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Thriller

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चीखें - एक अनकही दास्तान 1

चीखें - एक अनकही दास्तान 1

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"आह! बचाओ मुझे! हेल्प मी प्लीज हेल्प मी ..... बचाओ! आह! प्लीज हेल्प मी ." एक लड़की की दर्दनाक चीखें धीरे धीरे तेज़ हो रही थी। उतने में ही ज़ोर से कुछ टूटने की आवाज़ आई और रोहन का सपना टूटा, उसकी नींद खुली। घड़ी में देखा रात के ढ़ाई बजे थे। रोहन ने देखा कि एक फूलदान गिरकर टूट गया और बिल्ली दौड़कर खिड़की से निकल गई। "ओह! तो ये बिल्ली का काम है!" रोहन मन ही मन ही बोला और पानी पीकर फ़िर से वो सो गया। सुबह मोबाइल की घंँटी से उसकी आँंख खुली देखा तो उसके बॉस मि शाह का फोन था इसलिए उसने तुरंत रिसीव किया।


रोहन - "गुड मॉर्निंग सर।"


मिस्टर शाह - "रोहन! जल्दी से ऑफ़िस आओ और मुझे मिलो।इट्स अर्जेन्ट"


रोहन - "ओके सर, बस आधे घंँटे में पहुंँचता हूंँ।"

   

रोहन फ्रेश होकर नाश्ते के टेबल पर आ गया। "वाह आज तो आलू पराठा! क्या बात है मोम?" रोहन ने ख़ुशी से उछलते हुए अपनी माँ वीणा से कहा।


वीणा - "हाँ बेटा, आज तेरा पसंदीदा नाश्ता बनाया है। हफ़्ते, महीने तु काम से भटकता रहता है और आज पूरे एक महीने के बाद तू आया है।"


रोहन - "मांँ, मेरा काम ही ऐसा है। क्या करूंँ?"


वीणा - "आज तु सिर्फ़ मेरे साथ रहेगा पूरा दिन। समझा? आज तेरा कोई बहाना नहीं चलेगा।"


रोहन - "माँ...आज मुझे जल्दी ही ऑफ़िस जाना है।बॉस का फोन था, जल्दी बुलाया है। "


वीणा - "तेरे पापा भी काम से बाहर गए है। अकेले थक जाती हूंँ अब तो एक प्यारी सी बहू ले आ?"

     

"मोम! भाई तो अपनी आंँखो वाली की तलाश में है, क्यों भाई?" रोहन की बहन नेहा ने कहा।


वीणा - "ये आंँखो वाली कौन है? ये क्या चक्कर है कोई मुझे भी बताओ?"


नेहा -" क्यों भाई! बता दूंँ मोम को?"


रोहन - "चुप कर।"


"ऐसा कुछ नही है मोम, वक्त आने पर बतादूंँगा। अभी बहुत लेट हो रहा हूँ, चलो बाय।" इतना कहकर वो ऑफ़िस के लिए चला गया।


वीणा - "ये लड़का भी ना! एक पल भी शांति से कहीं टिकता नहीं!"


नेहा - "मोम, भाई का काम ही ऐसा है! नंबर वन न्यूज़ चेनल का नंबर वन क्राइम रिपोर्टर जो है!"


वीणा -" कभी कभी बहुत डर जाती हूंँ। बहोत समझाया उसको कि इस लाइन में मत जा? पल पल जान का ख़तरा रहता है। पर मेरी सुने तो ना?"


नेहा - "कुछ भी कहो मोम, लेकिन मुझे अपने भाई पर गर्व है !"


वीणा - "तुम भाई बहन का कुछ नहीं हो सकता।"


नेहा - "अच्छा माँ बाय, मैं कॉलेज के लिए निकलती हूंँ। मुझे देर हो रही है।"

इतना कहकर नेहा कॉलेज चली गई और वीणा जी अपने कामों में लग गई। 


 "मे आई कम इन सर ?" बॉस की केबिन के दरवाज़े पर खड़े रोहन ने कहा।


मिस्टर शाह - "अंदर आओ रोहन। इनसे मिलों, ये है कमिश्नर वासुदेव प्रसाद।"


रोहन -" इन्हें कौन नहीं जानता सर! हैलो सर, आई एम रोहन श्रीवास्तव। "


वासुदेव प्रसाद - "हैलो रोहन! बहुत सुना था तुम्हारे बारे में, मिलकर ख़ुशी हुई।"


रोहन - "क्या बात है सर? मुझे इतना जल्दी क्यों बुलाया?"


मिस्टर शाह -" कुछ सही नहीं है आजकल यहांँ? चैनल की टीआरपी कम होती जा रही है। बाकी चैनल वाले आगे निकलते जा रहे है। अगर ऐसा ही रहा तो हमारी पोजिशन हिल सकती है।" 


रोहन -" अबतक तो सबकुछ सही चल रहा था तो फ़िर अचानक टीआरपी कम कैसे हो गई? एक महीना बाहर क्या गया टीआरपी कम हो गई! मेरे बिना कुछ नहीं हो सकता यहांँ (रोहन मन में बड़बड़ाया)। लगता है कुछ बड़ा सोचना पड़ेगा।"


मिस्टर शाह -" तुम्हें ईशा फर्नांडिस का केस याद है?"


