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Dr Sangeeta Tomar

Romance

3  

Dr Sangeeta Tomar

Romance

छोटी सी ख्वाहिश

छोटी सी ख्वाहिश

15 mins
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सुबह चाय का पानी चढ़ा कर जवनिका उबलते पानी को देख रही थी ।पानी में चाय पत्ती का रंग घुलते देखना और उसकी खुशबू को अपने चेहरे पर महसूस करना बेहद सुकून देता था उसे। रोजमर्रा की भागती- दौड़ती जिंदगी से ऐसे ही छोटे-छोटे पल चुराना उसे तरोताजा कर देता था।

 तभी फोन पर की फेसबुक की मैसेज टोन सुनाई दी। किसी ने कुछ पोस्ट किया था शायद । उसकी सहेली विशाखा ने अपनी ट्रिप के फोटो पोस्ट किए थे ।फोटोस बहुत ही सुंदर थी। विशाखा और उसके पति सुहास के साथ में काफी सारे फोटो थे, जिन्हें देखकर जवनिका के मन में फांस सी चुभ गई।

ऐसा बिल्कुल भी नहीं था कि वह वह उन लोगों को पसंद नहीं करती थी और ना ही उसके मन में कोई जलन थी। बस फोटो देखकर उसकी एक ख्वाहिश फिर सिर उठाने लगी थी।

उसने फोटोस लाइक की और एक कमेंट भी लिखा adorable pics, wonderful Jodi

 जतिन और जवनिका की शादी को 17 साल बीत चुके थे। सब कुछ ठीक ही था उनके बीच अच्छी अंडरस्टैंडिंग थी,जतिन ने कभी किसी काम के लिए रोका नहीं । उसने शादी के बाद अपनी पढ़ाई जारी रखी। MSc किया फिर पीएचडी किया अब कॉलेज में zoology ki प्रोफेसर की नौकरी कर रही थी। कई बार वह सोचती थी क्या वह पूरी तरह से आज़ाद थी? क्यूंकि हर काम के लिए जतिन की परमिशन तो लेनी पड़ती थी ।जैसे कि घर पर किसी को बुलाने के पहले पूछना पड़ता था। कोई गेस्ट आ रहे हैं तो क्या खाना बनाना है उसका अप्रूवल लेना पड़ता था ।किसी को गिफ्ट देने के पहले जतिन से पूछना ही ठीक रहता था कभी अगर वह अपने मन से गिफ्ट ले आए और जतिन को पता चला कि उसके मन मुताबिक नहीं है अगले पांच-छह दिन जतिन कि नाराजगी झेलना पक्का था। हर काम टाइम - टेबल से चलता था। सुबह की चाय से लेकर रात के खाने तक का फिक्स टाइम था। 5 मिनट ऊपर नीचे हो जाते अगले दो-तीन दिन भुगतना पड़ता था। और यही बातें उनके बच्चे अवनी और अंबर के रुटीन का भी हिस्सा बन गई थी। जब कभी बच्चे जतिन के बर्ताव से चिढ़ जाते तो जवनिका उन्हें समझाती और जब वह खुद अपसेट होती तो बच्चे उसे संभाल लेते। बस इसी तरह जीवन चल रहा था। जवनिका ने मान लिया था कि शायद शादी के बाद इस तरह का बदलाव नार्मल है ।

बहुत सारी पॉजिटिव बातें भी तो हैं उसके शादीशुदा जिंदगी में ।क्या हुआ अगर कोई निर्णय नहीं ले सकती। बहुत सारी छोटी-छोटी ख्वाहिश थी उसकी, जिन्हे वो अनदेखा कर देती थी। ऐसी ही एक ख्वाहिश थी जतिन के साथ एक फोटोग्राफ खींचवाने की। 

यह ख्वाहिशें भी कितनी अजीब होती हैं ना, कई छोटी बातें हैं जो किसी के लिए रोजमर्रा की आम बात होती है और वही किसी के लिए ख्वाहिश बन जाती है ।जैसे पिंजरे के पंछी आसमान में उड़ते परिंदों को देखकर यह सोचते हैं काश हम भी उड़ पाते। 

पर उन परिंदों के लिए तो हर रोज उड़ना ही उनकी जिंदगी है । जहां दुनिया भर के लोग अपनी हर छोटी-बड़ी खुशी फोटोस के रूप में दुनिया के साथ बांटते है । वहीं जवनिका एक फोटो के लिए तरस रही थी। और ऐसा नहीं था कि उसे सोशल मीडिया पर दिखावा करने के लिए यह फोटोस चाहिए थे।

