चमकता सितारा
चमकता सितारा
मंच पर तालियों की गड़गड़ाहट के बीच श्री रामकुमार अपनी पुस्तक "चमकता सितारा" के लिए सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार सम्मान से नवाजे जा रहे थे, ख़ुशी में उनकी आँखों से सावन बहे जा रहा था कि भीड़ में से किसी ने उन्हें अपनी रचना को संक्षिप्त रूप में सुनाने के लिए कहा, इस निवेदन से प्रबंधक महोदय थोड़ा अचकचा कर कुछ कहने ही जा रहे थे कि तब तक साथ खड़ी रामकुमार की पत्नी ने कहानी सुनानी शुरु की।
कमरे में 10 वर्षीय क्षुब्ध बालक अपने सारे खिलौने फेंक कर तोड़ रहा था, गुड़िया का एक हाथ टूटा, हवाई जहाज के डैने टूटे, कार चकनाचूर हो गयी। पास में खड़ी माँ अश्रुपूरित नेत्रों से असहाय देख ही रही थी कि बालक उठा और एक कागज पर उसने लिख कर पूछा कि अब ये "टूटे खिलौने" कभी नहीं जुड़ेंगे न माँ ?
माँ दूसरे कमरे से फेविकॉल ले कर आयी और गुड़िया का हाथ चिपकाने लगी, फिर हवाई जहाज के डैने और कहने लगी जुड़ते हैं बेटे, टूटे खिलौने भी जुड़ते हैं पर ये आपकी अपनी प्रवृति पर निर्भर होता है, कार नाजुक थी ठोकर खाकर टूट गयी, गुड़िया, हवाई जहाज सहारा पाकर जुड़ गये, तो आपको टूटा खिलौना ही बन कर रहना है या टूट कर भी जुड़ जाना है ये आप पर निर्भर है कहते हुए आँखे पोंछते कमरे से बाहर निकल गयी।
माँ के कमरे से बाहर निकलते बालक ने कागज कलम हाथ में उठाया और लिखने लगा क्या हुआ जो बोल नहीं सकता, देख, सुन, सोच और लिख तो सकता हूँ इन फेविकॉल के सहारे टूटा खिलौना होते हुए भी खुद को जोड़कर रखूँगा और चमकता सितारा बनूँगा वादा है ये मेरा खुद से।