निराली थानकी

Horror Romance Thriller

3.7  

निराली थानकी

Horror Romance Thriller

चीखें एक अनकही दास्तान 2

चीखें एक अनकही दास्तान 2

18 mins
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 रोहन दिल्ली पहुँचा, देखा तो रात होने को थी इसलिए आज रोहन ने किसी होटल में रुकने का फैसला किया। होटल पहुंचकर फ्रेश होकर सो गया। रात के क़रीब ढ़ाई बजे थे रोहन की आँख खुली, उठकर देखा तो कमरे की दीवारों में खून से बड़े बड़े अक्षर में लिखा था 'help me' और धीरे धीरे आवाज़ें आना शुरू हो गया। help... बचाओ मुझे... आह्हहह... बचाओ प्लीज़। वो चीखें धीरे धीरे तेज़ हो रही थी। रोहन ने अपने कान बंद कर लिए और ज़ोर से चिल्लाया "आखिर कौन हो तुम? क्यों परेशान कर रही हो? कौन हो?" तेज़ आवाज़ों की वजह से आईना धड़ाक देकर जमीन पर गिरा। रोहन चिल्ला उठा, देखा तो वो अपने बेड पर था। कमरा भी बिल्कुल ठीक था। वो समझ गया कि उसने फिर वही सपना देखा। 


"पिछले ३ सालो से ये एक ही सपना बार बार क्यों आ रहा है? क्या यह सिर्फ़ एक सपना ही है या कुछ और ? किस लड़की की आवाज़ है ये जो मदद के लिए पुकार रही है? क्या सच में कुछ है या सिर्फ एक सपना?" रोहन के दिमाग को इन सारे प्रश्नों ने घेर लिया। उसने ना सोने का फैसला किया। बैठे बैठे कब आँख लग गई उसे पता ही नहीं चला। सुबह ८ बजे उसकी आँख खुली। रोहन फ्रेश होकर अपनी मंज़िल की ओर निकल पड़ा। 


"भैया! ये एमबर्ट लाइब्रेरी यहाँ से कितनी दूर है?" रोहन ने एक दुकानदार से पूछा। 

"क्यों भाई! जिन्दगी से तंग आ गए हो क्या जो वहाँ मरने के लिए जा रहे हो!" दुकानदार बोला। 

"हाँ कुछ ऐसा ही समझ लो।" रोहन मुस्कुराता हुआ बोला। 

"ठीक है भाई हमको क्या? जाओ। यहाँ से थोड़े ही दूर एक वीरान सा कब्रिस्तान है ठीक उसके सामने ही यह लाइब्रेरी है।"

"ठीक है, शुक्रिया।" रोहन ने कहा।


रोहन ने ऑटो लिया। कुछ देर चलाने के बाद ऑटो वाले ने कहा "बस, इनसे आगे में नहीं ले जा सकता। आपको अब यहीं से पैदल ही जाना पड़ेगा। मुझे मरने का शौक़ नहीं है।"

"कितना हुआ?" रोहन बोला। 

"१०० रुपए।"

"क्या? यहाँ तक के १०० रुपए?" रोहन गुस्से से बोला। 

"वो तो शुक्र मनाओ कि मैं यहाँ तक छोड़ने आया, वरना कोई भी नहीं आएगा यहाँ।"

"ठीक है। ठीक है। ये लो पैसे।"


      १०-१५ मिनिट चलने के बाद एक वीरान से कब्रिस्तान तक रोहन पहुँचा। "wow , beautiful place…." रोहन ने अपना कैमरा निकाला और इस जगह को शूट करता गया। कुछ क़दम चलते ही उसकी नज़र एक पुराने घर में पड़ी, जो पूरी तरह से खंडहर हो चुका था। पेड़ की शाखाओं ने आधे मकान को ढंक लिया था। चारों तरफ़ कबूतरों की आवाज़ सुनाई दे रही थी। ऊपर एक टूटा हुआ बोर्ड था उसमें लिखा था 'एमबर्ट लाइब्रेरी'। रोहन सारी जगह को बड़े ही चाव से देख रहा था और अपने कैमरे से शूट कर रहा था। 


"कितनी अच्छी जगह है ये!" रोहन ने कहा।

"अच्छी है लेकिन सिर्फ दिन में, रात में देख लिया तो इनसे डरावनी जगह दुनिया में कहीं नहीं मिलेगी।" एक अधेड़ उम्र का आदमी बोला। 

"जी आप कौन? मुझे तो लगा कि यहाँ मेरे अलावा कोई भी नहीं होगा?"

