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Mukesh Kumar Modi

Inspirational

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Mukesh Kumar Modi

Inspirational

व्यर्थ विचारों के नियन्त्रण से जीवन प्रबन्धन

व्यर्थ विचारों के नियन्त्रण से जीवन प्रबन्धन

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मनुष्य की व्यक्तिगत जीवन शैली व उसके पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक और भौगोलिक वातावरण से प्रभावित होकर विकसित हुए विचारों और भावनाओं का समुच्चय उसके चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण करता है।

मन के विचारों और भावनाओं से जीवन के लगभग सभी पहलू प्रभावित और प्रबन्धित होते हैं। अपने ही विचारों और भावनाओं से प्रभावित होकर एक व्यक्ति मन्दिर जाता है तो दूसरा मदिरालय जाता है। अर्थात् दोनों ही क्रियाएं मनोप्रेरित और भावप्रेरित हैं। हमारे विचारों और भावनाओं के अनुरूप हमारा जीवन बनता है। अर्थात् विचारों और भावनाओं की शुद्धि और अशुद्धि ही जीवन को श्रेष्ठ और तुच्छ बनाती है।

जीवन को प्रबन्धित करना विचारों और भावनाओं का काम है किन्तु विचारों और भावनाओं को कौन प्रबन्धित करता है, इसकी हमें जानकारी नहीं होती। हर युग में मनुष्य के लिए अपने मन के विचारों और भावनाओं को अपने अनुसार प्रबन्धित करना चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है और अधिकतर लोग इसमें असफल रहे हैं।

जीवन की दिनचर्या में कभी कभी हमारे मन में अनेक प्रकार के व्यर्थ विचार बिखरे होते हैं, इसलिए एकाग्रता से कोई भी कार्य करना कठिन हो जाता है । कार्य निस्पादन करते समय केवल उन्हीं विचारों की आवश्यकता होती है जो उस कार्य से सम्बिन्धत होते हैं । अक्सर हमारे वर्तमान विचार और भावनाएं भूतकाल की घटनाओं और भविष्य में होने वाली काल्पनिक घटनाओं से जुड़ने के कारण किसी कार्य को करने के लिए अधि

क समय लगता है और कार्य क्षमता और दक्षता नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है । 

ऐसा देखा जाता है कि एक कर्मचारी को कार्य करने के लिए 8 से 10 घंटे मिलते है, किन्तु वह इस अवधि में शत प्रतिशत कार्य नहीं कर पाता क्योंकि उसके मन में बिखरे हुए असंख्य व्यर्थ विचारों के कारण उसकी एकाग्रता प्रभावित होती है । इसलिए ध्यान के द्वारा मन को विश्राम देकर विचारों की गति कम की जानी चाहिए ताकि व्यर्थ विचारों की संख्या में कमी आए ।

वर्तमान समय जीवन व्यवस्था विज्ञान और तकनीकी साधनों पर आधारित होने के कारण हमारा मन अनेक प्रकार के विचारों से भरा रहता है । कई लोगों के लिए इन विचारों को रोकना कभी-कभी असम्भव हो जाता है । इन परिस्थितियों में प्रतिदिन हमारा आध्यात्मिक ऊर्जा के शांतिपूर्ण स्रोत के साथ जुड़ना आवश्यक हो जाता है । आध्यात्मिक उर्जा का पहला स्रोत हमारे अन्दर है जो हमारा अपना मूल आत्मिक स्वरूप और दूसरा स्रोत परमात्मा या भगवान है। हमारा मूल आत्मिक स्वरूप बहुत शांत है जिसे बार बार स्मृति में लाने से इसका अनुभव होता है और परमात्मा तो शांति का सागर है, जिसकी याद में खो जाने पर समस्त व्यर्थ विचारों का उन्मूलन हो जाता है । मन की शुद्ध और शांत अवस्था से जीवन का हर पहलू सकारात्मक रूप से प्रभावित और प्रबन्धित होगा। इसलिए प्रतिदिन समय निकालकर अपने आत्मिक स्वरूप में स्थित हो जाएं तथा गुणों और शक्तियों के सागर परमात्मा को याद करें।

ॐ शांति



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