Saroj Verma

Fantasy

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चन्द्र-प्रभा--भाग(१४)

चन्द्र-प्रभा--भाग(१४)

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नागदेवता ने स्वयं के और अम्बिका के मध्य हुई शत्रुता का कारण सबको बताया__

वैद्यनाथ जी बोले तो ये कारण था कि वर्षो से अम्बिका के हृदय में प्रतिशोध की ज्वाला जल रही थी परन्तु आज भी तो वो सफल नहीं हो पाई और अब तो नागदेवता आपको और भी अत्यधिक सावधान रहने की आवश्यकता है , अब तो एक रत्ती भी असावधानी महंगी पड़ सकती हैं इसलिए आपकी सुरक्षा के विषय में हम सबको और भी ध्यान देना होगा, दोनों बहने चाण्डालिका हैं, क्या पता कहाँ से आकर किस रूप को धरकर प्रहार कर दें।

बिल्कुल सही कहा बाबा आपने, भालचन्द्र बोला।

मुझे ऐसा लगता है जब तक सहस्त्रबाहु पूर्णतः स्वस्थ ना हो जाएं तो इसी स्थान पर रहना ही उचित रहेगा क्योंकि इस स्थान पर सभी वस्तुओं का साधन है, जल के लिए झरना और फलों वालें वृक्षों की भी अधिकता हैं, विभूतिनाथ जी बोले।

परन्तु इस स्थान के विषय में अम्बालिका को ज्ञात हो गया हैं, उसने पुन:कोई घृणित कार्य किया तो, भालचन्द्र बोला।

परन्तु, इससे अच्छा स्थान मिलना सम्भव नहीं, यहाँ से शीशमहल भी अत्यधिक दूर नहीं हैं और शीशमहल के अत्यधिक निकट रहना भी उचित नहीं होगा, नागदेवता बोले।

 जी और सहस्त्रबाहु के कुछ दिनों में स्वस्थ होते ही हमें उस महल के भीतर जाने के उपाय भी तो सोचने हैं, क्योंकि राजकुमारी ना जाने कैसा कष्टमय जीवन जी रही होगी, वैद्यनाथ जी बोले।

भालचन्द्र बोला, वहीं तो।

चिंतित ना हो राजकुमार! राजकुमारी की दशा आज रात्रि मैं देखने जाऊँगी, मैं तो इच्छाधारी हूँ और सरलतापूर्वक किसी का भी रूप धर सकती हूँ और धरती में कहीं भी छिप सकती हूँ, अम्बालिका मुझे पकड़ने में सफल ना होगी, नागदेवी बोली।

 परन्तु माता! आपके प्राण संकट में पड़े तो, भालचन्द्र ने पूछा।

मै जाऊँगा ना नागरानी की सहायता के लिए, मैं महल के बाहर पहरा दूँगा और नागरानी राजकुमारी से मिलकर बाहर आ जाएंगी और ये भी तो देखना अत्यधिक आवश्यक कि अम्बालिका ने स्वयं की सुरक्षा के लिए क्या क्या प्रबन्ध कर रखें हैं, नागदेवता बोले।

ये आप बिल्कुल सही कह रहें हैं, ये ज्ञात होना तो अति आवश्यक है कि अम्बालिका ने सुरक्षा हेतु क्या क्या प्रबन्ध कर रखें हैं, वैद्यनाथ जी बोले।

परन्तु यहाँ आपकी सुरक्षा का प्रश्न है, नही तो मैं कुछ नहीं कहता, भालचन्द्र बोला।

हमें कुछ नहीं होगा, आप चिंतित ना हो राजकुमार, नागरानी बोली।

 किन्तु याद रहें, ये रहस्य ही रहें कि हम वहाँ जा रहें हैं, ये बात हम सबके मध्य ही रहनी चाहिए, नागदेवता बोले।

रात्रि हुई नागदेवता और नागरानी ने शीशमहल जाने की तैयारी की, भालचन्द्र ने दोनों के चरणस्पर्श किए और विभूतिनाथ जी ने आशीर्वाद दिया कि आप दोनों अपने उद्देश्य में सफल हों, नागरानी और नागदेवता ने सर्प का रूप धारण किया और चल पड़े अपने गंतव्य की ओर।