"जी मेरा नाम रामू है। यहाँ की साफ-सफाई का काम मेरा है। यहीं पास में ही रहता हूँ।"

"जी मेरा नाम रोहन है, रोहन श्रीवास्तव।"

"तुम जैसा नौजवान इस वीरान जगह में क्या कर रहा है?"

"मैं एक क्राइम रिपोर्टर हूँ और यहाँ इस लाइब्रेरी में हुई ईशा फर्नांडिस की मौत पर रिपोर्ट तैयार करने आया हूँ।"


यह सुन रामू चाचा चिल्लाते हुए बोले "तुम्हारा दिमाग ख़राब हो गया है क्या? क्या बोल रहे हो इसका अंदाज़ा भी है तुम्हें? जितना हो सके उतना जल्दी चलें जाओ यहाँ से? वरना लाश तक नहीं मिलेगी तुम्हारी। समझे? मेरी बात मानो वरना पछताओगे।"


रोहन - अरे अरे चाचा! शान्त हो जाओ, इतना क्यों डर रहे हो? कुछ नहीं होगा मुझे। मेरे पास परमीशन लेटर है। आप चिंता न करें बस इतना बता दें कि यहाँ आसपास रहने के लिए कोई धर्मशाला जैसा कुछ है ? क्योंकि मुझे यही रहना होगा तभी कुछ जान पाऊँगा। 


रामु चाचा - यहाँ दूर दूर तक कोई धर्मशाला नहीं है। जब तुमने ठान ही लिया है तो फिर मैं रोकने वाला कौन? तुम चाहो तो मेरे घर पर रह सकते हो वैसे भी में अकेला ही रहता हूँ। यहाँ से थोड़े दूर एक छोटा सा गाँव है मैं वही रहता हूँ।


रोहन - ठीक है फ़िर ।


 जैसे ही रोहन ने गाँव में क़दम रखा और देखा कि सारा गाँव वीरान पड़ा है। मुश्किल से १५-२० घर होंगे सारे के सारे घरों में ताले लटके हुए थे। 

"चाचा सारे मकान बंद क्यों है?" रोहन ने कहा।

"क्योंकि यहाँ सिर्फ़ दो लोग ही रहते है एक मैं और दूसरी वो औरत जो सामने मकान है ना उसमें रहती है।" रामू चाचा ने सामने इशारा करते हुए कहा। "बाकी सब डर के मारे धीरे धीरे करके चले गए।"

"आपको डर नहीं लगता?" रोहन ने पूछा। 

"नहीं, पहले लगता था पर अब आदत हो गई है।" रामू चाचा ने कहा।

"ऐसा क्या होता है यहाँ रात को जो सबको घर छोड़ने पर मजबूर कर देता है?"

"सब कुछ अभी जानना है क्या? तुम घर पर आराम करो मैं अभी आता हूँ। लेकिन हाँ, जबतक मैं ना आऊँ तबतक घर से बाहर मत निकलना?"

"ठीक है।" 


 रोहन ने लैपटॉप निकालने के लिए बैग खोला जैसे ही लैपटॉप निकाला उसके साथ ही एक फोटोग्राफ गिरी। रोहन ने उठाया जो कि एक बुरके वाली लड़की की थी, जिसकी सिर्फ़ आँखें ही दिख रही थी। तस्वीर को देखते हुए रोहन बोला "कहाँ हो तुम नैना? पता नहीं कभी मिलोगी भी या नहीं? कुछ जानता भी तो नहीं हूँ कि कहाँ रहती हो? यहाँ तक कि तुम्हारा नाम भी नहीं? कहाँ ढूंढूँ? अगर मेरा प्यार सच्चा है तो तुम एक दिन मुझे जरूर मिलोगी। कैसे तुम्हें पहली बार देखा था आह! क्या आँखें थी!" रोहन ४ साल पहले अतीत में खो जाता है।


साल पहले,

  

     मुझे कविता और ग़ज़लों का काफ़ी शौक़ था तो मैं कहीं भी कवि सम्मेलन हो तो उसे छोड़ता नहीं था। आज भी मैं कवि सम्मेलन के लिए मुंबई जा रहा था। बस में बैठा और बस के चलने की राह देख रहा था। 

