चर्चा: मास्टर&मार्गारीटा28

चर्चा: मास्टर&मार्गारीटा28

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तो, वोलान्द और उसकी टीम फ्लैट नं. 50 से निकल जाते हैं क्योंकि उनका अपनी दुनिया में जाने का समय हो गया है।


कुछ देर बाद वोलान्द, अज़ाज़ेलो और हैला कहीं और मुड़ जाते हैं और बेगेमोत और कोरोव्येव स्मोलेन्स्की मार्केट में स्थित ‘तोर्गसीन’ नामक दुकान में घुसते हैं। इस दुकान में सिर्फ विदेशी मुद्रा ही चलती थी। इस अध्याय में बुल्गाकोव यह बताते हैं कि विदेशियों को किस प्रकार से प्राथमिकता दी जाती है, और कैसे रूसी लोग कभी-कभी स्वयँ को विदेशी बताकर उन चीज़ों को प्राप्त कर लेते हैं, जो आम तौर से उन्हें नसीब नहीं होती थीं घटनाक्रम इस प्रकार है:

“।सबसे पहले उन्होंने चारों ओर देखा और फिर खनखनाती आवाज़ में, जो पूरी दुकान में गूँज उठी, कोरोव्येव बोला, “बहुत अच्छी दुकान है! बहुत, बहुत अच्छी दुकान!”    

जनता काउंटरों से मुड़कर न जाने क्यों विस्मय से उस बोलने वाले की ओर देखने लगी, हालाँकि उसके पास दुकान की प्रशंसा करने के लिए कई कारण थे।

“।कोरोव्येव और बेगेमोत कंफेक्शनरी और किराना वाले विभाग की सीमा रेखा पर पहुँचे। यह बहुत खुली जगह थी। यहाँ रूमाल बाँधे, एप्रन पहने महिलाएँ बन्द कटघरों में नहीं थीं, जैसी कि वे कपड़ों वाले विभाग में थीं।नाटा, एकदम चौकोर आदमी, चिकनी दाढ़ी वाला, सींगों की फ्रेम वाले चश्मे में, नई हैट जो बिल्कुल मुड़ी-तुड़ी नहीं थी और जिस पर पसीने के धब्बे नहीं थे, हल्के गुलाबी जामुनी रंग का सूट और लाल दस्ताने पहने शेल्फ के पास खड़ा था और कुछ हुक्म-सा दे रहा था। सफ़ेद एप्रन और नीली टोपी पहने सेल्स मैन इस हल्के गुलाबी जामुनी सूट वाले की ख़िदमत में लगा था। एक तेज़ चाकू से, जो लेवी मैथ्यू द्वारा चुराए गए चाकू के समान था, वह रोती हुई गुलाबी सोलोमन मछली की साँप के समान झिलमिलाती चमड़ी उतार रहा था।

 “यह विभाग भी शानदार है,” कोरोव्येव ने शानदार अन्दाज़ में कहा, “और यह विदेशी भी सुन्दर है,” उसने सहृदयता से गुलाबी जामुनी पीठ की ओर उँगली से इशारा करते हुए कहा।

 “नहीं, फ़ागोत, नहीं,” बेगेमोत ने सोचने के-से अन्दाज़ में कहा, “तुम, मेरे दोस्त, गलत हो।।।मेरे विचार से इस गुलाबी जामुनी भलेमानस के चेहरे पर किसी चीज़ की कमी है। " गुलाबी जामुनी पीठ कँपकँपाई, मगर, शायद, संयोगवश, वर्ना विदेशी तो कोरोव्येव और बेगेमोत के बीच रूसी में हो रही बातचीत समझ नहीं सकता था।

 “अच्छी है?” गुलाबी जामुनी ग्राहक ने सख़्ती से पूछा।

 “विश्व प्रसिद्ध,” विक्रेता ने मछली के चमड़े में चाकू चुभोते हुए कहा। 

“अच्छी – पसन्द है; बुरी – नहीं –“ विदेशी ने गम्भीरता से कहा।

 “क्या बात है!” उत्तेजना से सेल्समैन चहका।

अब हमारे परिचित विदेशी और उसकी सोलोमन मछली से कुछ दूर, कन्फेक्शनरी विभाग की मेज़ के किनारे की ओर हट गए। “बहुत गर्मी है आज,” कोरोव्येव ने लाल गालों वाली जवान सेल्स गर्ल से कहा और उसे कोई भी जवाब नहीं मिला।