 शीशमहल पहुँचकर दोनों ने देखा कि अम्बालिका ने द्वार पर कड़ा पहरा लगा रखा हैं, तब नागरानी ने नागदेवता से कहा कि मैं वाटिका की ओर से प्रवेश करती हूँ,

 नागदेवता बोले, जैसा आप उचित समझें नागरानी लेकिन जो भी कार्य करें, सावधानी के साथ करें, क्योंकि वो अम्बालिका है और उसने अपनी सुरक्षा का कोई भी प्रबन्ध नहीं छोड़ा होगा।

 जी स्वामी ! मैं इसका पूरा पूरा ध्यान रखूँगी कि मुझसे कोई ऐसी भूल ना हो कि मेरे प्राण संकट में आ जाएं।

तभी दोनों को शीशमहल से बाहर आते हुए अम्बिका दिखीं और वो रात्रि में कहीं जा रही थीं, उसे देखकर दोनों छुप गए, जब वो चली गई तब नागरानी बोली___

मुझे एक युक्ति सूझीं हैं, नागदेवता!

 वो क्या नागरानी? नागदेवता ने पूछा।

वो ये कि मैं जैसे ही शीशमहल की वाटिका से भीतर जाऊँगी तो अम्बिका का रूप धर लूँगी, जिससें कि मुझे कोई पहचान ना पाएं क्योंकि अम्बिका तो बाहर गई हैं और किसी ने पूछा कि इतनी शीघ्र वापस क्यों आ गई तो कह दूँगी कि बाहर जाने का मन नहीं किया तो आधे रास्तें से लौट आई, नागरानी बोली।

हाँ, ये उत्तम विचार है, नागदेवता बोले।

और नागरानी ने वाटिका में प्रवेश किया, देखा तो अम्बालिका वहाँ पहले से उपस्थित थी, अम्बालिका को देखकर नागरानी एक झाड़ियों में कुण्डली मारकर छुप गई, , वाटिका का दृश्य कुछ इस प्रकार था___

अम्बालिका और रानी जलकुम्भी के मध्य वार्तालाप हो रहा था___

अम्बालिका! तुम क्यों वाटिका में बार बार आ जाती हूँ, इस मैना के हृदय को कष्ट पहुँचाने, उसे कष्ट पहुँचाकर भला तुम्हें क्या आनंद आता हैं?रानी जलकुम्भी ने अम्बालिका से पूछा।

 रानी जलकुम्भी तुम्हें तो इसकी इतनी चिंता हैं जैसे कि ये तुम्हारी पुत्री हो, अम्बालिका बोली।

पुत्री नहीं है तो क्या हुआ ? पुत्री समान तो है, मेरी भी पुत्री सूर्यप्रभा आज मेरे संग होती अगर उस रात्रि तुमनें

वो सब ना किया होता, रानी जलकुम्भी बोली।

परन्तु उस रात्रि तुम्हारे राजा अपारशक्ति ने मुझे हानि पहुँचाने का प्रयत्न किया था इसलिए मुझे विवश होकर वो सब करना पड़ा, अम्बालिका बोली।

परन्तु, तुमने भी तो अपने स्वार्थ के लिए इतने लोगों की हत्या की थी और एक राजा अपने प्रजा का दुख भला कैसे देख सकता था, रानी जलकुम्भी बोली।

 इसलिए तो तुम्हारा राजा अब तक काठ का पुतला बना पिंजरे में बंदी होकर पड़ा है, अम्बालिका बोली।

 तुम कुछ भी कर लो, कितने भी पाप क्यों ना कर लो अम्बालिका !एक ना एक दिन तुम्हें इन सबका दण्ड अवश्य भुगतना पड़ेगा और वो दिन शीघ्र ही आने वाला है, जिस दिन इस मैना का राजकुमार यहाँ आ पहुँचा, उस दिन तुम्हारे इस साम्राज्य का सर्वनाश हो जाएगा, रानी जलकुम्भी बोली।