"भैया! ये बस कितनी देर में चलेगी?" मैंने ड्राइवर से पूछा। 

"बस अभी दो लड़कियां आनी बाकी है वो आ जाएं बाद में चलाते है।" ड्राइवर बोला। 

"इस लड़कियों की तो .... अगर ओर देर हो गई तो वहाँ बैठने के लिए जगह भी नहीं मिलेगी।" मैं मन में ही बड़बड़ाया। तभी एक लड़की बस में चढ़ी "सोरी... सोरी... थोड़ी देर हो गई।" वो बोली। उसने अपने चेहरे को कपड़े से ढँका हुआ था सिर्फ़ आँखें ही दिख रही थी। वो मेरे पास आकर बोली "क्या मैं यहाँ बैठ सकती हूँ? वो सारी सीटें भरी हुई है तो.....।" 

आह... उसकी आँखें...! थोड़ी देर मैं भूल ही गया की कहाँ हूँ? मुझे अमीर खुसरो की पंक्तियां याद आ गई ‘छाप तिलक सब छीना, मोसे नैना मिलायके।’ 

"जी? कुछ कहा?" उस लड़की ने बोला। 

"नहीं तो ! आप बैठ जाइए यहाँ मुझे कोई दिक्कत नहीं है। वैसे, दूसरी लड़की कहाँ है? ड्राइवर बोल रहा था दो लड़कियां है!"

"अरे नहीं, वो नहीं आ रही।" फ़िर वो ड्राईवर से बोली "भैया! चलिए चलिए वरना पक्का देर हो जायेगी मुझे।" 

थोड़ी देर चुप बैठने के बाद मैं बोला "लगता है कहीं जाने की जल्दी है आपको?"

"आपसे मतलब? अपने काम से काम रखिए।"

वाह!! उसकी वो गुस्से वाली आँखें ओर भी प्यारी लग रही थी। किसी की आँखें इतनी ख़ूबसूरत कैसे हो सकती है? जिसमें बार बार डूबने का जी कर रहा है। "जी? फ़िर से कुछ कहाँ क्या आपने?" वो बोली।

"नहीं तो... वैसे आपका नाम?" इतना बोला कि ड्राइवर की आवाज़ आई "मैडम! आपका स्टॉप आ गया।" और वो बस से उतरकर चली गई।


मुंबई पहुँचकर मैं सीधा कवि सम्मेलन में पहुँचा। वहाँ विशाल पहले से ही मेरी राह देख रहा था। मुझे देखते ही बोला "अरे भाई! कहाँ रह गया था तू ? अब चल जल्दी अंदर।"

"हाँ हाँ आ रहा हूँ, चल।"

सम्मेलन ख़त्म करके हमने यहाँ घूमने का प्लान बनाया। मुझे डूबता सूरज देखना पसंद है इसलिए जुहू समन्दर के किनारे पहुँच गए।

रोहन - सनसेट देखने का मज़ा ही कुछ अलग है। कितना सुकून कितनी शान्ति मिलती है मन को!

विशाल - पर मुझे तो ऐसा कुछ भी महसूस नहीं होता।

रोहन - रहने दे, तू नहीं समझेगा।

विशाल - लेकिन हाँ, यहाँ की परियों को देखकर बहुत कुछ महसूस होता है... क्या कहते हो?

रोहन - साले, तू नहीं सुधरेगा। वैसे आज मैंने एक ऐसी लड़की को देखा कि पूछ मत।

विशाल - क्या बात है लड़की को देखा! वो भी तुमने? क्या बात है! जो आज तक लड़कियों से दूर भागता रहा वो आज लड़की की बात कर रहा है! यकीन नहीं होता!

रोहन - वो बाकी सब जैसी नहीं है.. वो अलग है, सबसे अलग।

विशाल - अच्छा! कैसी दिखती है वो ये तो बता? नाम क्या है उसका? 

रोहन - पता नहीं। ना चेहरा देखा और ना ही नाम पता है। देखी है तो सिर्फ़ उसकी आँखें। 

विशाल - ये लो! कुछ अता पता है नहीं और चले आशिक़ बनने। वो देख सामने वो बुरका वाली, ज़रा उसकी भी आँखें देखकर आ शायद पसन्द आ जाए। 

रोहन - विशाल के बच्चे.. रुक तू । वो तेज़ी से भागा और मैं उसके पीछे। भागते भागते मैं किसी से टकराया। 

"ओह सॉरी...।" मैं बोला। 

"अंधे हो क्या? इतनी बड़ी लड़की नहीं दिखी?"