“ये नारंगियाँ कैसी हैं?” तब उससे कोरोव्येव ने पूछा।

 “तीस कोपेक की एक किलो,” सेल्स गर्ल ने जवाब दिया।

 “हर चीज़ इतनी महँगी है,” आह भरते हुए कोरोव्येव ने फ़ब्ती कसी, “आह, ओह, एख़,” उसने कुछ देर सोचा और अपने साथी से कहा, “बेगेमोत, खाओ।" मोटे ने अपना स्टोव बगल में दबाया, ऊपर वाली नारंगी मुँह में डाली और खा गया, फिर उसने दूसरी की तरफ हाथ बढ़ाया।सेल्स गर्ल के चेहरे पर भय की लहर दौड़ गई।

 “आप पागल हो गए हैं?” वह चीखी, उसके चेहरे की लाली समाप्त हो रही थी, “रसीद दिखाओ! रसीद!” और उसने कन्फेक्शनरी वाला चिमटा गिरा दिया।

 “जानेमन, प्यारी, सुन्दरी,” कोरोव्येव सिसकारियाँ लेते हुए काउण्टर पर से नीचे झुककर विक्रेता लड़की को आँख मारते हुए बोला, “आज हमारे पास विदेशी मुद्रा नहीं है।।।मगर कर क्या सकते हैं? मगर मैं वादा करता हूँ कि अगली बार सोमवार से पहले ही पूरा नगद चुका दूँगा। हम यहीं, नज़दीक ही रहते हैं, सादोवाया पर, जहाँ आग लगी है।बेगेमोत ने तीसरी नारंगी ख़त्म कर ली थी, और अब वह चॉकलेटों वाले शेल्फ में अपना पंजा घुसा रहा था; उसने एक सबसे नीचे रखा चॉकलेट बार बाहर निकाला जिससे सारे चॉकलेट बार्स नीचे गिर पड़े ; उसने अपने वाले चॉकलेट बार को सुनहरे कवर समेत गटक लिया। मछली वाले काउण्टर के सेल्समैन अपने-अपने हाथों में पकड़े चाकुओं के साथ मानो पत्थर बन गए; गुलाबी जामुनी इन लुटेरों की ओर मुड़ा, तभी सबने देखा कि बेगेमोत गलत कह रहा था : गुलाबी जामुनी के चेहरे पर किसी चीज़ की कमी होने के स्थान पर एक फालतू चीज़ थी – लटकते गाल और गोल-गोल घूमती आँख।

पूरी तरह पीली पड़ चुकी सेल्स गर्ल डर के मारे ज़ोर से चीखी, “पालोसिच! पालोसिच!"

कपड़ों वाले विभाग के ग्राहक इस चीख को सुनकर दौड़े आए, और बेगेमोत कन्फेक्शनरी विभाग से हटकर अपना पंजा उस ड्रम में घुसा रहा था जिस पर लिखा था, ‘बेहतरीन केर्च हैरिंग’। उसने नमक लगी हुई दो मछलियाँ खींचकर निकालीं और उन्हें निगल गया। पूँछ बाहर थूक दी “पालोसिच!” यह घबराहट भरी चीख दुबारा सुनाई दी, कन्फेक्शनरी वाले विभाग से, और मछलियों वाले काउण्टर का बकरे जैसी दाढ़ी वाला सेल्समैन गुर्राया, “तुम कर क्या रहे हो, दुष्ट!”


पावेल योसिफोविच फौरन तीर की तरह घटनास्थल की ओर लपका। यह प्रमुख था उस दुकान का – सफ़ेद, बेदाग एप्रन पहने, जैसा सर्जन लोग पहनते हैं, साथ में थी पेंसिल, जो उसकी जेब से दिखाई पड़ रही थी। पावेल योसिफोविच, ज़ाहिर है, एक अनुभवी व्यक्ति था। बेगेमोत के मुँह में तीसरी मछली की पूँछ देखकर उसने फ़ौरन ही परिस्थिति को भाँप लिया, सब समझ लिया, और उन बदमाशों पर चीखने और उन्हें गालियाँ देने के बदले दूर कहीं देखकर उसने हाथ से इशारा किया और आज्ञा दी:

 “सीटी बजाओ!”

स्मोलेन्स्क के नुक्कड़ पर शीशे के दरवाज़ों से दरबान बाहर भागा और भयानक सीटी बजाने लगा। लोगों ने इन बदमाशों को घेरना शुरू कर दिया, और तब कोरोव्येव ने मामले को हाथ में लिया :

“नागरिकों!” कँपकँपाती , महीन आवाज़ में वह चीखा, “यह क्या हो रहा है? हाँ, मैं आपसे पूछता हूँ! गरीब बिचारा आदमी,” कोरोव्येव ने अपनी आवाज़ को और अधिक कम्पित करते हुए कहा और बेगेमोत की ओर इशारा किया, जिसने अपने शरीर को फौरन सिकोड़ लिया था, “गरीब आदमी, सारे दिन स्टोव सुधारता रहता है; वह भूखा था...उसके पास विदेशी मुद्रा कहाँ से आए?

