STORYMIRROR

Palak Inde

Drama Romance

3  

Palak Inde

Drama Romance

हक

हक

6 mins
263

आज सुबह जब पवन जी अखबार पढ़ रहे थे, तो उनकी निगाह सामने खाली पड़ी टेबल पर गई। 

उन्होंने अपनी धर्म पत्नी को आवाज़ लगाई ," लता, तुम आज फिर से देर से उठी, मैं सैर से वापिस भी आ गया।"

"ओहो, चाय ला रही हूँ , रुको न।"

"तुम कभी नहीं सुधरोगी।"

"तुम्हें तो बस मौका चाहिए मुझे सुनाने का।" लता जी ने अपनी अधखुली आँखों से उन्हें घूरते हुए कहा और चाय टेबल पर ज़ोर से पटक दी।

पवन जी मुस्कुरा उठे। उनकी रोज़ की दिनचर्या का महत्वपूर्ण हिस्सा था ये।

दोनों ने आराम से चाय पी। मगर, बिना किसी नोक झोंक के उनका दिन बीत जाए, ऐसा कहाँ मुमकिन था। तभी पवन जी बोल उठे

"सुनो, मैं तुम्हें बताना भूल गया, सुधा का फ़ोन आया था कल। वो कह रही थी कि।"

लता ने उनकी बात बीच में ही काट दी और कहा ," कौन सुधा ?" लता जी ने अपनी छोटी आँखों को बड़ा करके उन्हें घूरते हुए पूछा।

"अरे, वही, तुम्हारी कॉलेज की सहेली।" 

"सुधा नाम की मेरी सहेली तो थी नहीं, दुश्मन ज़रूर थी।" लता जी चिढ़ कर बोली।

"तुम्हें जो समझना है, समझो। मेरे लिए तो वो आज भी मेरी अच्छी दोस्त है। उसने तुम्हारा बिगाड़ा ही क्या है?" पवन जी मंद मंद मुस्काते हुए बोले।

"तुम भूल गए हो क्या? कैसे वो तुम्हारे पीछे पड़ी रहती थी। मैं न होती तो कब के फिसल जाते तुम। और वो सिर्फ तुम्हारी सहपाठी थी, बनती तो ऐसे की तुम्हारी प्रेमिका हो।" लता जी ने एक ही साँस में कह दिया।

"अरे भाग्यवान, तुम तो यूँ ही परेशान हो जाती हो। वो तब मेरी प्रेमिका न सही, मगर तुम तो अब बीवी हो। वो सहपाठी थी, ये तो ठीक था। और तुम, तुम तो बगल वाली कक्षा में हो कर भी सारा दिन मेरी खबर रखती थी।"

"हाँ , तो रखूँगी ही न। मेरा हक है। तब भी और आज भी।"

"हाँ हाँ मैडम, आप जीत गई।"

 दोनों एक पल के लिए कॉलेज की यादों में खो गए।

"अब सुन तो लो, वो लोग अगले हफ्ते हमारे शहर आ रहे हैं। तो वो चाहती थी कि वो हमारे यहाँ ही रुकें, अगर तुम्हें एतराज़ न हो तो।" पवन जी की आवाज़ से घबराहट साफ पता चल रही थी।

" तुम चाहते हो कि मैं उस सुधा को हमारे यहाँ रहने दूँ, ताकि वो फिर से वही सब कर सके, जिसका मौका कॉलेज में उसे न मिला।"

"तुम क्यों इतना चिढ़ती हो उससे। मैंने हाँ कर दी है उसे, वो अपने पति के साथ अगले हफ्ते आएगी। वो सब कॉलेज की बातें थी। अब हम ज़िन्दगी में कितना आगे बढ़ चुके हैं। अब मैं उसका तो कभी हो ही नहीं सकता।" पवन जी ने चेहरा उदास कर लिया।

" तुम्हारा मतलब क्या है, अगर मौका मिलता तो क्या तुम चले जाते उसके पास? अगर तुम्हारे दिमाग में ऐसा ख्याल आया भी तो देख लेना, इन बूढ़ी हड्डियों में अब भी जान बाकी है।"

" तुम्हें मुझे कितने सालों से जानती हो?"

"पैंतीस साल शादी के, और पैंतालिस साल प्यार के।" 

लता जी ने शर्माते हुए कहा।

"बस फिर, जिस लड़की ने मुझे पैंतालिस साल से अपनी कैद में रखा है, क्या उसे अब, उम्र के इस पड़ाव पर आकर छोड़ सकता हूँ?"

