Mukesh Kumar Modi

Inspirational

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Mukesh Kumar Modi

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चरित्र की सुन्दरता

चरित्र की सुन्दरता

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मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है जो अपने विचारों और मान्यताओं के आधार पर जीवन व्यतीत करता है। साथ साथ पारिवारिक और सामाजिक मान्यताओं से भी उसकी जीवन शैली प्रेरित व प्रभावित होती है। हर व्यक्ति अपने जीवन को निरन्तर आनन्द और खुशियों से भरपूर अनुभव करते हुए सबसे प्यार, सम्मान और आशीर्वाद मिलते रहने की कामना करता है।


समाज में सभी लोग हैं जो अपनी व्यक्तिगत आर्थिक सम्पन्नता के स्तर पर जीवन व्यतीत करते हैं। परन्तु किसी व्यक्ति का सामाजिक जीवन स्तर केवल उसकी आर्थिक सम्पन्नता ही नहीं, बल्कि उसकी चारित्रिक गुणवक्ता भी सामाजिक जीवन का स्तर निर्धारित करती है। हम सभी जानते हैं कि एक अच्छे स्वभाव वाला व्यक्ति सबको खुशी देता है, उसका व्यवहार ही समाज के बाकी सभी लोगों से उसकी श्रेष्ठ रूप से एक अलग ही पहचान बनाता है। भावनात्मक आधार पर ऐसे लोग गुप्त और प्रत्यक्ष रूप से सभी का सम्मान और आशीर्वाद पाते ही रहते हैं।


सामाजिक प्राणी होने के नाते हर व्यक्ति एक दूसरे से मिल जुलकर आपस में विचारों का आदान प्रदान करता है। सामाजिक व्यवस्था अनुसार आपसी सहयोग से जीवन गतिमान होता है। सामाजिक व्यवस्था सहज और सरल बनाए रखने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर चरित्र की उत्कृष्ट सुन्दरता का बहुत महत्व है। निश्छल, निष्कपट और निस्वार्थ भाव का व्यवहार ही सामाजिक व्यवस्था की गरिमा और श्रेष्ठता को बनाए रखता है।


जब कभी हम लोगों से निस्वार्थ प्यार और शुभकामना भरी भावना से मिलते हैं तो वह हमारे जीवन का अति सुन्दर पल होता है जिसमें हम एक अलौकिक आनन्द की अनुभूति करते हैं, क्योंकि सामने वाले व्यक्ति को हम अपने व्यवहार द्वारा स्थूल और सूक्ष्म रूप से जो खुशी प्रदान करते हैं, वही खुशी उसके भावों और भावनाओं के माध्यम से स्नेह, सम्मान और आशीर्वाद के रूप में तुरन्त हमारी और लौटकर आने लगती है।


अक्सर हम महान और श्रेष्ठ लोगों के चरित्र की विशेषताओं के सम्बन्ध में उनके जीवनकाल में या उनकी मृत्यु पश्चात चर्चा करते हैं। लेकिन ऐसी चर्चाएं तब तक व्यर्थ ही रहेंगी, जब तक उन महान व्यक्तित्वों की एक एक विशेषता या गुण हमारे कर्म व्यवहार में सम्मिलित ना हो जाएं। इसलिए जब भी किसी महान व्यक्तित्व के विषय में चर्चा करें तो स्वयं से ये प्रश्न अवश्य पूछना चाहिए कि क्या मैंने अपने व्यक्तिगत स्तर पर उन लोगों जैसा पवित्र और शुद्ध हृदय वाला चरित्रवान बनने का विचार किया है? क्या केवल श्रेष्ठ चरित्र वाले व्यक्तियों की विशेषताओं का गुणगान करना ही पर्याप्त है? क्या उनकी विशेषताएं हमारे चरित्र में कहीं किसी को दृष्टिगोचर होती है? क्या हमारी विशेषताओं और चरित्र की श्रेष्ठता के विषय में कहीं चर्चा होती है? स्वयं से इन प्रश्नों का उत्तर जानने का प्रयास निरन्तर किया जाना चाहिए।


एक कहानी के माध्यम से हम मानव चरित्र की पराकाष्ठा को समझने का प्रयास करेंगे। यूनान का प्रसिद्ध शासक सिकन्दर भारत भ्रमण के दौरान जब तक्षशिला पहुंचा तो एक गांव के नजदीक खेत में किसान सभा हो रही थी। वहां से एक व्यक्ति को बुलाकर सभा का प्रयोजन पूछने पर ज्ञात हुआ कि निकटभूत में वहां एक खेत का सौदा हुआ था। खरीददार ने जब अपने खेत में मजदूर से हल चलवाया वह मजदूर को सोने के सिक्कों का एक कलश मिला। खरीददार को सूचित किया तो उसने सोने के सिक्कों का कलश देखकर कहा कि इस खेत पर अवश्य मेरा स्वामित्व है किन्तु यह कलश जमीन के अन्दर से निकला है। इसलिए हो सकता है कि विक्रेता ने इसे जमीन में दबा कर रखा हो। क्योंकि यह सोने के सिक्कों का कलश खरीदने से पहले से ही जमीन में गड़ा हुआ था। इसलिए इसका वास्तविक अधिकार इस खेत को बेचने वाले का ही है। इस पर खेत के विक्रेता को बुलाकर सारी बात बताई किंतु विक्रेता ने कहा कि खेत बेचने के बाद इस जमीन में से निकलने वाली हर चीज पर खरीददार का अधिकार है, इसलिए मैं सिक्कों का कलश नहीं ले सकता। विवाद बढ़ जाता है जो पंचायत में पहुंचता है जहां दोनों पक्षों को सोने के सिक्कों का कलश लेने के लिए कहा जाता है, किंतु दोनों ही पक्ष अपने अपने तर्कों के आधार पर लेने से मना कर देते हैं। अंततः पंचायत में पंचों द्वारा यह निर्णय दिया जाता है कि यह ज्ञात नहीं हुआ है की खेत में मिला है सिक्कों का यह कलश किसके द्वारा जमीन में गाड़ा गया है, इसलिए दोनों ही पक्ष इसे लेने से मना कर रहे हैं। कलश के वास्तविक स्वामी का निर्णय नहीं हो सकता इसलिए इस कलश में मिले सभी सिक्कों का उपयोग विद्यालय के निर्माण हेतु किया जाएगा। 