इस पर आमतौर से शांत और सहनशील रहने वाले पावेल योसिफोविच ने गम्भीरतापूर्वक चिल्लाते हुए कहा, “तुम यह सब बन्द करो!” और उसने दूर फिर से इशारा किया जल्दी-जल्दी। तब दरवाज़े के निकट सीटियाँ और ज़ोर से बजने लगीं ।मगर पावेल योसिफोविच के व्यवहार से क्षुब्ध हुए बिना कोरोव्येव कहता रहा, “कहाँ से? मैं आपसे सवाल पूछता हूँ! वह भूख और प्यास से बेहाल है! उसे गर्मी लग रही है। इस झुलसते आदमी ने चखने के लिए नारंगी मुँह में डाल ली। उसकी कीमत है सिर्फ तीन कोपेक। और ये सीटियाँ बजा रहे हैं, जैसे बसंत ऋतु में कोयलें जंगल में कूकती हैं; पुलिस वालों को परेशान कर रहे हैं, उन्हें अपना काम नहीं करने दे रहे। और वह खा सकता है? हाँ?” अब कोरोव्येव ने हल्के गुलाबी जामुनी मोटे की ओर इशारा किया, जिससे उसके मुँह पर काफी घबराहट फैल गई, “वह है कौन? हाँ? कहाँ से आया? किसलिए? क्या उसके बगैर हम उकता रहे थे? क्या हमने उसे आमंत्रित किया था? बेशक,” व्यंग्य से मुँह को टेढ़ा बनाते हुए पूरी आवाज़ में वह चिल्लाया, “वह, देख रहे हैं न, उसकी जेबें विदेशी मुद्रा से ठसाठस भरी हैं। और हमारे लिए।।।हमारे नागरिक के लिए! मुझे दुःख होता है! बेहद अफ़सोस है! अफ़सोस!” कोरोव्येप विलाप करने लगा। जैसे प्राचीन काल में शादियों के समय बेस्ट-मैन द्वारा किया जाता था।

इस बेवकूफी भरे, बेतुके, मगर राजनीतिक दृष्टि से ख़तरनाक भाषण ने पावेल योसिफोविच को गुस्सा दिला ही दिया, वह थरथराने लगा, मगर यह चाहे कितना ही अजीब क्यों न लग रहा हो, चारों ओर जमा हुई भीड़ की आँखों से साफ प्रकट हो रहा था कि लोगों को उससे सहानुभूति हो रही है! और जब बेगेमोत अपने कोट की गन्दी, फटी हुई बाँह आँख पर रखकर दुःख से बोला, “धन्यवाद, मेरे अच्छे दोस्त, तुम एक पीड़ित की मदद के लिए आगे तो आए!” तो एक चमत्कार और हुआ। एक भद्र, खामोश बूढ़ा, जो गरीबों जैसे मगर साफ़ कपड़े पहने हुए था, जिसने कन्फेक्शनरी विभाग में तीन पेस्ट्रियाँ खरीदी थीं, एकदम नए रूप में बदल गया। उसकी आँखें ऐसे जलने लगीं, मानो वह युद्ध के लिए तैयार हो रहा हो; उसका चेहरा लाल हो गया, उसने पेस्ट्रियों वाला पैकेट ज़मीन पर फेंका और चिल्लाने लगा, “सच है!” बच्चों जैसी आवाज़ में यह कहने के बाद उसने ट्रे उठाया, उसमें से बेगेमोत द्वारा नष्ट किए गए ‘एफिल टॉवर’ चॉकलेट के बचे-खुचे टुकड़े फेंक दिए, उसे ऊपर उठाया, बाएँ हाथ से विदेशी की टोपी खींच ली, और दाएँ हाथ से ट्रे विदेशी के सिर पर दे मारी। ऐसी आवाज़ हुई मानो किसी ट्रक से लोहे की चादरें फेंकी जा रही हैं। मोटा फक् हुए चेहरे से मछलियों वाले ड्रम में जा गिरा, इससे उसमें से नमकीन द्रव का फ़व्वारा निकलने लगा। तभी एक और चमत्कार हुआ, हल्का गुलाबी जामुनी व्यक्ति ड्रम में गिरने के बाद साफ-स्पष्ट रूसी में चिल्ला पड़ा, “मार डालेंगे! पुलिस! मुझे डाकू मारे डाल रहे हैं!” ज़ाहिर है, इस अचानक लगे मानसिक धक्के से वह अब तक अनजानी भाषा पर अधिकार पा चुका था।तब दरबान की सीटी रुक गई, घबराए हुए ग्राहकों के बीच से पुलिस की दो टोपियाँ निकट आती दिखाई दीं। मगर चालाक बेगेमोत ने स्टोव के तेल से कन्फेक्शनरी विभाग का काउण्टर इस तरह भिगोना शुरू किया जैसे मशकों से हमाम की बेंच भिगोई जाती है; और वह अपने आप भड़क उठा। लपट ऊपर की ओर लपकी और पूरे विभाग को उसने अपनी गिरफ़्त में ले लिया। और दोनों दुष्ट – कोरोव्येव और बेगेमोत –छत से लगे-लगे उड़ते रहे और फिर ऐसे फूटकर बिखर गए, जैसे बच्चों के गुब्बारे हों।