 रानी जलकुम्भी ऐसे स्वप्न देखना छोड़ दो, अभी अम्बिका पुनः वहीं गई है, राजकुमार और उसके साथियों के निकट, देखते हैं क्या सूचना लेकर आती हैं, अम्बालिका बोली।

तुम दोनों बहनें कुछ भी कर लो, परन्तु अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाओगी, रानी जलकुम्भी बोली।

मेरे पास इतना समय नहीं है कि मै तुमसे निरर्थक वार्तालाप करूँ, मैं जा रही हूँ, तुम अपनी मैना से वार्तालाप करों और इतना कहकर अम्बालिका वाटिका से चली गई।

अम्बालिका के जाते ही नागदेवी झाड़ियों से बाहर आई और रानी जलकुम्भी के सामने आकर अपना मानव रूप धर लिया, ये देखकर जलकुम्भी कुछ भयभीत हुई और बोली___

अम्बालिका! अब ये क्या है?तुम वापस लौट आई, हम दोनों को भयभीत करने, एक नए रूप के संग,

 तब नागरानी बोली___

आपको कोई संदेह हुआ है रानी जलकुम्भी, मैं अम्बालिका नहीं हूँ, मैं इच्छाधारी नागिन हूँ और राजकुमार भालचन्द्र की साथी हूँ, वैद्यनाथ और विभूतिनाथ जी भी राजकुमार के ही संग हैं, मेरे पति नागदेवता और मैं उनकी सहायता के लिए उनके साथ है, नागरानी बोली।

 लेकिन मैं आप पर कैसे विश्वास करूँ कि आप नागरानी हैं और भालचन्द्र की मित्र हैं, ऐसा भी तो हो सकता है कि ये अम्बालिका का कोई नया षणयन्त्र हो, जलकुम्भी बोली।

 जी, ये देखिए राजकुमार ने राजकुमारी के लिए उनकी मुद्रिका भेजी हैं, ये देखकर राजकुमारी अवश्य समझ जाएंगी की ये राजकुमार की हैं, नागरानी बोली।

और नागरानी वो मुद्रिका लेकर मैना के पिंजरे के निकट पहुँची और मुद्रिका दिखाकर बोली___

राजकुमारी सूर्यप्रभा तुम इसे पहचानती हो, ये राजकुमार ने तुम्हारे लिए भेंजी हैं।

 मुद्रिका देखकर प्रसन्नता से सूर्यप्रभा के अश्रु बहने लगे।

तभी जलकुम्भी ने अचंम्भित होकर नागरानी से पूछा कि क्या मैना का नाम सूर्यप्रभा है?

 हाँ, रानी जलकुम्भी और ये ही आपकी पुत्री है, अम्बालिका इसे मैना में परिवर्तित कर यहाँ ले आई, इसलिए तो राजकुमार भालचन्द्र इसे बचाने यहाँ आ रहें हैं , मैं और मेरे पति भी भालचन्द्र के संग हैं, नागरानी ने जलकुम्भी से कहा।

तो ये मेरी पुत्री हैं, रानी जलकुम्भी प्रसन्नता से रो पड़ी।

परन्तु रानी जलकुम्भी मुझे इस समय जाना होगा, बाहर मेरे स्वामी मेरी प्रतीक्षा कर रहें हैं और अम्बिका उन सबके निकट पहुँच कर ना जाने कौन सा षणयन्त्र रचने वाली है, मुझे इस सब की सूचना उन सब तक शीघ्र ही पहुँचानी होगी, मैं तो केवल ये ज्ञात करने आई थी की राजकुमारी कुशल मंगल है कि नहीं, अच्छा अब मैं चलती हूँ, शीघ्र ही पुनः आने का प्रयास करूँगी और इतना कहकर नागरानी ने सर्प का रूपधारण किया और बाहर चली गई।

और इधर माँ बेटी एक दूसरे के गले लगकर बहुत रोईं।

नागरानी बाहर पहुँची और उसने नागदेवता को बताया कि उसे अम्बिका का रुप धरने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी , परन्तु अम्बिका पुनःवहाँ गई है और ना जाने कौन सा षड़यन्त्र रचने वाली है, नागदेवता और नागरानी चल पड़े उन सब को सूचना देने।

क्रमशः


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