चुपके-चुपके
चुपके-चुपके


कॉलेज की कैन्टीन से कुछ दूरी पर एकांत स्थल पर एक कोने में बरगद के पेड़ के नीचे खड़े मयंक ने लावण्य से कहा, "आज आखिरी बार तुम्हें बता देता हूँ कि अगर तुमने सीधे-सीधे मेरी बात न मानी तो अच्छा न होगा।बहुत हो चुका अब यूँ चुपके-चुपके मिलना मिलाना, समझी।"
"बड़ा आया, तीस मार खाँ!क्या कर लेगा, तू !" उसे कँधे से जोर का धक्का देती हुयी लावण्य ने कहा।
मयंक ने आव देखा न ताव, झटके से लावण्य की चोटी
पकड़ ली और अपनी ओर खींचता हुआ बोला, " मैं तुमसे प्यार करता हूँ, मैं नहीं चाहता कि तू कॉलेज के दूसरे बदचलन, बिगड़ैल व आवारा लड़कों के साथ हँसी-ठिठोली करे।"
"ओह, तू साफ-साफ क्यों नहीं कहता, जलन होती है तेरे सीने में।"
"यार, तू कुछ भी समझ , पर आईन्दा से अगर तुम्हें बात करते देखा तो गोली मार दूँगा।"मयंक ने लावण्य का हाथ अपने हाथों में लेता हुये कहा।
"उफ, तुम भी , जो मुँह में आ रहा, बोले जा रहे हो, मैंने तो तुम्हें कभी न कहा कि मैं तुमसे प्यार करती हूँ, यह ठीक है, पिछले दो वर्ष से मैं तुम्हें जानती हूँ, हम साथ पढ़ते हैं, एक अच्छा दोस्त मानती हूँ, अभी मुझे बहुत कुछ करना है जिंदगी में...तुम भी अभी पढ़ रहे हो, ऐसी बातें सोचना व्यर्थ है, मयंक।समझो, प्लीज!"लावण्य ने कहा।
"कब से ढूँढ रही थी , तुम्हें लावण्य !और तुम यहाँ हो।"
लावण्य की सहेली लीना ने दूर से ही आवाज़ देते हुये कहा।
लावण्य और मयंक जो एक दूसरे के निकट खड़े थे, लीना को आते देखकर ठिठके।
"चल जल्दी, गणित का पीरीयड है, सुना है नये सर आये हैं , काफी हैंडसम है, "लीना बोली।
लीना को चुप रहने का इशारा करते हुये, चुपकर !मयंक सुन लेगा।वैसे ही वह बड़ा सनकी है।
>दोनों सहेलियाँ चालाक बनती हुयी हँसती- खिलखिलाती हुयी मयंक को वहीं छोड़कर कक्षीय रुम की ओर बढ़ गई।
रास्ते में उन्हें भागता हुआ अपनी ओर आता प्रियांशु मिला।
"क्या हुआ रे!दोपहर में जोगिंग क्यों कर रहा है, "लावण्य बोली।
"नहीं, नहीं ऐसा नहीं हो सकता।"तुम लावण्य इतनी निर्दयी नहीं हो सकती, हम लोगों को तुमसे यह उम्मीद न थी, "प्रियांशु ने कहा।
लावण्य के चेहरे का रंग उड़ गया।मैंने क्या किया, "बोलो तो सही कुछ।"
"मयंक ने छलांग लगा दी छत से , हाथ में तुम्हारा फोटो है।"
क्या ?
लावण्य जमीन पर अचेत होकर गिर पड़ी, "क्यों न समझ पाये मयंक तुम मुझे!!मैं भी तुम्हें चाहती थी......पर अभी हम उम्र के उस पड़ाव पर थे , जहाँ हर माता- पिता को अपने बच्चों से उम्मीदें होती हैं, मैं नहीं चाहती थी कि मैं तुम्हारी कमजोरी बनूँ।आखिर क्यों न , तुम समझ सके मुझे , मेरे प्रेम को। मैं तो तुम्हें डॉक्टर बना देखना चाहती थी।जिससे सिर्फ तुम कुछ महीने दूर थे।"ओह मयंक , आइ लव यू!!अब मैं किससे झगड़ा करुँगी, किस को चिढ़ाऊँगी, क्यों किया तुमने ऐसा, बोलो मयंक , क्यों???
रोती हुयी लावण्य की चीखें कॉलेज कैंपस में गूँजने लगती हैं, ।
"अचानक, हाल कैसा है जनाब का, "अपने पसंदीदा गाने के मोबाईल में बजने की आवाज़ सुनकर लावण्य चौंकती है ।"
"बंद करो, यह गाना, प्रियांशु ।"
उसके मोबाईल को छीनने को आतुर लावण्य शीघ्रता से जमीन से उठती है और ज्यों ही मोबाईल छीन कर फैंकने लगती है, सामने मयंक को देखकर दौड़कर उससे लिपट जाती है ।
"फिर कभी मेरी परीक्षा न लेना, मयंक, सच्चा प्यार जिस्मों का नहीं, रूह का मिलन है।" फिर कभी ऐसा भद्दा मज़ाक मत करना। जीते जी ही मर जाऊंगी।