बुल्गाकोव समाज की जिस बुराई को नापसन्द करते हैं वह आग में भस्म हो जाती है।


कोरोव्येव और बेगेमोत का अगला लक्ष्य है ग्रिबोयेदोव भवन। इसके बारे में हम अध्याय 5 में पढ़ चुके हैं।ग्रिबोयेदोव भवन मॉस्को की साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र था। यहाँ लेखक ‘उगाये’ जाते थे। बुल्गाकोव उन तत्कालीन ’साहित्यिक स्टूडिओज़’ का मखौल उड़ाते हैं जहाँ लेखक ‘बनाए’ जाते थे।  


चलिए, देखते हैं कि वहाँ क्या होता है:

स्मोलेन्स्क वाली घटना के ठीक एक मिनट बाद बेगेमोत और कोरोव्येव ग्रिबोयेदोव वाली बुआजी के घर के निकट वाले उस रास्ते के फुटपाथ पर दिखाई दिए, जिसके दोनों ओर पेड़ लगे थे। कोरोव्येव जाली के निकट रुका और बोला,“ब्बा! हाँ, यह लेखकों का भवन है। बेगेमोत, जानते हो, मैंने इस भवन की बहुत तारीफ सुनी है। इस घर की ओर ध्यान दो, मेरे दोस्त! यह सोचकर कितना अच्छा लगता है कि इस छत के नीचे इतनी योग्यता और बुद्धिमत्ता फल-फूल रही है!”

 “जैसे काँच से घिरे बगीचों में अनन्नास!” बेगेमोत ने कहा और वह स्तम्भों वाले इस भवन को अच्छी तरह देखने के लिए लोहे की जाली के आधार पर चढ़ गया। “बिल्कुल सही है,” कोरोव्येव अपने साथी की बात से सहमत होते हुए बोला, “दिल में यह सोचकर मीठी सुरसुरी दौड़ जाती है कि अब इस मकान में ‘दोन किखोत’ या ‘फाऊस्त’ या, शैतान मुझे ले जाए, यहाँ ‘मृत आत्माएँ’ जैसी रचनाएँ लिखने वाला भावी लेखक पल रहा है! हाँ?”

 “अजीब लगता है सोचकर,” बेगेमोत ने पुष्टि की।

 “हाँ,” कोरोव्येव बोलता रहा, “अजीब-अजीब चीज़ें होती हैं – इस भवन की क्यारियों में, जो अपनी छत के नीचे हज़ारों ऐसे लोगों को आश्रय देता है, जो साहित्य-सेवा में अपना पूरा जीवन बिता देना चाहते हैं। तुम सोचो, कितना शोर मचेगा तब, जब इनमें से कोई एक जनता के सम्मुख ऐसी रचना प्रस्तुत करेगा – जैसे ‘इन्स्पेक्टर जनरल’ या उससे भी ज़्यादा बदतर स्थिति में – ‘येव्गेनी अनेगिन’

 “काफी आसान है,” बेगेमोत ने फिर से कहा।

 “हाँ!” कोरोव्येव कहता रहा और उसने चिंता से उँगली ऊपर को उठाई, “लेकिन!।।।लेकिन, मैं कहता हूँ, और दुहराता हूँ यह – ‘लेकिन!’ अगर इन आरामदेह नाज़ुक फसलों पर कोई कीट न गिरे, उन्हें जड़ से न खा जाए, अगर वे मर न जाएँ! और ऐसा अनन्नासों के साथ होता है! ओय, ओय, ओय, कैसा होता है!बेगेमोत ने जाली में बने छेद से अपना सिर अन्दर घुसाते हुए पूछा, “लेकिन ये सब लोग बरामदे में क्या कर रहे हैं?”