"ये आवाज़... ये तो..." मैंने मुड़ के देखा। "ये तो वही लड़की है!" उसे देख मैं मन ही मन बहुत ख़ुश हुआ।

"तुम? तुम तो वही हो ना बस वाले?" उसने कहा।


रोहन - तो आपको मैं याद हूँ?

लड़की - तुम लड़कों को ना बस मौका चाहिए। लड़की देखी नहीं कि शुरू हो जाते हो। 

रोहन - नहीं वो.. मैं ऐसा नहीं हूँ। आप गलत समझ रही है। 

लड़की - कुछ ग़लत नहीं समझ रही हूँ।

रोहन - आपका नाम?

"ओय, तू इधर क्या खड़ी है? चल वरना शामत आ जाएगी हम दोनों की?" बोलते हुए उसकी सहेली उसका हाथ पकड़ कर ले गई। 

"अरे सुनो... नाम तो बताती जाओ?" मैं चिल्लाया मगर वो जा चुकी थी। 

विशाल - अरे रे रे.. चली गई? नाम भी नहीं बता के गई? बेचारा मेरा दोस्त, अब इस दुनिया के मेले में कैसे ढूंढेगा?


रोहन - कमीने छोडूंँगा नहीं तुझे। अब तक कहाँ था?

विशाल - वहाँ... दूर खड़े मज़े ले रहा था। 

रोहन - हो गया? तो चलें? देर हो गई है। 

विशाल - हाँ तो मैं कहाँ मरा जा रहा हूँ यहाँ रुकने के लिए?

रात को दोनों होटल के कमरे में बेड पर लेटे हुए थे।

रोहन - यार, विशाल एक बात पूछूँ?

विशाल - हाँ बोल ना, क्या बात है?

रोहन - उस लड़की का नाम क्या होगा?

विशाल - मीना, टीना, सीमा कुछ तो होगा ही।

रोहन - जो भी हो, मैं आज से उसे नैना बुलाऊँगा। ख़ूबसूरत आँखों वाली नैना।


विशाल - देख भाई, तू ना इस लड़की को भूल जा यही अच्छा होगा तेरे लिए। यार, ऐसी लड़कियों का ना कोई भरोसा नहीं। मुझे तो ये कोई लुटेरी लगती है तभी तो जब भी मिलती है चेहरा ढंक कर आती है, या फ़िर उसकी सिर्फ़ आँखें ही अच्छी होगी चेहरा बिगड़ा हुआ होगा तभी तो छुपाती है। प्लीज़ यार मेरी बात मान भूल जा उसे।

रोहन - नहीं यार, मुझे ऐसा नहीं लगता। ज़रूरी नहीं है कि हम जो सोच रहे हो वही सही हो। हो सकता है उसकी कोई मजबूरी हो? अगली बार मिलेगी तो ज़रूर पूछूँगा।

विशाल - फ़िर तो भूल ही जा क्योंकि ये तुम्हारी आखरी मुलाकात थी। कल हमें वापस जाना है, भूल गया क्या?

रोहन - यार, हम दो तीन दिन ओर नहीं रुक सकते? 

विशाल - पागल हो गया है क्या? बड़ी मुश्किल से दो दिन की छुट्टी दी है बॉस ने अगर दो तीन दिन रुकेंगे तो फ़िर गई नौकरी हम दोनों की। 

रोहन - प्लीज़ यार कुछ कर ना? सिर्फ़ तीन दिन अगर वो नहीं मिली तो पक्का चौथे दिन चले जाएंगे। प्लीज़...।

विशाल - ठीक है। ठीक है। करता हूंँ कुछ। तीन दिन में वो नहीं मिली तो चौथे दिन खींच के ले जाऊँगा।

रोहन - थैंक्स यार। 


      सुबह ८ बजे हम उठे। दोपहर ऐसे ही होटल में बीता दी और शाम ५ बजे तैयार होकर मैं बाज़ार चला गया। मुझे मेरी बहन नेहा के लिए कुछ सामान खरीदना था। मैं मार्केट पहुँचा। सारा सामान लेकर बस मार्केट से बाहर ही निकल रहा था कि मेरी नज़र एक बहुत ही सुन्दर ब्रेसलेट पर गई। नेहा को ब्रेसलेट बहुत पसंद है इसलिए उसके लिए ले लेता हूँ यही सोच मैं वहाँ गया।

"भैया ये कितने का दिया?" 

