"चंदों का अंतर्द्वंद"
"चंदों का अंतर्द्वंद"


वकील साहब ने चंदों को बाबा साहेब के बारे में क्या बताया कि वह बाबा साहेब की शिक्षाओं को याद कर बहुत सोचती - कि लोग बाबा साहेब के उपकार, त्याग और समर्पण को भूल क्यों गए है।
वे काल्पनिक देवी- देवता को क्यों पूजते है वे ऐसा सदियों से करते आए है लेकिन फिर भी उनकी स्थिति में परिवर्तन क्यों नहीं आया है।
वे ऐसा क्यों नहीं सोचते ?
क्या वे अहसान फरामोश है कि जिसने देश की एकता, अखंडता और बंधुता बढ़ाने के लिए अपने घर बार, पत्नी और चार चार बच्चों को कुर्बान कर दिया लेकिन समाज के दबे कुचले, दीन हीन, पिछड़े, शूद्र, अति शूद्र, अस्पृश्य और आदिवासी तथा महिलाओं के हक अधिकारों की लड़
ाई लड़ी और उन्हें कानूनन सम्मानजनक स्थिति में पहुंचाया और उनके लिए वो पुण्य काम जो सच में बाबा साहेब ने किया वैसा आज तक कोई और नहीं कर पाया।
वह अपने आप से प्रश्न करती कि ऐसे महापुरुष का तो गौरव गान होना चाहिए उन्हें रामायण, महाभारत और अन्य धार्मिक सीरियलों की तरह दिखाया जाना चाहिए, उनका साहित्य छापा जाना चाहिए और पाठ्यक्रम में लगाया जाना चाहिए लेकिन यह नहीं किया गया ऐसा क्यों?
उसके इन प्रश्नों का उत्तर देने वाला उसके आस पास कोई नहीं था
फिर भी वह हताश नहीं हुई और जब उसे वकील साहब द्वारा बताई गई14 अप्रैल बात याद आ गई तो वह उनकी जयंती की तैयारी में जुट गई।