Palak Inde

Tragedy

4.5  

Palak Inde

Tragedy

पहेली

पहेली

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राजीव कुछ परेशान सा था। उसने अपने आस पास देखा तो सब कुछ अंजाना सा लग रहा था। धीरे धीरे उसे सब कुछ याद आने लगा। तभी उसने आँखें बंद की और उसकी आँखें नम हो गईं। एक वक्त के लिए उसे लगा कि जैसे किसी ने उसकी ज़िन्दगी को झुठला दिया हो। उसके ख्याल, उसका विश्वास, ज़िन्दगी जीने का तरीका, ज़िन्दगी समझने का तरीका, सब कुछ महज़ एक वहम बन कर रह गया।


बात ज़्यादा बड़ी नहीं थी, मगर इतनी छोटी भी नहीं थी कि वो उसे यूँ ही भूल जाता। रह रह कर उसके दिमाग में वही सब चेहरे आ रहे थे...जिन्हें शायद वो भूलना चाहता था। तभी अचानक किसी अजनबी का चेहरा उसकी आँखों के सामने घूमने लगा और उसने झट से आँखें खोल ली। 

 उसने आस पास नज़र दौड़ाई तो जाना कि वो किसी अस्पताल में है। ज़्यादा नहीं, बस दाहिने हाथ पर चोट लगी थी। उसका एक्सीडेंट हुआ था।


ज़िन्दगी किसी रील की तरह उसकी आँखों के सामने चलने लगी। बचपन से अब तक का सफर कुछ ही मिनटों में फिर से जी लिया था उसने। बचपन में वो हमेशा अपने माँ बाबा के प्यार के लिए तरसा था।

उसे याद है कि उसकी नानी माँ ने उसे बताया था कि उसके बाबा ने किसी और के लिए उसे और उसकी माँ को छोड़ दिया था, वो भी जब वो सिर्फ 2 महीने का ही था। उस हादसे ने उसकी माँ को इस कदर तोड़ दिया था कि वो ज़िन्दगी जीना भूल ही गईं हों। तब सब की सलाह मानकर उसकी माँ ने दोबारा शादी की। मगर उनकी शादी की कीमत राजीव ने अपनी माँ से अलग होकर चुकाई। और तब से उसकी दुनिया सिर्फ उसकी नानी माँ के आस पास ही घूमती थी। बाल मन में कोई चीज़ अगर घाव दे जाए तो वो घाव उम्र भर नहीं भरता। राजीव के साथ भी यही हुआ। उसे कभी कभी खुद के वजूद पर ही गुस्सा आता तो कभी अपने माँ बाबा पर। उसने सबसे सुना था कि माँ और बच्चे का रिश्ता सबसे पवित्र होता है। उसे तो उस रिश्ते में भी खोट नज़र आई। तभी से उसके मन में ये ख्याल बैठ गया कि दुनिया का हर व्यक्ति मतलबी होता है। सब लोग सिर्फ अपने लिए जीते है। उसकी यही धारणा आज तक बनी रही। 


बड़े होने पर नजाने कैसे उसने प्यार पर भरोसा करना सीख लिया था, वजह थी मालिनी। उसे अपनी कक्षा की ही लड़की मालिनी से मोहब्बत हो गई। पहली बार उसे प्यार का एहसास हुआ था। उसे लगा कि जैसे उसने ज़िन्दगी जीनी तब शुरू ही कि हो। उसने उससे बेइंतेहा मोहब्बत की। मालिनी ने भी उससे प्यार किया था। मगर, हर किसी को उनका प्यार मुकम्मल मिले, ये ज़रूरी तो नहीं। कॉलेज खत्म होने पर उन्हें छुट्टियाँ थीं। उन्हीं दिनों उसे अपने एक दोस्त से पता चला कि मालिनी की शादी कहीं और तय हो गई है। उसने मालिनी तक पहुँचने की बहुत कोशिश की मगर अंत में वो अपना प्यार हार बैठा।


 उस हादसे ने उसे कुछ इस तरह झकझोर दिया कि वो सब कुछ भूल बैठा। वो गुमसुम रहने लगा, अपने दर्द को अपने अंदर ही छुपा लिया था उसने। उसकी नानी माँ इन सबसे बेखबर थी।

किसी एक रोज़ उसने अपनी नानी माँ से पूछ ही लिया कि वह उसके साथ क्यों रह रही हैं? उन्होंने क्यों उसे पाल पोस कर बड़ा किया?"एक बार के लिए तो उसकी नानी सन्न रह गई। उन्हें ऐसा लगा कि किसी बच्चे ने अपनी मासूमियत में उनसे ये सवाल पूछा हो। 

उन्होंने उसका जवाब प्यार दिया। मगर, वो तो प्यार जैसे शब्द को अपने आस पास सुनना भी नहीं चाहता था। उसे लगा कि शायद नानी माँ का भी कोई स्वार्थ रहा हो उसे पालने के पीछे। अपनी इसी उधेड़ बुन के चलते वो उनसे भी कटा कटा रहने लगा, कम ही बात करता था उनसे।


 उसने खुद को इस कदर समेट लिया कि कोई चाह कर भी उसकी परतें खोल नहीं सकता। धीरे धीरे वो ऐसी पहेली सी बन गया, की कोई चाह कर भी उसे समझ नहीं पाएगा। उसके साथ जो कुछ भी हुआ, उसने तो सभी को दोषी मान लिया था। उसे जो चोट मिली थी, शायद उसके निशान आज भी कहीं न कहीं मौजूद हों। 