"जी, २०० रुपए।" वो दुकानदार बोला। तभी एक लड़की की आवाज़ सुनाई दी "भैया ये ब्रेसलेट कितने का दिया?" 

"जी २०० का, लेकिन वो इस भाईसाब ने ले लिया है।" दुकानदार बोला। 

"नहीं कोई बात नहीं आप रख लीजिए।" मैंने उसकी तरफ़ देखते हुए कहा। 

"नहीं नहीं महँगा है, आप ही रखिए।" वो मेरी तरफ़ देखते हुए बोली। 


लड़की - तुम? तुम यहाँ भी आ गए? पीछा कर रहे हो मेरा? कौन हो तुम? जाओ यहाँ से वरना मैं पुलिस को बुलाऊँगी।

रोहन - मैडम मेरी बात सुनिए? आप गलत समझ रही है। डरिए मत आप।

उतने में एक चोर उस लड़की का पर्स खींचकर भागा।

लड़की - अरे मेरा पर्स...।

दुकानदार - अरे चोर चोर, पकड़ो उसे?

लड़की - रहने दो भैया, मुझे कोई मुसीबत खड़ी नहीं करनी। छोड़ो, जाने दो उसे।

दुकानदार - लेकिन मैडम! आपका पर्स चुरा कर भागा है ऐसे कैसे जाने दे? कैसी लड़की है ये?


थोड़ी देर बाद मैं भागते हुए उस दुकानदार के पास आया "भैया वो लड़की कहाँ गई?"

दुकानदार - चली गई वो तो। बड़ी अजीब लड़की थी! पर्स चोरी हो गया फ़िर भी चोर को जाने देने के लिए बोल रही थी। 

मैं इधर उधर उसे ढूँढने लगा। "वो रही... अरे सुनो..।" मुझे देखकर वो ओर तेज़ भागने लगी। "सुनो... तुम्हारा पर्स मिल गया।" यह सुन वो रुकी और मैं भागते हुए उसके पास गया। "कितनी मेहनत करके उस चोर को पकड़ा! ये लो तुम्हारा पर्स। और हाँ मैं उस टाइप का लड़का बिल्कुल भी नहीं हूँ जैसा तुम समझ रही हो?


लड़की - माफ़ कीजियेगा, मैंने आपको गलत समझा। 

रोहन - कोई बात नहीं। आओ तुम्हें रोड तक छोड़ दूँ।

लड़की - ठीक है, चलिए।

रोहन - एक बात पूछूँ?

लड़की - हाँ पूछो।

रोहन - तुम हमेशा ये बुरका क्यों पहनती हो? मुस्लिम हो?

लड़की - नहीं, हूँ तो हिन्दू ही बस कुछ मजबूरी है, इसलिए।

रोहन - क्यों? कोई प्राब्लम हो तो तुम बता सकती हो मुझे। वैसे भी मैं एक क्राइम रिपोर्टर हूँ अगर कुछ बात है तो कह सकती हो।

लड़की - अरे नहीं नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। चलो, मेरी मंज़िल तो आ गई, अब यहाँ से आप अपने रास्ते और मैं अपने।

रोहन - बातों बातों में पता ही नहीं चला?

लड़की - बाय।

रोहन - ऐसे कैसे बाय? तुम्हें नहीं लगता कि तुम कुछ भूल रही हो?

लड़की - क्या?

रोहन - अरे कमाल हो यार! इतनी मेहनत करके उस चोर को पकड़वाकर ये पर्स लौटाया है मैंने, एक छोटा सा थैंक्स तो बनता है।

लड़की - ओह! थैंक्स मेरा पर्स लौटाने के लिए और सोरी मेरी वजह से तुम्हें परेशानी हुई उसके लिए।

रोहन - अरे क्या तुम भी! इसमें परेशानी क्या?

लड़की - तुम्हारा नाम?

रोहन - रोहन श्रीवास्तव,और तुम्हारा?

लड़की - मेरा नाम...।


उतने में एक ऑटो वाला आकर रुका और पूछा "कहाँ जाना है मैडम?"