 “खाना खा रहे हैं,” कोरोव्येव ने समझाया, “मैं तुम्हें यह भी बताता हूँ, मेरे प्यारे दोस्त, कि यहाँ एक बहुत अच्छा और सस्ता रेस्तराँ है। और मैं, जैसा कि दूर के सफर पर निकलने से पहले हर यात्री चाहता है, यहाँ कुछ खाना चाहता हूँ। ठण्डी शराब का एक पैग पीना चाहता हूँ।”

 “मैं भी,” बेगेमोत ने जवाब दिया और दोनों बदमाश लिण्डेन के वृक्षों की छाया तले सीमेण्ट के रास्ते पर चलते हुए सीधे, आगामी ख़तरे से बेख़बर रेस्तराँ के बरामदे के प्रवेश द्वार तक आ गए ।

एक बदरंग-सी उकताई महिला सफ़ॆद स्टॉकिंग्स और फुँदे वाली गोल सफ़ॆद टोपी पहने, कोने वाले प्रवेश-द्वार के पास कुर्सी पर बैठी थी, जहाँ हरियाली बेलों के बीच छोटा-सा प्रवेश-द्वार बनाया गया था। उसके सामने एक साधारण-सी मेज़ पर एक मोटा रजिस्टर पड़ा था। उसमें यह महिला न जाने क्यों, रेस्तराँ में आने वालों के नाम लिख रही थी। इस महिला ने कोरोव्येव और बेगेमोत को रोका।

 “आपका परिचय-पत्र?” उसने कोरोव्येव के चश्मे की ओर और बेगेमोत की फटी हुई बाँह तथा बगल में दबे हुए स्टोव को आश्चर्य से देखते हुए पूछा।

 “हज़ार बार माफ़ी चाहता हूँ, कैसा परिचय-पत्र?” कोरोव्येव ने हैरानी से पूछा 

“आप लेखक हैं?” महिला ने जवाब में पूछ लिया।

 “बेशक!” कोरोव्येव ने काफी अहमियत से कहा।

 “आपका परिचय-पत्र?” महिला ने दुहराया।

 “मेरी मनमोहिनी।।।,” कोरोव्येव ने भावुकता से कहना शुरू किया।

 “मैं मनमोहिनी नहीं हूँ,” महिला ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा।

 “ओह, कितने दुःख की बात है,” कोरोव्येव ने निराशा से कहा, “अगर आपको मोहक होना पसन्द नहीं है, तो चलिए, ऐसा ही हो, हालाँकि यह आपके लिए बढ़िया होता। तो मैडम, दोस्तोयेव्स्की लेखक है, यह सुनिश्चित करने के लिए क्या उसी से प्रमाण-पत्र माँगना चाहिए? आप उसके किसी भी उपन्यास के कोई भी पाँच पृष्ठ ले लीजिए, और बिना किसी परिचय-पत्र के आपको विश्वास हो जाएगा कि आप एक अच्छे लेखक को पढ़ रही हैं। हाँ, उसके पास शायद कोई परिचय-पत्र था ही नहीं! तुम्हारा क्या ख़याल है?” कोरोव्येव बेगेमोत से मुख़ातिब हुआ। 

“शर्त लगाता हूँ, कि नहीं था,” वह स्टोव को रजिस्टर के पास रखकर एक हाथ से धुएँ से काले हो गए माथे का पसीना पोंछता हुआ बोला।

 “आप दोस्तोयेव्स्की नहीं हैं,” कोरोव्येव की दलीलों से पस्त होकर महिला ने कहा।

 “लो, आपको कैसे मालूम? आपको कैसे मालूम?” उसने जवाब दिया।

 “दोस्तोयेव्स्की मर चुका है,” महिला ने कहा, मगर शायद उसे भी इस बात का विश्वास नहीं हो रहा था।

 “मैं इस बात का विरोध करता हूँ,” बेगेमोत ने तैश में आते हुए कहा, “दोस्तोयेव्स्की अमर है!”

