छोटू का कैसा सपना
छोटू का कैसा सपना
"छोटू के कमरे से ये कैसी आवाज़?", राज मामा पूछे।
"अरे कुछ नहीं। ये तो उसके रोज़ का मामला है।", मां ने कहा।
"ऐसा क्या?" मामा हो गए परेशान।
"चलो, देखते हैं।"
कमरे में मामा ने देखा कि छोटू हाथ पैर हिला हिला के "डिशूम डिशूम" चीख रहा था। उसको देखकर मामा अभ ज़ोर ज़ोर से हंसने लगे।
मां भी मुस्कुराने लगी और छोटू को उठाने लगी। "चल छोटू उठ जा अभी। देख राज मामा आए है तुमसे मिलने।"
"पर मां आज तो शनिवार है। साने दो ना मां।" कहके फिर से सो गया।
एक घंटा तो ऐसे ही गुज़र गया। मां और छोटू के मामा नाचता करके चाय पीने ही वाले थे कि उसके कमरे से फिर से आवाज़ आईं। पर ये क्या, अब तो छोटू ज़ोर ज़ोर से चीखने लगा, "नहीं, नहीं, नहीं!! ये क्या हो गया।" परेशान होकर उठ जाता है, छोटू।
मां और मामा के पूछने पर छोटू अपना भयानक ख्वाब दोहराता है।
"मां, क्या आप जानते हो कि मैंने क्या देखा ? गब्बर के लोग आते हैं रामगढ़ गांव ....अनाज लेने। पूरा गांव डर के मारे अपने दरवाज़ा बंद कर लेते है। ज़ोर और ज़बरदस्ती से अनाज लेने की कोशिश करते हैं तो आ जाते है जय और वीरू।डिशूम डिशूम, ज़ोरदार होती है और गब्बर के आदमि खाली हाथ ही वापस चले जातेहैं। अब हुआ क्या...गब्बर को आया गुस्सा। फिर होली के दिन किया आक्रमण। शुरू हो गाई एक लम्बी लड़ाई। आखिर में जय और वीरु को बंधक बना लेते है। अब बचे तो सिर्फ ठाकुरजी, शॉल ओढ़कर।गब्बर ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा और पूछा, " अब आपका क्या होगा ठाकुर जी??" ठाकुर छुप छाप खड़े थे।
गब्बर हंसते हंसते ठाकुर की ओर हमला करने बढ़ा। हवा चलने लगी। जय और वीरू बंधे हुए थे। ठाकुर करे भी तो क्या??
"हा हा हा, हा हा हा," करके हंसते रहे गब्बर के आदमी।
ठाकुर को हमला करने चले। जैसे ही उनके सामने चले, हवा में उड़ गई ठाकुरजी की ओढ़नी। और "डिशूम!!! डिशूम!!!" गिर पड़े गब्बर के आदमी और फिर खुद गब्बर।
"डिशूम!!! डिशूम!!!"
"ठाकुरजी, " जब ये ढाई किलो का हाथ किसी पे पड़ता है, तो आदमी उठता नहीं, उड़ जाता है।"बायोनिक हाथ से होता है असली काम!अरे, ये क्या...शोले में तो चमत्कार होगया मां।"
राज मामा और मां रह गए ढंग!!!!!