उसे तो बस अपनी यादों को संजोने के लिए चाहिए थे। जतिन हमेशा फोटो लेने से कतराते थे । बच्चों के साथ तो फिर भी कभी कभार खड़े हो जाते थे फोटो खींचने के लिए पर जवनिका के साथ तो बिल्कुल नहीं ।कारण क्या था ? उस कभी समझ नहीं आया था। वह जानती थी कि यह सवाल पूछने पर जतिन उसे झिड़क देंगे इसलिए उसने कभी पूछने की हिम्मत भी नहीं की थी।

 बच्चे डिनर करके अपने रूम में पढ़ाई कर रहे थे ।हल्की सी फुहार पड़ने लगी थी ।रात में जब फुहार आती है ऐसा लगता है जैसे काले बादलों के बीच से चांदी बरस रही हो। अक्सर वो फुहार को चेहरे पर महसूस करने बालकनी में खड़ी हो जाती थी।इन्हीं बारिश के दिनों में उसकी शादी हुई थी।

कल उसकी एनिवर्सरी है यह सोच कर मन भीग गया था उसका । वो अपने मन में, पुराने एहसास टटोल रही थी, वो सुकून और पहले प्यार की कशिश।

पहली बारिश होते ही वह उसी समय में पहुंच जाया करती थी।  

उन दिनों के जतिन को याद करती और आंखों की कोर अक्सर भीग जाया करती थी। वह समय अलग था। वो जतिन भी अलग था। उसे प्यार करने वाला, उसके नखरे उठाने वाला, उसकी हर छोटी बड़ी ख्वाहिश पूरी करने वाला ।उसे आज भी याद है जतिन को ऑफिशियल टूर पर जाना था और उसके अगले ही दिन उन्हें इंगेजमेंट रिंग खरीदने जाना था। जतिन का पहुंचना लगभग नामुमकिन था ।पर रात भर ड्राइव करके जतिन समय पर लौट आया था, सिर्फ जवनिका को खुश करने के लिए।

पर शादी के बाद धीरे-धीरे सब बदलने लगा था। और अब इतना कुछ बदल गया था कि लगता ही नहीं था कि यह वही जतिन है।

और वह दोनों कभी लव बर्ड्स थे।

 डोर बेल की आवाज़ से जवनिका ख्यालों कि दुनिया से बाहर निकली। जतिन ऑफिस से लौट आया था। जवनिका ने अपनी उदास आंखों से मुस्कुराते हुए पूछा। "कैसा रहा आज का दिन?"

"ठीक था ।"जतिन ने थकी आवाज़ में कहा। चाय लोगे या खाना लगाऊ।जतिन ने कहा- "खाना ही खाऊंगा"

यह कह कर वह नहाने चला गया ।खाना खाने के बाद जतिन स्टडी में बैठकर कुछ पढ़ रहा था। जवनिका किचन समेट कर बालकनी में आकर खड़ी हो गई थी,बादलों से ढके चांद को देख रही थी। जतिन कब आकर उसके पास खड़ा हो गया उसे पता ही नहीं चला । " कल तुम्हें क्या गिफ्ट चाहिए?" जतिन ने पूछा तो चौक कर जवनिका ने उसे देखा।" तुम्हारी कार बदल लेते हैं। नई कार एक परफेक्ट गिफ्ट है।

क्या कहती हो? "

जवनिका ने एकदम खाली नजरों से उसकी तरफ देखते हुए कहा -"मुझे कुछ नहीं चाहिए। कितने साल हो गए हैं शादी को, सब कुछ तो है मेरे पास।" "मुझे लगा यह सुनकर तुम खुश हो जाओगी।"- जतिन ने कहा । जवनिका ने आंखों में आंखें डाल कर पूछा- "तुम मुझे एनिवर्सरी पर गिफ्ट क्यों देते हो ?"

" क्योंकि मैं तुम्हें खुश करना चाहता हूं?"

 क्या तुम्हें लगता है कि मैं गिफ्ट्स से खुश होती हूं? तुम खुश तो होती ही होगी मैं तुम्हें हमेशा अच्छे और एक्सपेंसिव गिफ्ट देता हूं । जतिन ने थोड़ा मजाकिया अंदाजी में कहा।

"क्या तुम मुझे वाकई खुश देखना चाहते हो जतिन ?"  जतिन को कुछ समझ में नहीं आ रहा था उसके चेहरे पर मिक्सड रिएक्शनस थे पहले शॉक के भाव उभरे, और फिर चिंता ली लकीरें। क्यूंकि जवनिका ने आज तक उसके हर फैसले को बिना सवाल किए माना था। 

"तुम्हें क्या हुआ है ,ये कैसी बातें कर रही हो? आज तक तुमने ऐसी बात नहीं कही है।"

" आपने कभी पूछा ही नहीं इसलिए मैंने कहा नहीं ?