उसकी बेरंग सी ज़िन्दगी यूँ ही गुज़रती रही। उसे हर किसी से एक धोखे, फरेब की उम्मीद होने लगी। इसी के चलते वो इतना सावधान रहने लगा कि कोई उसे किसी भी तरीके से चोट न पहुँचा सके। वो ज़िन्दगी में अब सब कुछ हार चुका था। उसने बिना किसी की मदद से अपनी ज़िन्दगी में एक मुकाम बनाया। उसे अपनी ज़िंदगी बेरंग ही अच्छी लगती थी। वो नहीं चाहता था कि कोई भी उसके करीब आए, वो उस शख्स पर विश्वास करे, फिर एक दिन वो इंसान ही उसके भरोसे को तोड़कर चला जाए और वो खुद से ही नफरत कर बैठे। इन्हीं सब के चलते वो बेरहम सा बन गया था। कोई किसी की अगर मदद भी करता, वो उसमें भी वजह खोजने की कोशिश करता।


फिर एक रात उसने ज़्यादा शराब पी ली जिस वजह से वो अपना संतुलन खो बैठा, और उसका एक्सीडेंट हो गया। बेहोश होने से पहले भी वो कुछ कह रहा था कि "मुझे अकेला छोड़ दो, मैं ऐसे ही जीता आया हूँ, और आगे भी जी लूँगा, मुझे किसी की मदद की ज़रूरत नहीं, फिर से किसी को खुद को इस्तमाल करने नहीं दूँगा।"


जिस गाड़ी से उसका एक्सीडेंट हुआ वो गाड़ी किसी और की नहीं बल्कि मालिनी की बहन रजनी की थी। जब उसे अस्पताल में होश आया तो रजनी ने उसे बहुत डाँटा। वो रजनी को नहीं जानता था, मगर रजनी उससे वाकिफ थी। जब उसे पता चला कि रजनी मालती की बहन है, तो उसके पुराने ज़ख्म कुरेदे गए। 

जो भी गुस्सा उसे मालती पर था, सब उसने रजनी पर निकाल दिया। रजनी भी एक बार के लिए हैरान रह गई, राजीव ने अपने अंदर इतना कुछ जो दबा रखा था। जब राजीव थोड़ा शांत हुआ तो रजनी ने उसे बताया कि मालती भी उससे प्यार करती थी। राजीव ने मानने से इंकार कर दिया। तब रजनी ने बताया कि मालती ने वो शादी अपने पापा से किए वादे के कारण की थी। 


" जिस दिन दीदी घर पर तुम्हारे बारे में बताने वाली थी, उसी दिन पापा की तबियत ज़्यादा बिगड़ गई। उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा। पापा को लगा कि वो ज़्यादा दिनों तक जी नहीं पाएँगे। पापा की नज़र में कोई लड़का था दीदी के लिए, उन्होंने उसी वक्त दीदी से वादा लिया कि वो उस रिश्ते के लिए हाँकहेगी। दीदी को मजबूरन वो वादा करना पड़ा और उसे निभाना भी पड़ा। दीदी के दिल में आज भी सिर्फ तुम्हारी जगह है।"

राजीव ये सब सुन के अवाक रह गया। वो अब तक जिसे अपना गुनहगार मान रह था, दसअसल वो तो निर्दोष थी। हालात ही उन दोनों के बस के बाहर थे। 

बाहर खड़ी उसकी नानी माँ ने भी सब कुछ सुन लिया था। उनकी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे। 


तभी वो अंदर आकर बोली ," राजीव, भले ही तुम्हरे बाबा ने तुम्हारी माँ को छोड़ा हो, मगर तुम्हारी माँ तुमसे सच्चा प्यार करती थी। उसने दूसरी शादी नहीं की थी। तुम्हरी माँ की मौत हो चुकी है। उसी ने जाते जाते मुझसे तुम्हें वो झूठ कहने को कहा था। वो इसलिए कि तुम्हें अपनी माँ की कमी कभी खले नहीं। तुम भले ही उससे नफरत करो, मगर वो तुमसे सबसे ज़्यादा प्यार करती थी। मुझे माफ़ करदो कि मैंने उमस ये बात छुपाई। मुझे नहीं मालूम था कि मेरे एक झूठ से तू ऐसा बन जायेगा।"


तभी रजनी ने उससे कहा कि "तुम जो कहते हो कि कोई तुमसे प्यार नहीं करता, तो तुम्हारी नानी माँ ने तुम्हें जो प्यार किया , उसका कोई मोल नहीं तुम्हारी ज़िन्दगी में? एक बार अपने आस पास तो देखो, तुम्हें प्यार कहीं न कहीं दिख जाएगा। प्यार के साथ साथ ही इंसानियत भी मिलेगी। ज़रूरी नहीं के अगर तुम्हें किसी ने धोखा दिया हो, तो तुम सबसे उसका बदला लेते फिरो। खुद को चोट पहुँचाकर तो वैसे भी कुछ हासिल नहीं होगा।अपना हाल देखो, तुम किसी पर भरोसा नहीं करते हो। जब एक्सीडेंट हुआ, उस वक्त भी तुम यही सब कह रहे थे। अगर मैं तुम्हें जानती नहीं होती, फिर भी इंसानियत के नाते तुम्हारी मदद ज़रूर करती। हर किसी के दिल में फरेब या स्वार्थ नहीं छुपा होता। "इतना कहकर रजनी उसके कमरे से बाहर चली गयी। राजीव अब भी कुछ परेशान से था....



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