उस मूल्यवान कलश के प्रति दोनों ही पक्षों द्वारा नैसर्गिक रूप से अनासक्ति प्रकट करना अतुलनीय था। हम उसी महान संस्कृति के वंशज हैं जो अर्थ के स्थान पर चरित्र की शुद्धता और महानता को प्रबल प्राथमिकता देती थी। किंतु आज के परिपेक्ष में ऐसी घटना काल्पनिक या नाटकीय लगती है। हम कल्पना ही नहीं कर सकते कि चारित्रिक पतन के दलदल में हम कितना धंस चुके हैं।


सामाजिक स्तर पर एक सफल व्यक्ति की परिभाषा समय अनुसार बदलती आई है। आज के युग में अपने अच्छे स्वभाव, व्यवहार और आचार संहिता के निर्धारित नैतिक व आध्यात्मिक मानदंडों को पूरा नहीं करते हुए भी एक व्यक्ति आर्थिक रूप से सम्पन्न होकर प्रसिद्धि और सफलता की सीढ़ियां चढ़ता ही जाता है जिसके दम पर उसे विभिन्न सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और व्यापारिक मंचों पर सम्मानित रूप से आसीन हुआ भी देखा जा सकता है। इस खोखली प्रसिद्धि के फलस्वरूप वह लगभग अपने ही चारित्रिक स्तर के उन लोगों से घिरा रहता है जो एक दूसरे से स्वार्थ सिद्ध करते हुए व्यक्तिगत आर्थिक उन्नति में लगे रहते हैं। ऐसा व्यक्ति समाज के अन्य वर्ग के लोगों से विशुद्ध स्नेह, प्यार, सम्मान और आशीर्वाद प्राप्त करने का अलौकिक अनुभव नहीं कर सकता।


समाज के नैतिक और आध्यात्मिक मानकों पर खरा उतरे बिना प्राप्त आर्थिक सम्पन्नता कड़वी दवाओं के ऊपर लपेटी गई उस चाशनीनुमा परत के समान है जो मीठी तो अनुभव होती है किन्तु कालान्तर में आन्तरिक अशांति, खालीपन और असन्तुष्टता रूपी कड़वेपन का एहसास भी कराने लगती है। इसी कारण व्यक्ति अपने जीवन में अलौकिक आनन्द और सन्तुष्टता भरे पल अनुभव करने से वंचित रह जाता है। 


अक्सर व्यक्ति प्रसिद्धि पाने और दिल जीतने में अन्तर नहीं समझ पाता। प्रसिद्धि पाने का आधार आर्थिक सम्पन्नता हो सकता है किन्तु किसी का दिल जीतने, किसी का प्यार पाने, किसी से सम्मान पाने या किसी से आशीर्वाद पाने का आधार कभी नहीं बन सकता। प्यार, सम्मान और आशीर्वाद सच्चे हृदय से दिए जाने वाले ऐसे उपहार हैं जो सकारात्मक रूप से चरित्र की गुणवक्ता के आधार पर किए गए निश्छल, निष्कपट और विशुद्ध व्यवहार से ही प्राप्त होते हैं। कहा भी जाता है कि दिल जीतने वाला ही धन्य होता है। इसलिए सकारात्मक दृष्टिकोण रखकर आन्तरिक व्यक्तित्व को सुन्दर बनाते हुए अपने निश्छल, निष्कपट और विशुद्ध व्यवहार से सबका आशीर्वाद लेते रहें।


शारीरिक, मानसिक, नैतिक, आध्यात्मिक, व्यवहारिक और कार्मिक स्तर पर चरित्र शुद्धि का कम से कम इतना पुरुषार्थ अवश्य होना चाहिए कि आपसे घृणा करने वाला, द्वेष रखने वाला, आपकी निंदा करने वाला एक भी व्यक्ति ना रहे। चरित्र की निर्मलता, शुद्धता और सुन्दरता ही व्यक्तिगत जीवन की, पारिवारिक जीवन की और समाज की आध्यात्मिक उन्नति करते हुए सम्पूर्ण विश्व को स्वर्ग में बदलने की अपार क्षमता से सम्पन्न ह


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