 शायद आज भी नहीं कहती पर तुम्हारा ये भ्रम दूर करना ज़रूरी लगा, की महेंगे गिफ्ट्स देने से में खुश होती हूं। अगर आप मुझे कोई गिफ्ट देना ही चाहते हैं तो मुझे आपके साथ एक फोटो चाहिए।"

 "एक यादों का गुलदस्ता सजाना चाहती हूं मैं। कितने साल हो गए हमारा साथ में एक भी फोटो नहीं है।अगर तुम वाकई में मेरी ख़ुशी चाहते हो तो क्या तुम मुझे प्रॉमिस कर सकते हो , की हम हर एनिवर्सरी पर साथ में एक फोटो क्लिक करवाएंगे ?" जतिन जवनिका को देख रहा था ऐसे जैसे भटके हुए राही को कोई हाथ पकड़ कर घर के रास्ते वापस ले आया हो।  "क्या ये तुम्हारे लिए इतना जरूरी है जवनिका?" जवनिका ने कहा -"हां बस यही चाहती हूं मैं । मुझे कार नहीं चाहिए बस एक फोटो चाहिए तुम्हारे साथ।" 

जतिन तड़प कर बोला -"तुम जानना चाहती हो ना कि क्यों नहीं पसंद करता मैं फोटोस ? क्योंकि आजकल हर फोटोग्राफ सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया जाता है ।जिन्हे हर कोई देखता है ।अब तुम मुझे दकियानूसी कहो या पुराने ख्यालात वाला मुझे लगता है कि हमारी फैमिली फोटोग्राफ्स कई तरह के लोग देखेंगे और हर कोई तो हमारा वेल विशर नहीं होता ना । जलने वाले लोगों की नजर लगने का डर होता है बस यही कारण है । फोटोस पर कितने लाइक कॉमेंट्स मिले है, उसी पर ख़ुशी डिपेंड करने लगती है। और फोटोस का मिसयूज भी हो सकता है। मैं बच्चों को और तुम्हे इससे दूर रखना चाहता था। पर मैंने तुमसे ये कभी  डिसकस नहीं किया।" 

 जवनिका की खाली आंखों में प्यार का समुन्दर झिलमिला रहा था। वो बोली मैं समझती हूं ,आपकी चिंता ।मुझे भी बिल्कुल शौक नहीं है अपनी पर्सनल लाइफ को पब्लिक करने का। बस यादों का एक कोलाज बनाना चाहती हूं। बीते पलों का प्यारा सा गुलदस्ता बन जाए, इसमें हर रंग और हर खुशबू के फूल हो ।जब हम बूढ़े हो जाएंगे शायद उन्हें देखकर हमें सुकून और सहारा मिले। 

जतिन को अपने ऊपर शर्म आने लगी थी उसने कहा - "तुम बिल्कुल भी नहीं बदली हो जवनिका। तुम वैसी ही हो ,जैसे पहले थी पर मैं बहुत बदल गया हूं ना? बहुत हार्श और डॉमिनेटिंग हो गया हूं। अब मुझे एहसास हो रहा है इस बात का। मैं मानता हूं, तुम्हें और बच्चों को टेकन फॉर ग्रांटेड लेता हूं। 

 मुझे लगता है मैं जो बोल रहा हूं वही सही है। मैंने कभी यह जानने की कोशिश नहीं की कि तुम लोग क्या सोचते हो? तुमने कभी भी कोई डिमांड नहीं रखी हर बार बिना किसी argument के मेरी हर बात मानती रही। हमेशा मेरा साथ दिया। "

"ऐसा क्यों करती हो तुम?इतना क्यों चाहती हो ?" तुम्हीं ने बिगाड़ा है मुझे। अब सुधारना भी तुम्हें ही पड़ेगा। डांटा करो मुझे, जब कुछ गलत करूं ।बहस किया करो मेरे साथ अपनी बात 

मनवाया करो प्लीज। क्या मदद करोगी तुम मेरी

फिर से पहले वाला जतिन बनने में ?"