 “आपके परिचय-पत्र, नागरिकों!” उस महिला ने फिर पूछा।

 “माफ कीजिए, यह तो हद हो गई?” कोरोव्येव ने हार नहीं मानी और कहता रहा, “लेखक को कोई उसके परिचय-पत्र से नहीं जानता, बल्कि उसे जाना जाता है उसके लेखन से! आपको क्या मालूम कि मेरे दिमाग में कैसे-कैसे विचार उठ रहे हैं? या इस दिमाग में?” उसने बेगेमोत के सिर की ओर इशारा किया, जिसने फौरन अपनी टोपी उतार ली, शायद इसलिए कि वह महिला उसका सिर अच्छी तरह देख सके।

 “रास्ता छोड़ो, श्रीमान,” उस औरत ने काफी घबराते हुए कहा।कोरोव्येव और बेगेमोत ने एक ओर हटकर भूरे सूट वाले, बिना टाई के एक लेखक को रास्ता दिया। इस लेखक ने सफ़ेद कमीज़ पहन रखी थी, जिसका कॉलर कोट के ऊपर खुला पड़ा था। उसने बगल में अख़बार दबा रखा था। लेखक ने अभिवादन के अन्दाज़ में महिला को देखकर सिर झुकाया और सामने रखे रजिस्टर में चिड़ियों जैसी कोई चीज़ खींच दी और बरामदे में चला गया।

 “ओह,” बड़े दुःख से कोरोव्येव ने आह भरी, “हमें नहीं, बल्कि उसे मिलेगी वह ठण्डी बियर जिसका हम गरीब घुमक्कड़ सपना देख रहे थे। हमारी स्थिति बड़ी चिंताजनक हो गई है, समझ में नहीं आ रहा क्या किया जाएबेगेमोत ने दुःख प्रकट करते हुए हाथ हिला दिए और अपने गोल सिर पर टोपी पहन ली जिस पर बिल्कुल बिल्ली की खाल जैसे घने बाल थे। उसी क्षण उस महिला के सिर पर एक अधिकार युक्त आवाज़ गूँजी, “आने दो, सोफ्या पाव्लोव्ना।

रजिस्टर वाली औरत चौंक गई। सामने बेलों की हरियाली में से एक सफेद जैकेट वाला सीना और कँटीली दाढ़ी वाला समुद्री डाकू का चेहरा उभरा। उसने इन दोनों फटे कपड़ों वाले सन्देहास्पद प्राणियों की ओर बड़े प्यार से देखा, और तो और, उन्हें इशारे से आमंत्रित भी करने लगा। आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच का दबदबा पूरे रेस्तराँ में उसके अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा महसूस किया जाता था। सोफ्या पाव्लोव्ना ने कोरोव्येव से पूछा, “आपका नाम?"

 “पानायेव,” शिष्ठतापूर्वक उसने जवाब दिया। महिला ने वह नाम लिख लिया और प्रश्नार्थक दृष्टि से बेगेमोत की ओर देखा।

 “स्काबिचेव्स्की,” वह न जाने क्यों अपने स्टोव की ओर इशारा करते हुए चिड्चिड़ाया। सोफ्या पाव्लोव्ना ने यह नाम भी लिख दिया और रजिस्टर आगंतुकों की ओर बढ़ा दिया, ताकि वे हस्ताक्षर कर सकें। कोरोव्येव ने ‘पानायेव’ के आगे लिखा ‘स्काबिचेव्स्की’; और बेगेमोत ने ‘स्काबिचेव्स्की’ के आगे लिखा ‘पानायेव’। सोफ्या पाव्लोव्ना को पूरी तरह हैरत में डालते हुए आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच मेहमानों को बड़े प्यार से मुस्कुराते हुए बरामदे के दूसरे छोर पर स्थित सबसे बेहतरीन टेबुल के पास ले गया। वहाँ काफी छाँव थी। टेबुल के बिल्कुल निकट सूरज की मुस्कुराती किरणें बेलों से छनकर आ रही थीं। सोफ्या पाव्लोव्ना विस्मय से सन्न् उन दोनों विचित्र हस्ताक्षरों को देख रही थी, जो उन अप्रत्याशित मेहमानों ने किए थे।

बेयरों को भी आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच ने कम आश्चर्यचकित नहीं किया। उसने स्वयँ कुर्सी खींची और कोरोव्येव को बैठने की दावत दी, फिर एक बेयरे को इशारा किया, दूसरे के कान में फुसफुसाकर कुछ कहा, और दोनों बेयरे नये मेहमानों की ख़िदमत में तैनात हो गए।मेहमानों में से एक ने अपना स्टोव ठीक अपने लाल जूते की बगल में फर्श पर रखा था। टेबुल के ऊपर वाला पुराना पीले धब्बों वाला मेज़पोश फौरन गायब हो गया और हवा से उड़ता हुआ सफ़ेद कलफ़ लगा मेज़पोश उसकी जगह आ आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच हौले-हौले कोरोव्येव के ठीक कान के पास फुसफुसा रहा था, “आपकी क्या ख़िदमत कर सकता हूँ? खासतौर से बनाई गई लाल मछली, आर्किटेक्टों की कॉंन्फ्रेंस से चुराकर लाया हूँ...” 