"चलों मैं चलती हूँ, बाय।" इतना कहकर वो ऑटो में चली गई। 

मैं ऊपर आसमान में देखकर बोला "अरे, क्या परेशानी है आपको मूझ से? जब भी नाम पूछता हूँ तो कुछ ना कुछ हो ही जाता है! जिससे वो बिना नाम बताए चली जाती है। अगर वो लड़की मेरी किस्मत में होगी तो कल भी आप मुझे उनसे ज़रूर मिलाएंगे।" मैं अपने होटल पहुँचा और विशाल को सारी बाते बताई। 


विशाल - क्या बात है? ये चोर और क्रिमिनल्स तो यहाँ भी तेरा पीछा नहीं छोड़ते। चलो इसी बहाने कुछ बात तो हुई तेरी। नाम में क्या रखा है?

रोहन - हाँ यार। अब सो जा कल सुबह मन्दिर जाना है जल्दी उठना है, गुड नाईट।

विशाल - गुड नाईट।


     सुबह मैं और विशाल मन्दिर में दर्शन करके नीचे आए। "तू यहीं इंतज़ार कर मैं अभी आया।" मैंने विशाल से कहा। मैं वहाँ से कुछ दूर कबूतरों को दाना खिलाने चला गया। तभी वहाँ मैंने उस लड़की को देखा जो बड़े प्यार से कबूतरों को दाना दे रही थी।


"ऐसे मत देखो। मैं कभी कभी यहाँ आती हूँ। बहुत अच्छा लगता है यहाँ।" उसने कहा।


रोहन - लगता है किस्मत हमें बार बार मिला रही है कुछ तो है? ऐसा नहीं लगता तुम्हें? 

लड़की - नहीं तो! मुझे तो ऐसा कुछ नहीं लगता। वैसे हम दोस्त बन सकते है। 

रोहन - लेकिन एक शर्त पर।

लड़की - कौन सी?

रोहन - पहले तुम्हें अपना नाम बताना होगा तभी मैं तुमसे दोस्ती करूँगा।

लड़की - नैना... यही नाम रखा है ना तुमने मेरा? तो आज से तुम मुझे इसी नाम से बुलाओगे 'नैना' ठीक है?

रोहन - तुमको कैसे पता?

लड़की - तुम्हारे दोस्त विशाल ने बताया।

रोहन - उससे कब मिली?

लड़की - कुछ देर पहले इसी मन्दिर में।

रोहन - साला यहाँ भी इसको चैन नहीं है! आ गया मेरी बेंड बजाने (मैं मन में ही बड़बड़ाया) । वैसे ओर क्या क्या बताया उसने?

लड़की - और तो कुछ नहीं बताया।

रोहन - अच्छा हुआ। क्या हम कल यहीं मिल सकते है?

लड़की - ठीक है। बाय, अब मैं चलती हूँ।

रोहन - बाय।


"विशाल के बच्चे! क्या ज़रूरत थी नैना को सब बताने की? साले! तू राहु बनकर मेरे सिर पर क्यों मंडरा रहा है? मैंने क्या बिगाड़ा है तेरा?" मैं विशाल के पास आते हुए बोला।

विशाल - अब मैंने क्या किया यार?

रोहन - तूने बताया क्यों नहीं कि तू नैना से मिला?

विशाल - वो तू पूजा की थाली लेने गया था तब मन्दिर के बाहर मिली थी। उसने सामने से बुलाया तो कर ली थोड़ी बाते।



कॉफ़ी शॉप, शाम ५ बजे

"कल वहीं बुलाया है उसने मिलने के लिए।" नैना ने अपनी दोस्त अंकिता से कहा।

अंकिता - यार, तू रोहन को सब कुछ क्यों नहीं बता देती? हो सकता है वो तुम्हारी कुछ मदद कर सके?


नैना - नहीं, अंकिता! मैं रोहन को कुछ नहीं बता सकती। ये जानते हुए भी कि मैं कौन हूँ? मेरी सच्चाई क्या है? तो फ़िर क्यों धकेलूँ उस भले इनसान को अपने नरक में? क्या तुम नहीं जानती कि अगर उसे पता चल गया तो वो क्या हाल करेगा रोहन का? सोचकर भी मेरी रूह कांप उठती है। 


अंकिता - तो क्या उस इनसान से बचने का कोई रास्ता नहीं? तुम कब तक इस तरह भागती छुपती फिरोगी?

