दाग
दाग
आसमान की छाती चीरकर बेतहाशा शहर की ओर उड़ते गिद्धों के झुंड को देखकर क्षितिज पार से झूमते आते मेघों के झुंड ने धड़कते हुए दिल से पूछा,
“क्या आज फिर दंगा हुआ है शहरों में...?”
“अभी हुआ तो नहीं पर शुरू होने ही वाला है, शीघ्र चलो तुम सब भी और आज टूटकर बरसना ...दाग़ जो धोने हैं तुम्हें, ख़ून और आँसू दोनों को ही आज तुम्हारी बहुत ज़रूरत होगी...!”