चिट्ठी
चिट्ठी
आज निशांत आने वाला था। घर में खूब तैयारियाँ चल रही थी। सबकी खुशी का ठिकाना नहीं था। कितने ही साल हो गए थे, उन्हें निशांत को देखे हुए।
प्रीति, प्राची और निशांत बचपन के दोस्त थे। जहाँ प्रीति और प्राची बहनें थी, निशांत उनके बचपन का दोस्त था। अभी वो लोग अपने बचपन को जी ही रहे थे कि निशांत के पापा का तबादला किसी दूसरे शहर में हो गया और जिस दिन निशांत गया, उस दिन किसी का भी मन नहीं लगा। उन लोगों की अक्सर फ़ोन पर बात हो जाय करती थी।
जिस रिश्ते की बुनियाद दोस्ती से अंकुरित हुई थी, समय के साथ वहाँ प्यार पनपने लगा था।
प्रीति और प्राची, दोनों के मन में निशांत के लिए कुछ खास भावना थी। मगर दोनों ही एक दूसरे की भावना से अंजान थीं।
घर पहुँचने पर निशांत सबसे मिला।उसका पहला सवाल ही यही था कि दोनों बहनें कहाँ हैं? दादी माँ हँस पड़ी। उन्होंने उसे कहा कि दोनों उसका इंतजार कमरे में कर रहीं हैं। दरवाज़े पर पहुँच कर निशांत के दिल की धड़कन तेज़ हो गई। आखिर, वो उस चेहरे को देखने वाला था, जिसका उसने बरसों इंतज़ार किया था।
जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला, वो तीनों गले लग गए।
वैसे तो वो एक हफ्ते के लिए आया था, मगर सभी के ज़ोर देने पर वह रुक गया। तीनों दोस्त कितने सालों बाद मिले थे।उन्होंने बहुत अच्छा समय साथ में गुज़ारा। जैसे जैसे वक्त बीत रहा था, उनकी धड़कनें फिर से बढ़ने लगी। अपने प्यार से एक बार फिर दूर होने का डर जो सताने लगा था उन्हें।
प्राची अपने एहसास पर काबू नहीं रख सकी।आखिर, उसने हिम्मत करके एक खत लिखा जिसमें उसने अपने प्यार का इज़हार किया और उसने वो खत निशांत के कमरे में रख दिया। उसके मन में इस बात की तसल्ली थी कि उसने एक कोशिश तो की। अब फैसला निशांत का होगा।
अगली सुबह, सभी लोग नाश्ता कर ही रहे थे कि प्रीति ने सबको बताया कि किसी विदेशी विद्यालय में उसे दाखिला मिल चुका है। सभी लोग बहुत खुश थे। प्रीति ने जल्द से जल्द जाने की इच्छा ज़ाहिर की। किसी को कोई ऐतराज़ नहीं था। प्राची खुश भी थी और दुखी भी। इतने सालों तक वो दोनों हमेशा साथ रहीं, एक दूसरे की परछाई बनकर। और अब वो उसी परछाई से दूर होने वाली थी। निशांत मन ही मन प्रीति से बहुत नाराज़ था।
एक हफ्ते बाद की टिकट बुक की गई। निशांत ने भी उसी दिन जाने का फैसला कर लिया। प्राची की तो जान निकल गई। उसकी बहन और उसका प्यार, दोनों उसे एक ही दिन छोड़कर जा रहे थे। जाने से एक रात पहले, निशांत ने प्रीति को नीचे बगीचे में मिलने के लिए बुलाया, मगर प्रीति को उससे ऐसे मिलना ठीक नहीं लगा। उसने इंकार कर दिया। जब निशांत ने ज़िद की तो वह मना नहीं कर पाई। जब वह नीचे आई तो निशांत ने झट से उसे गले लगा लिया। एक मिनट के लिए तो वह सकपकाई मगर फिर उसने खुद को संभाल लिया। शायद, दोनों आखिरी बार गले मिल रहे थे। यही सोच कर दोनों की आँखों से आँसू बहने लगे।
दोनों बिना कुछ कहे अपने अपने कमरे में चले गए। उस रात फिर किसी को नींद नहीं आई।
अगले दिन हवाई अड्डे पर भी तीनों चुप ही थे।
विदेश पहुँचकर प्रीति को लगा कि जैसे उसके दिल से बोझ उतर गया है। मगर, ज़िन्दगी हमारे हिसाब से कहाँ चलती है। प्रीति ने जिस ख्वाब को तोड़ दिया था, वही ख्वाब कहीं न कहीं उसके परिवार की आँखों में साँस ले रहा था। अभी उसे गए कुछ महीने ही हुए थे कि प्रीति और निशांत, दोनों के परिवार उन्हें एक करना चाहते थे। जहाँ रिश्ते की बात सुन निशांत बहुत खुश था तो प्रीति बेचैन हो उठी, और प्राची तो बेखबर थी । जब सबने प्रीति से उसकी मर्ज़ी जाननी चाही तो प्रीति ने कह दिया कि उसे विदेश में ही कोई पसंद आ गया है, वो तो खुद घर पर उसके बारे में बताने वाली थी। एक बार को तो सब लोग हैरान रह गए, मगर उन्होंने प्रीति पर ज़ोर नहीं डाला। किसी को भी उसकी बात पर यकीन नहीं हो रहा था, फिर भी सभी ने उसके फैसले से राज़ी हो गए।
जब निशांत को ये पता चला तो उसका दिल टूट गया, उसे समझ नहीं आ रहा था कि प्रीति ने ऐसा क्यों बोला। फ़ोन पर भी प्रीति ने बहुत हिम्मत से बात करने की कोशिश की। मगर निशांत के सामने टूटने से पहले ही उसने फ़ोन रख दिया। उसने उसे को बस इतना कहा कि, "बस मेरे फैसले पर यकीन रखो।"
कुछ महीनों बाद, मौका देखकर, प्रीति ने घर पर निशांत और प्राची की बात चलाई। घर वाले तो हैरान थे, मगर प्राची की खुशी का ठिकाना नहीं था।
जैसे ही परिवार वालों ने ये बात निशांत को बताई तो वो सकपका गया। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि जिससे वो प्यार करता है, वही उसे किसी और का होने को कह देगी। जब निशांत ने इस रिश्ते को न करनी चाही तो प्रीति ने उसे अपना वास्ता दे दिया और प्राची से शादी करने को मना लिया।
अब सब कुछ निशांत की समझ में आया , प्रीति के विदेश चले जाने से लेकर उसके और प्राची के रिश्ते तक। प्रीति ने अपने प्यार के ऊपर अपनी बहन की खुशियों को रखा। उसने प्रीति के फैसले का सम्मान किया और न चाहते हुए भी प्राची से शादी के लिए हाँ कहा।
जब सबको लगा कि ये रिश्ता बस तय हो चुका है, उसी वक्त प्राची ने एक फैसला किया। उसने निशांत को भी घर बुलाया था। उसने उससे कहा," हम तीनों दोस्त बनकर रहें तो ज़्यादा अच्छा होगा न।"निशांत के चेहरे पर हैरानी के साथ साथ खुशी के भाव आ गए। उसने हामी भर दी।
प्राची ने अपने हाथ पीछे किए...और उस खत के टुकड़े टुकड़े कर दिए जो उसने निशांत के लिए लिखा था और उसे प्रीति की अल्मारी में से मिला था ।