तभी बादलों के बीच चांद निकल आया था जवनिका को पास में खींचते हुए जतिन ने कहा-" चलो चांद के साथ सेल्फी लेते हैं।" चांद और जतिन दोनों ही मुस्कुरा रहे थे।


नई रोशनी

*********


अंजली ढलती सांझ के सूरज को डूबते देख रही थी। सिंदूरी, फिर गहरे नीले और फिर स्याह होते आसमान को देखती अंजली के दिल में और आंखों में भी वही स्याही उतर आई थी। जहां उसे आगे का रास्ता नहीं , सिर्फ काला घना अंधेरा ही दिख रहा था।


यह एक ऐसा मोड़ था जहां उसके आगे दो रास्ते थे एक अजित यानी उसके पति की तरफ ले जाता था,और दूसरा अपने होने वाले बच्चे के करीब लें जाता हुआ । अपने अंदर एक नन्हीं जान के होने का एहसास कितना संपूर्ण कर देने वाला था। पर अजित की ज़िद ने उसे अजीब सी उलझन में डाल दिया था। वह बच्चा नहीं चाहता था। ये बात उसने अंजली को शादी से पहले ही बता दी थी। अजित से उसकी मुलाक़ात एक क्लायंट के तौर पर हुई थी। वो एक आर्किटेक्चर फर्म में असिस्टेंट आर्किटेक्ट थी। अजित अपने नए ऑफिस का डिजाइन बनवाने आया था। बार- बार डिजाइन में बदलाव करवाने वह हर दूसरे दिन ऑफिस आने लगा।


अंजली पूरी शिद्दत से बताए हुए चेंजेस करती लेकिन फिर अगले दिन वह फिर नए चेंजेस लेकर पहुंच जाता। उससे बात करने के बहाने खोजता।

कई बार अंजली ने उसे अपनी ओर ताकते हुए देखा तो उसे कुछ अजीब लगा और वह उसे इग्नोर करने लगी।


एक बार तो उसका एड्रेस और फोन नंबर पता कर, उसके घर के पास तक पहुंच गया । उसी समय अंजली अपनी मां के साथ मार्केट से लौट रही थी। और अंजली ने उसे अपनी कॉलोनी में तफरी करते देख लिया। वह बहुत नाराज़ हुई ।उसे खरी-खोटी सुनाते हुए ,कभी ऑफिस ना आने की हिदायत दे डाली। उसके बाद कभी अजित ने ऑफिस का रुख नहीं किया । बाद में अंजली को लगा भी की शायद वो कुछ ज़्यादा रूड हो गई थी ।


उसके ना आने से अंजली उसे मिस करने लगी थी।

फिर एक दिन अजित का फोन आया और उसने अंजली से अपने मन की बात कही । वह लोग अक्सर मिलने लगे ।


अंजली उसको जितना जानती गई, उतना ही उसके प्यार में डूबती चली गई। अजित के पिता के गुज़रने के बाद परिवार को उसने ही संभाला था।कॉलेज के पहले साल में ही ये हादसा हो गया था। उसने अपनी पढ़ाई पूरी करने के साथ, बिजनेस भी संभाला और बहनों की पढ़ाई और शादियों की ज़िम्मेदारी एक पिता की तरह पूरी की। मां का साथ तो था ,पर head of the family उसे ही बनना पड़ा था। अब वो अपनी सब जिम्मेदारियों से फारिग हो चुका था। शादी के पहले ही अजित ने उससे कहा था कि- अब मैं अपनी ज़िन्दगी मे कोई नई जिम्मेदारी नहीं चाहता हूं । इतने साल परिवार की ज़रूरतें पूरी करते, ऐसे ही निकल गए । अब बिल्कुल फ्री रहना चाहता हूं।" मैं बच्चे की जिम्मेदारी नहीं चाहता हूं, इसलिए ऐसी कोई भी डिमांड बाद में मत रखना अंजली। अंजली को लगा कि ये कोई बहुत बड़ी बात नहीं है शादी के बाद देखेंगे।