रोहन - "ऑफकोर्स याद है। ये वही लड़की है जिसकी ३ साल पहले लाइब्रेरी में पंखे से लटकी हुई हालत में लाश मिली थी। दूसरे ही दिन उस केस को आत्महत्या घोषित कर के केस को बन्द कर दिया गया।"


वासुदेव प्रसाद - "बिल्कुल सही कहा।"


मिस्टर शाह -" इस केस की रिपोर्टिंग तुम्हें करनी है।"


रोहन - "इस केस से हमें क्या फायदा? ऐसे तो बहुत से केस है, तो फ़िर ये केस ही क्यों?"


वासुदेव प्रसाद -" लगता है तुम्हें ओर कुछ पता नहीं?"


रोहन - "मतलब?"


वासुदेव प्रसाद - "उस लड़की की मौत के बाद उस लाइब्रेरी में जो भी गया उसकी मौत हो चुकी है। कई रिपोर्टर वहाँं गए लेकिन दूसरे दिन सिर्फ़ उसकी लाश मिली। डर कर वहाँं की सरकार ने उसे भूतिया घोषित करके बंद कर दी गई। वहांँ शाम के बाद जाने की किसीको भी अनुमति नहीं है और जो जाता है उसकी सिर्फ़ लाश मिलती है।"


रोहन -"इंट्रेस्टिंग . फ़िर तो यह मेरे काम का केस है क्योंकि मैं भूत प्रेत में यकीन नहीं करता। इस दुनियांँ में सिर्फ़ दो क़िस्म के लोग होते है एक अच्छे और एक बुरे । भूत प्रेत जेेसा कुछ नहीं होता इस दुनियांँ में। मैं ज़रूर इस केस की रिपोर्टिंग करूंँगा। "


मिस्टर शाह - "वासुदेव मेरा दोस्त है इसलिए उसकी परमीशन से तुम इस केस की रिपोर्टिंग तैयार करो। मैं तुम्हें १ हफ्ते का वक्त देता हूंँ। "


रोहन - "ओके सर, मैं आज की फ्लाईट से ही दिल्ली के लिए निकलता हूँ।"


वासुदेव प्रसाद - "इतना आसान नहीं है रोहन? क्या तुम कर पाओगे? तुम्हें अपनी जान की परवाह नहीं है क्या?"

 

रोहन - "अगर जान की परवाह की होती तो इतना बड़ा क्राइम रिपोर्टर कभी नहीं बन पाता।" इतना कहकर रोहन मुस्कुराकर केबिन से बाहर चला गया।


वासुदेव प्रसाद - "कमाल का लड़का है ये!"


मिस्टर शाह - "वो तो है। "


विशाल और माया रोहन की तरफ़ देखते हुए बोले "आओ जनाब!"


विशाल - "कैसे हो दोस्त? आज पूरे एक महीने के बाद मिले है"। विशाल ने कहा।


माया - "कैसा रहा तुम्हारा सफ़र?"


रोहन -" बहुत अच्छा। मैं गया क्या तुम लोगो ने तो चैनल की टीआरपी ही कम कर दी!!"


विशाल - "यार कोई मसालेदार न्यूज़ ही नहीं मिली?"


रोहन - "कोई बात नही, अब मिलेगी।"


माया -" मतलब? "


रोहन - "मैं दिल्ली जा रहा हूंँ, आकर बताऊंँगा।"


विशाल - एक बात पूछूंँ?


रोहन - "पूछो।"


विशाल -" क्या हुआ कुछ परेशान लग रहा है?"


रोहन - "यार फ़िर से वही सपना। परेशान हो गया हूंँ इस सपने से। जब भी आंँखे बंद करता हूंँ वो चीखें मेरे कानों में गूंजने लगती है। कितना दर्द है उस चीखों में! ऐसा लगता है कोई लड़की मुझे मदद के लिए बुला रही है।"


विशाल - "घर में किसीको बताया तुमने?"


रोहन -" नहीं यार, सब खामखांँ परेशान हो जायेंगे। सिर्फ़ सपना ही तो है। चलों चलता हूंँ, शाम की मेरी फ्लाईट है। दिल्ली से वापस आकर मिलता हूंँ, बाय।"


"विशाल और माया - बाय, ख़्याल रखना अपना।"

   

रोहन ऑफ़िस से निकलकर सीधा अपने घर गया। अपना बेग पेक करके सीधा एयरपोर्ट के लिए रवाना हो गया। घर में उसने बताया कि वो ऑफ़िस के काम से जा रहा है एक हफ़्ते में आ जाएगा।



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