"ओ जनाब, आपने मुझे कैद किया है या मैंने आपको?" लता जी ने भौहें उचकाते हुए पूछा।

पवन जी खिलखिलाकर हँस पड़े।

"अगर वो निलेश न होता, तो शायद हम भी साथ न होते।"

"तो इस बात ओर तो मुझे उसे मिलकर शुक्रिया कहना चाहिए। एक बार ज़रूर मिलना चाहूँगी, आपके परम मित्र से और अपने आशिक़ से" लता जी ने कहा।

पवन जी एक दम से गुस्सा होकर बोले," कोई ज़रूरत नहीं है उससे मिलने की। "

"अपनी बारी पर क्या हुआ?" लता जी मुस्कुरा उठी।

"कुछ नहीं।" पवन जी ने गंभीर होते हुए कहा और चल दिये।

उसी शाम को लता जी घर की सफाई कर रहीं थीं तो उन्हें पुरानी एल्बम मिली। उनकी अब तक की यादें।

उसमें उन दोनों की प्रेम कहानी छुपी थी।

तभी उनके हाथ स्कूल की एक तस्वीर लगी जिसमें निलेश, पवन और वो थे। वो पुराने वक्त में खो गई।

तब वो लोग स्कूल में दसवीं कक्षा में थे। पवन और निलेश परम मित्र थे, और लता, उनकी सहपाठी। लता हमेशा से ही पवन को पसंद करती थीं। मगर पवन के मन में क्या है, ये कोई नहीं जानता। कई बार तो उसका मन करता कि वो खुद ही पवन को सब बता दे मगर वो चुप रही। निलेश लता को पागलों की तरह प्यार करता था।

 वो लोग एक दूसरे की भावनाओं से अंजान थे।

दसवीं की पार्टी में जब निलेश ने अपने दिल की बात लता को बतानी चाही, तो उनके रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा बने उनके ही परम मित्र, पवन। पवन जी को जब पता चला कि निलेश भी लता को पसंद करता है, तो उन्हें अजीब सी चुभन हुई। उन्हें लगा, जैसे कोई उनसे उनका हक छीन रहा है। उन्होंने फैसला किया कि वो लता को अपने प्यार का इज़हार करेंगे, वो भी निलेश से पहले।

पार्टी में जब डाँस हुआ, तो किसी तरह निलेश ने मौका पाकर लता को अपने साथ डाँस के लिए पूछ ही लिया। लता उसके इरादों से वाकिफ नहीं थीं तो उन्होंने हाँ करदी। जब डाँस हो रहा था तो निलेश की निगाह प्यार से लता को देख रही थी और पवन गुस्से से निलेश को घूर रहे थे। लता के मन में पवन को देख कर अजीब सा डर सताने लगा था। 

तभी कहीं से पवन जी मंच पर जा पहुँचे और निलेश को प्यार से साइड होने को कहा। किसी को भी शक नहीं हुआ कि उनके बीच क्या चल रहा है। जब निलेश लता को छोड़ने को नहीं माना तो पवन का गुस्सा बहुत बढ़ गया। एक मिनट के लिए तो लता हैरान भी हुई और डर भी गई। पवन ने कभी किसी के साथ ऐसा बर्ताव नहीं किया था। पवन ने अपने गुस्से पर काबू पाते हुए , आराम से लता का हाथ निलेश की पकड़ से छुड़ाया और अपनी तरफ ज़ोर से खींच लिया। लता , और वहाँ मौजूद सभी लोग हैरान हो गए। पवन ने लता की एक बाँह को अपने कंधे पर रखा और दूसरा हाथ अपने हाथ में ले लिया और अपना हाथ उनकी कमर पर रख दिया। अब तो लता को लगा कि जैसे वो कोई सपना देख रही है। पवन ने लता को ज़रा सा और अपनी तरफ खींचा और उसके कान में कहा," तुम सिर्फ मेरी हो।"

 पवन अपने प्यार का इज़हार कर चुके थे, और वो भी इतने हक से। डाँस करते वक्त ही लता ने भी अपना सिर हल्के से हाँ में हिला दिया और हौले से अपना सिर पवन के कंधे पर रख दिया। पूरा स्कूल उनके इस इज़हार का गवाह बना था। उस दिन के बाद वो कॉलेज भी साथ ही गए। और मजाल कि दोनों ने किसी को एक दूसरे की ओर नज़र उठा कर देखने दिया हो।

वो तस्वीरें देख कर एक बार फिर उस किशोरावस्था में चली गई। तभी पवन जी वहाँ आ पहुँचे और हौले से उनके कान में कहा, "तुम सिर्फ मेरी हो।"



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama