यान देंगे फिर अरुधंती ने धन्यवाद देकर अपने घर की ओर चल दिया!
