Anil Makariya

Drama

2.5  

Anil Makariya

Drama

चित्रकार का साम्यवाद

चित्रकार का साम्यवाद

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स्याह रंग में डूबा ब्रश,कैनवास के ऊपरी किनारे से उतरता दाहिने किनारे तक पहुँचकर अपना रंग खो चुका था। चित्रकार के चित्र का प्रतिरूप उसी फुटपाथ पर कुछ कदम दूर अंधे का अभिनय करता भिखारी था, जिस फुटपाथ पर चित्रकार अपनी कला में रंग भर रहा था।

प्रतिरूपक और चित्रकार के बीच में रंगीन खड़िया से बनी एक और कलाकृति थी जिसके आगे बैठा कलाकार अपनी कलाकृति पर बरसे नोटों को बटोरकर एक छोटे पत्थर के नीचे रख रहा था।

कैनवास पर तेजी से ब्रश और कभी-कभी उंगली या उंगलियां फेरता चित्रकार यदा-कदा उस प्रतिरूपक के कटोरे में भी झाँक लेता जिसमें केवल कुछ सिक्के पड़े थे.

आखिरकार चित्रकार का चित्र पूरा हुआ जिसमें अँधा भिखारी अपने काले चश्में को जरा-सा ऊपर करके अपनी नज़रों से कटोरे के सिक्कों को तौल रहा था ।

चित्र के नीचे अपने हस्ताक्षर कर चित्रकार ने चित्र पर कीमत का पुर्जा लगा दिया और नज़रों से पास की जमीन पर रंगीन खड़िया से बनी कलाकृति पर फेंके पैसों की गणना करने लगा ।

मन ही मन पत्थर के नीचे दबे नोटों का कुछ अंदाजा उसने लगाया ही था कि

"क्या कुछ कम हो सकता है ?"

पारखी आँखें कीमत भांप चुकी थी पर जुबान को भी तो अपना काम करना ही था ।

आखिर कुछ मोल-भाव के बाद चित्रकार अपने हस्ताक्षर बेच चुका था और बदले में मिले गर्वनर के हस्ताक्षर गिन रहा था ।

'सामने पत्थर के नीचे दबे रुपयों से लगभग डबल।'

चित्रकार बुदबुदाया और फ्रेम को उठाकर अपनी बगल में दबाते हुए खड़िया से कलाकृति उकेरने वाले कलाकार की ओर एक मुस्कुराहट उछालते हुए चल पड़ा अपने चित्र के प्रतिरूप की ओर..

ज्योंही उसके कटोरे के पास पंहुचा उसके नोटों वाले हाथ की अंगुलियां नोटों के चित्र के उपर थिरकी और लगभग आधे नोट उसमें से उछलकर कटोरे में जा गिरे ।

अंधे होने का अभिनय करता भिखारी अपने काले चश्में को जरा -सा उपर करके अपनी नजरों से कटोरे में गिरे नोटों को तौल रहा था ।

आज तीनों कलाकारों को सामान मेहनताना मिला था ।


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