नैना - पहेली बार किसी इनसान ने मुझे देखे बिना मुझसे प्यार किया। मेरे चेहरे से नहीं पर मेरे दिल से प्यार किया। सोच, वो इनसान की नज़र में प्यार की क्या कीमत होगी! हाँ ये सच है कि इन दो दिनों में मैं उससे प्यार करने लगी हूँ और ये बात मैं उसको कल ज़रूर बताऊँगी।


इधर रोहन बेड पर लेटे हुए विशाल से बोला "यार विशाल! मैं नैना को कल अपने दिल की बात बता दूंगा।"


विशाल - अगर वो तुमसे प्यार नहीं करती होगी तो? अगर उसने तुम्हें ज़ोर का थप्पड़ जड़ दिया तो? नहीं, अगर उसने तुम्हें पुलिस के हवाले कर दिया तो? फ़िर तो तू गया काम से। फ़िर तू टूटे दिल के टुकड़े लेकर आना मेरे पास साथ में बैठकर दो पेग मारेंगे।


रोहन - साले, तेरे मुंह से मेरे लिए कोई अच्छी बाते नहीं निकल सकती क्या?? तू ना मेरी प्रेम कहानी शुरू होने से पहले ही ख़त्म कर देगा। 

विशाल - अरे मज़ाक कर रहा हूँ । तू ना कल i love you बोल ही दे। हाँ अगर मना किया तो भूल जाना उसको इक अच्छा सपना समझकर।

रोहन - तू नहीं सुधरेगा। गुड नाईट, चल सो जा अब।

विशाल - वैसे नींद आएगी तुझे? अगर आ भी गई तो सपने में भाभी आएगी उससे दिल की बात बोलेगा और उसने थप्पड़ मार दिया तो? नहीं नहीं.. तु सोना ही मत।

रोहन ने तकिया उठाकर ज़ोर से विशाल को मारा "चुपचाप सो जा।"

विशाल - सोता हूँ ना यार, मारता क्यों है?


     सुबह मैं मन्दिर जाने के लिए तैयार हो गया।

"चलता हूँ विशाल, शाम तक आ जाऊँगा।"


विशाल - ओल ध बेस्ट रोहन। 


मैं थैंक्स बोलकर निकल गया। मन्दिर पहुँचकर सबसे पहले भगवान के दर्शन किए और बोला "हे भगवान, आज सब अच्छा ही करना। जय भोलेनाथ।" वहाँ से मैं वहाँ गया जहाँ मिलने का तय किया था। आज भी नैना बड़े प्यार से कबूतरों को दाना दे रही थी। मैं भी उसके पास जाकर कबूतरों को दाना खिलाने लगा। 


नैना - आज पूरा दिन मैं तुम्हारे साथ बिताना चाहती हूँ, अगर तुम्हें कोई परेशानी ना हो तो?

रोहन - मैं भी यही कहने वाला था। आज मेरा यहाँ आखरी दिन है। कल मैं वापस जा रहा हूँ। आज पूरा दिन मैं सिर्फ़ तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूँ।

नैना - आज पूरे दिन मैं पूरी जिंदगी जी लेना चाहती हूँ तुम्हारे साथ, क्या पता फ़िर ये लम्हा जीने को मिले या नहीं?

रोहन - मैं कुछ समझा नहीं?

नैना - कुछ नहीं। तो आज के दिन की शुरुआत कहाँ से करे?

रोहन - तुम बताओ कहाँ जाना है?

नैना - लोनावला चले? बहुत ही सुन्दर जगह है। वैसे भी शाम होते होते वापस आ जाएंगे।

रोहन - ठीक है।


    लोनावला में दोपहर तक हम घूमे। वो मुझे ऐसी जगह ले गई जहाँ सिर्फ़ हरियाली ही हरियाली दिख रही थी। "वाह...! कितनी शांति है यहाँ! एक बात कहूँ नैना?"


नैना - हाँ कहो।

रोहन - यहाँ हमारे अलावा कोई भी नहीं है अब तो अपना चेहरा दिखा दो?


नैना - मैं जानती हूँ रोहन कि तुम्हारे मन में बहुत से सवाल होंगे कि मैं कौन हूँ? कहाँ की रहने वाली हूँ? अपना चेहरा छुपा के क्यों रखती हूँ? ऐसे कहीं सवाल होंगे लेकिन आज तक तुमने मुझसे कुछ नहीं पूछा। कोई किसी की सिर्फ़ आँखें देखकर उसे प्यार कैसे कर सकता है? इस दुनिया में सिर्फ़ लड़की के जिस्म से प्यार करने वाले लड़के देखे है मैंने, पर तुम पहले इनसान हो जो मुझे बिना देखे मुझसे इतनी मोहब्बत करता है। हालाँकि तुमने कभी बताया नहीं पर तुम्हारी आँखें पढ़ सकती हूँ। क्यों रोहन? क्यों करते हो मुझ जैसी लड़की से इतना प्यार? 