“आप...अँ...हमें कुछ भी खाने को दीजिए,।अँ” कोरोव्येव सहृदयता से कुर्सी पर फैलते हुए बोला।

 “समझ गया,” आँखें बन्द करते हुए आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच ने अर्थपूर्ण ढंग से कहा।

 “पहाड़ी बादाम और तीतर का पकवान हाज़िर कर सकता हूँ,” संगीतमय सुर में आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच बोला। टूटे चश्मे वाले मेहमान ने इस प्रस्ताव को बहुत पसन्द किया और धन्यवाद के भाव से बेकार के चश्मे की ओट से उसे देखा. बगल की मेज़ पर बैठा कहानीकार पेत्राकोव सुखोयेव जो अपनी पत्नी के साथ पोर्क चॉप खा रहा था, अपनी स्वाभाविक लेखकीय निरीक्षण शक्ति से आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच द्वारा की जा रही आवभगत को देखकर काफी चौंक गया। उसकी सम्माननीय पत्नी ने कोरोव्येव की इस समुद्री डाकू से होती निकटता को देखकर जलन के मारे चम्मच बजाया, मानो कह रही हो – यह क्या बात है कि हमें इंतज़ार करना पड़ रहा है, जबकि आइस्क्रीम देने का समय हो गया है! बात क्या हआर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच ने मुस्कुराते हुए पेत्राकोवा की ओर एक बेयरे को भेज दिया, लेकिन वह खुद अपने प्रिय मेहमानों से दूर नहीं हटा। आह, आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच बहुत अकलमन्द था! लेखकों से भी ज़्यादा पैनी नज़र रखने वालाआर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच वेराइटी ‘शो’ के बारे में भी जानता था, और इन दिनों हो रही अनेक चमत्कारिक घटनाओं के बारे में भी उसने सुन रखा था; लेकिन औरों की भाँति ‘चौखाने वाला’ और ‘बिल्ला’ इन दो शब्दों को उसने कान से बाहर नहीं निकाल दिया था। आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच ने तुरंत अन्दाज़ लगा लिया था कि मेहमान लोग कौन हैं। वह जान चुका था, इसलिए उसने उनसे बहस नहीं की।आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच बहुत धूर्त व्यक्ति था।

वह मेज़ से हटकर रेस्तराँ के अन्दरूनी गलियारे में गायब हो गया। अगर कोई आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच के आगामी कार्यकलापों का निरीक्षण करता, तो वे उसे कुछ रहस्यमय ही प्रतीत होतीं। वह टेबुल से दूर हटकर तेज़ी से किचन में नहीं, अपितु रेस्तराँ के भंडारघर में गया। उसने अपनी चाभी से उसे खोला और उसमें बन्द हो गया। बर्फ से भरे डिब्बे में से सावधानी से दो भारी-भारी लाल मछलियाँ निकालकर सावधानी से उन्हें अख़बार में लपेटा। उसके ऊपर से रस्सी बाँध दी और एक किनारे पर रख दिया। फिर बगल वाले कमरे में जाकर इत्मीनान कर लिया कि उसका रेशमी अस्तर वाला गर्मियों वाला कोट और टोपी अपनी जगह पर हैं या नहीं। तभी वह रसोईघर में पहुँचा, जहाँ रसोइया मेहमानों से वादा की गई तीतर तल रहा था।