शादी के शुरुवात के दिन बहुत सुहाने थे, जैसा अंजली ने सोचा था । उसे अजित का भरपूर प्यार मिला और जीने की पूरी आज़ादी भी। पर रिश्तेदारों में फ्रैंड सर्किल में यह सवाल गूंजता रहता ,"बेबी कब प्लान कर रहे हो ?" अजित तो अपने डिसीजन पर कायम रहा । पर इस सवाल से अंजली अपने अंदर कुछ टूटता सा महसूस करती। किसी छोटे बच्चे को अपनी मां के साथ देखती तो खुद को मां की जगह इमेजिन करने लगती थी। अजित की मां की हसरत भरी निगाहों का सामना करना भी दिन- ब -दिन मुश्किल होता जा रहा था। और इन सबके ऊपर अपने अंदर , मां बनने की ख्वाहिश को अनसुना करना था। कई बार उसने अजित से बात करने की कोशिश भी की। पर अजित का दो टूक जवाब यही होता -"देखो अंजली इसके अलावा कुछ भी मांग लो। पर ये नहीं। और बार- बार इस बारे में बहस करना पसंद नहीं है मुझे ।" कहते है ना प्यार में सरेंडर करना होता है, अंजली भी कर दिया था। अपनी मां बनने की ख्वाहिश को सात तालों में बंद कर चाबी गहरे समुंदर में फेंक दी थी उसने । फिर अचानक एक दिन उसकी दुनिया बदल गई।


उसे दाल मे तड़का लगाते वक्त उबकाई सी आई। फिर तो कभी किसी परफ्यूम की खुशबू से, कभी मसाले से, कभी चूल्हे पर से उतरती गरम रोटी से दिक्कत होने लगी। अपनी सास प्रमिला जी को बताया, तो खुश होते हुए उन्होंने प्रेगनेंसी टेस्ट करने का सुझाव दिया। अंजली बहुत डर गई थी अजित की नाराजी से। पर एक उम्मीद की किरण भी दिख रही थी। शायद अब अजित मान जाए। टेस्ट का रिजल्ट पॉजिटिव आया । सुखी धरती पर पड़ती पहली फुहार सा सौंधा हो गया था उसका मन। प्रमिला जी भी खुश थी। उन्होंने अजित को कुछ भी ना बताने कि सलाह दी। वे अजित की जिद के बारे में जानती थी।


पर अजित से कहां छुपने वाला था । एक दिन उसने पूछ ही लिया "क्या बात है? आजकल कुछ अजीब सा behave kar रही हो।" और फिर उसने अजित का वो रूप देखा जिसके बारे में उसने कभी सोचा नहीं था।


लगभग चीखते हुए उसने कहा था" ये कैसे होने दिया इतना केयरलैस कैसे हो सकती हो तुम ? एक काम करो अपनी मम्मी के यहां चली जाओ। वहां पर रेस्ट भी अच्छे से हो पाएगा।"तुम कल ही डॉक्टर से मिलो और "पहले वाली अंजली बन कर ही वापस आना। "


"पहले वाली अंजली…..पहले वाली अंजली …

मन ही मन बुदबुदाते हुए अंजली ने कहा

क्या बन पाऊंगी मैं फिर कभी? "


आंसुओं का सैलाब अपने अंदर समेटे अंजली कमरे से बाहर निकल गई। वो रात बहुत लंबी लग रही थी, नींद तो आंखों से कोसो दूर थी। ख्यालों की दुनिया हमें वहां ले जाती हैं जहां हम खुद कभी पहुंच नहीं सकते। कितनी सुहानी होती है वो दुनिया जहां हर चीज़ हमारे मन के मुताबिक़ होती है। उसने भी सजा ली थी उस रात, एक प्यारी सी दुनिया, जिसमें एक नन्हीं परी अजित का हाथ पकड़े दौड़ रही थी। अजित कभी उसे कंधे पर बिठाते ,कभी गोदी में झुलाते और अंजली दूर खड़ी मुस्कुराती उन्हें देखती । पर कितना दर्द भरा होता है ,वापस हमारी वास्तविकता में लौटना। रात तो बीत गई पर छोड़ गई थी कुछ ऐसे घाव जिनके भरने की उम्मीद अंजली को नहीं थी।


मां के घर पहुंचते ही अंजलि के सब्र का बांध टूट गया। विश्वास और भरोसे की इमारत दरक तो गई ही थी पिछली रात और आंसुओं के सैलाब से वह बह भी गई थी आज ।

मां -पापा ने उसे समझाया -"तुम लोग गलत कर रहे हो। "कई लोग इस ख्वाहिश को पूरा करने के लिए दर- दर भटकते हैं। मंदिर और दरगाह के चक्कर काटते हैं, कई डॉक्टरों से इलाज करवाते हैं ,फिर भी इस खुशी से महरूम रह जाते है। और तुम लोग ईश्वर का दिया हुआ तोहफा ठुकरा रहे हो।

वह किसी पर जिम्मेदारी बनकर नहीं आ रहा ,अपनी किस्मत खुद लेकर आ रहा है उसका अपना भाग्य है

अपने रास्ते वो खुद ही बना लेगा तुम लोग क्यों भगवान बनने की कोशिश कर रहे हो?