रोहन - मैं प्यार को भगवान का आशीर्वाद समझता हूँ जो सबको नसीब नहीं होता है नैना..। हाँ, मुझे प्यार है उस दिल से जो इतना पवित्र और मासूम है। मुझे प्यार है उस आँखों से जो हारे हुए को जीने की उम्मीद देती है। वो आँखें, जिसमें सिर्फ़ सच्चाई दिखती है। 


ये सुनकर नैना की आँखों से आँसू गिरा लेकिन रोहन ने उसे अपनी हथेली पर ले लिया "नहीं नैना, मुझसे एक वादा करो कि इन आंँखो में कभी आंँसू नहीं आने दोगी। क्योंकि ये छलक गई तो रोहन उसमें डूब जाएगा नैना... वादा करो मुझसे।"


नैना - ठीक है वादा। लेकिन तुम्हें भी मुझसे एक वादा करना पड़ेगा कि तुम एक बहुत बड़े क्राइम रिपोर्टर बनोगे और अनाथ, गरीब और बेबस लड़कियों की हमेशा मदद करोगे। एक दिन मैं तुम्हें बहुत बड़ा आदमी बनते देखना चाहती हूँ जिसको सब लोग इज्ज़त और प्यार दे।

रोहन - पूरी कोशिश करूँगा तुम्हारी उम्मीद पर खरा उतरने की, ये मेरा वादा है तुमसे।

नैना - अब चले? वरना पहुँचने में देर हो जायेगी।

रोहन - हाँ चलो।


मुंबई पहुंचकर मैं बोला "तुम भी चलो ना मेरे साथ कल, वादा करता हूँ वहाँ तुम्हें कोई भी तकलीफ़ नहीं होगी। 

नैना - नहीं रोहन, मैं तुम्हारे साथ नहीं आ सकती। ये तीन दिन में मैंने अपनी पूरी जिंदगी जी ली। तुमसे वो इज्ज़त और प्यार मिला जिसकी उम्मीद मैंने सपने में भी नहीं की थी। थैंक्स रोहन.. मुझसे प्यार करने के लिए, मेरी जिंदगी में आने के लिए। 


नैना ने एक क्रोस वाला लोकेट रोहन के गले में पहना दिया।


रोहन - ये क्या है?

नैना - जीसस की ब्लेसिंग। वो चर्च गई थी तो वहाँं से लेकर आई। इसे कभी मत उतारना।

रोहन - तो तुम चर्च भी जाती हो?

नैना - कभी कभी। मुझे चर्च जाना पसंद है, इसलिए।

रोहन - क्या मैं तुम्हारी एक तस्वीर ले सकता हूँ अपने मोबाइल में?

नैना - क्यों नहीं? ज़रूर।

रोहन ने नैना की बुरखे वाली तस्वीर ली। "इसे हमेशा अपने साथ रखूँगा। जब भी मेरी ज़रूरत हो बस एक आवाज़ दे देना मैं तुरंत आ जाऊँगा। फ़िर कब मिलना होगा नैना?

नैना - अगर हमारा प्यार सच्चा है तो हम दुबारा ज़रूर मिलेंगे रोहन।

रोहन - मैं इंतज़ार करूँगा।


   ये जुदाई दोनों के लिए आसान नहीं थी। रोहन की आँखों में आँसू थे मगर नैना बेचारी रोहन को दिए वादे के कारण रो भी नहीं सकती थी। रोहन ने नैना को अपने गले से लगाया और विदा किया। 


  सुबह मैं और विशाल घर जाने के लिए निकल गए। मैंने मुड़ के इस शहर को देखा और वो सारे हसीन पल जो नैना के साथ बिताए था वो सारे पल मेरी आँखों के आगे आ गए। और मेरे मुंह से बस इतने ही शब्द निकले..


 "हे ऊपरवाले ये प्यार क्यों बनाया तूने ?

 एक पल में मिलन की ख़ुशी दे कर....

 जिन्दगी भर का इंतज़ार दे दिया,

 हे ऊपरवाले ये प्यार क्यों बनाया?"


क्रमशः


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