कहना पड़ेगा कि आर्किबाल्द आर्किबादोविच के कार्यकलाप में कुछ भी रहस्यमय नहीं था और उन्हें रहस्यमय केवल एक उथला निरीक्षक ही कह सकता है। पहले घटित हो चुकी घटनाओं के परिणामों को देखते हुए आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच की हरकतें तर्कसंगत ही प्रतीत होती थीं। हाल की घटनाओं की जानकारी और ईश्वर प्रदत्त पूर्वानुमान करने की अद्वितीय शक्ति ने आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच को बता दिया था, कि उसके दोनों मेहमानों का भोजन चाहे कितना ही लजीज़ और कितना ही अधिक क्यों न हो, वह बस कुछ ही देर चलेगा। और उसकी इस शक्ति ने उसे इस बार भी धोखा नहीं दिया।जब कोरोव्येव और बेगेमोत मॉस्को की अत्यंत परिशुद्ध वोद्का का दूसरा जाम टकरा रहे थे, तब बरामदे में पसीने से लथपथ घबराया हुआ संवाददाता बोबा कान्दालूप्स्की घुसा जो मॉस्को में अपने हरफनमौला ज्ञान के कारण सुप्रसिद्ध था। आते ही वह पेत्राकोव दम्पत्ति के पास बैठ गया। अपनी फूली हुई ब्रीफकेस टेबुल पर रखते हुए बोबा ने अपने होठ तुरंत पेत्राकोव के कान से सटा दिए और बहुत ही सनसनीख़ेज़ बातें फुसफुसाने लगा। मैडम पेत्राकोवा ने भी उत्सुकतावश अपना कान बोबा के चिकने फूले-फूले होठों से लगा दिया। वह कनखियों से इधर-उधर देखता बस फुसफुसाए जा रहा था। कुछ अलग-थलग शब्द जो सुनाई पड़े वे थे: “कसम खाकर कहता हूँ! सादोवाया पर सादोवाया पर ” बोबा ने आवाज़ और नीची करते हुए कहा, “गोलियाँ नहीं लग रहीं! गोलियाँ,गोलियाँ,तेल तेल, आग गोलियाँ”


 “ऐसे झूठों को, जो ऐसी गन्दी अफ़वाहें फैलाते हैं,” गुस्से में मैडम पेत्राकोवा कुछ ऊँची, भारी आवाज़ में, जैसी बोबा नहीं चाहता था, बोल पड़ी, “उनकी तो ख़बर लेनी चाहिए! ख़ैर, कोई बात नहीं, ऐसा ही होगा, उन्हें सबक सिखाया ही जाएगा! ओह, कैसे ख़तरनाक झूठे!"

 “कहाँ के झूठे, अंतोनीदा पोर्फिरेव्ना!” लेखक की पत्नी के अविश्वास दिखाने से उत्तेजित और आहत होकर बोबा चिल्लाया, और फुसफुसाते हुए बोला, “मैं कह रहा हूँ आपसे, गोलियों से कोई फ़ायदा नहीं हो रहा।और अब आग में हवा में। “ बोबा कहता रहा, बिना सोचे-समझे कि जिनके बारे में वह बता रहा है, वे उसकी बगल में ही बैठे हैं, और उसकी सीटियों जैसी फुसफुसाहट का आनन्द ले रहे हैं। मगर यह आनन्द जल्दी ही समाप्त हो गया।

रेस्तराँ के अन्दरूनी भाग से तीन व्यक्ति बरामदे में आए। उनके बदन पर कई पट्टे कसे हुए थे। हाथों में रिवॉल्वर थे। सबसे आगे वाले ने गरजते हुए कहा, “अपनी जगह से हिलो मत!” और फौरन उन तीनों ने बरामदे में कोरोव्येव और बेगेमोत के सिर को निशाना बनाते हुए गोलीबारी शुरू कर दी। गोलियाँ खाकर वे दोनों हवा में विलीन हो गए, और स्टोव से आग की एक लपट उस शामियाने में उठी जहाँ रेस्तराँ था। काली किनार वाला एक विशाल फन मानो शामियाने में प्रकट हुआ और चारों ओर फैलने लगा। आग की लपटें ऊँची होकर ग्रिबोयेदोव भवन की छत तक पहुँचने लगीं। दूसरी मंज़िल पर सम्पादक के कमरे में रखी फाइलें भभक उठीं; उसके बाद लपटों ने परदों को दबोच लिया, फिर आग भीषण रूप धारण कर बुआजी वाले मकान में घुस गई, मानो उसे कोई हवा दे रहा हो।

कुछ क्षणों बाद सीमेण्ट वाले रास्ते पर, आधा खाना छोड़कर लेखक, बेयरे, सोफ्या पाव्लोव्ना, बोबा, पेत्राकोवा और पेत्राकोव भाग रहे थे। यह वही रास्ता है जो लोहे की जाली तक जाता है, और जहाँ से बुधवार की शाम को इस दुर्भाग्य की प्रथम सूचना देने वाला अभागा इवानूश्का आया था, और जिसे कोई समझ नहीं पाया था।


समय रहते पिछले दरवाज़े से बिना जल्दबाज़ी किए निकला आर्किबाल्द आर्किबाल्दोविच – जलते हुए जहाज़ के कप्तान की तरह, जो सबसे अंत में जहाज़ छोड़ता है। वह अपना रेशमी अस्तर का कोट पहने था और बगल में दो मछलियों वाला पैकेट दबाए था।
















 











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