प्रमिला जी के भी फोन आते रहे उसे समझाने के लिए। पर अंजली का जवाब यही था कि -"अजीत की खुशी के लिए मुझे यह करना होगा। उसकी आंखों में अपने लिए नफरत नहीं देख सकती हूँ मै ।" आप मुझे माफ कर दीजिए मां।"

प्यार आदमी को इतना कमजोर बना देता है, इस बात का एहसास उसे हो रहा था।


अंजलि फैसला ले चुकी थी। अजित के बिना जीना या उसकी नफरत के साथ जीने की कल्पना मात्र से सिहर उठी वह। इसलिए उसने अजित को चुना। अंतर्द्वंद से जूझती अंजलि की तंद्रा तब टूटी जब मां ने उसे आवाज दी

"चलो अंजलि कैब आ गई है । मां उसे फैमिली डॉक्टर मृदुला के पास ले जा रही थी।


कैसी हो अंजलि? डॉ मृदुला ने पूछा। अंजली ने अबॉर्शन करवाने के बारे में बताया। पूरा माजरा समझने के बाद उन्होंने कहां-" ठीक है ये अजीत का डिसीजन है, पर तुम क्या चाहती हो?"

"वही जो अजीत चाहते हैं।" अंजलि ने दबी सी आवाज़ में कहा।


डॉक्टर ने एक कैटलॉग अंजलि की तरफ बढ़ा दिया और कहां -"फर्स्ट पिक्चर देख रही हो ना, तुम्हारा बेबी अभी ऐसा दिखता है। एक अंगूठे से भी छोटा। तुमने इसे जिंदगी दी है ।यह सिर्फ तुम्हारे भरोसे ही धीरे -धीरे बढ़ रहा है । उसे पता है कि उसके मां- बाप बाहर उसका बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। इस बात से बेखबर की तुम लोगों ने उसके लिए जिन्दगी को नहीं बल्कि .. इतना कह कर वह चुप हो गई।"


जैसे ही यह दवाइयां मैं तुम्हें दूंगी ,यह पूरी तरह ख़त्म हो जाएगा। और यदि तुम यह प्रेगनेंसी कंटिन्यू करती हो तो (कैटलॉग का अगला page दिखाते हुए बोली) अगले तो कुछ दिनों में ही इसकी धड़कन सुनाई देने लगेगी। फिर धीरे -धीरे इसमें बाकी के organs develope होंगे। यह तुम्हारे अंदर खेलेगा, घूमेगा, मुस्कुराएगा । और फिर एक दिन तुम्हारी बांहों में होगा। इतने साल हो गए मुझे इस प्रोफेशन में कई डिलीवरीज करवा चुकी हूं ।पर जब भी किसी जिंदगी को मां के अंदर बढ़ते देखती हूं, तो आज भी रोमांचित हो जाती हूं, और इमोशनल भी। यह डिसीजन सिर्फ अकेले अजीत का नहीं होना चाहिए इसमें तुम्हारी भी बराबर की हिस्सेदारी होना चाहिए? अब तुम सोचो ठंडे दिमाग से कि तुम क्या चाहती हो ?"


अंजलि अपने अंदर एक नए तरह का साहस और उमंग महसूस कर रही थी। अब वह एक मां की तरह सोच रही थी। किसी भी कीमत पर अपने बच्चे को खोना नहीं चाहती थी। खोना तो दूर उसको तकलीफ़ और दर्द में देखने की कल्पना से भी उसका मन दहल गया था। उसे अपने आप से नफरत हो रहीं थीं। ये क्या करने जा रही थी मैं ।तुम्हें कुछ भी नहीं होने देगी तुम्हारी मां । "सही रास्ता दिखाने के लिए थैंक्यू" ।


इतना कह कर डॉ मृदुला के गले लग कर खूब रोई अंजली। अपना डिसीजन उसने अजीत को भी फोन करके बता दिया था और साथ में यह भी की कोई बात नहीं, अगर वह उसका साथ नहीं देना चाहता। वह अपनी जिंदगी जीने के लिए पूरी तरह से आजाद है। वह अब प्रेमिका से मां बन चुकी थी। स्याह रात के बाद नई उम्मीद की आमद से अंजली की दुनिया नई रोशनी से सारोबार हो गई थी।



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