नई रोशनी
नई रोशनी
अंजली ढलती सांझ के सूरज को डूबते देख रही थी। सिंदूरी,फिर गहरे नीले और फिर स्याह होते आसमान को देखती अंजली के दिल में और आंखों में भी वही स्याही उतर आई थी। जहां उसे आगे का रास्ता नहीं ,सिर्फ काला घना अंधेरा ही दिख रहा था।
यह एक ऐसा मोड़ था जहां उसके आगे दो रास्ते थे एक अजित यानी उसके पति की तरफ ले जाता था,और दूसरा अपने होने वाले बच्चे के करीब लें जाता हुआ । अपने अंदर एक नन्हीं जान के होने का एहसास कितना संपूर्ण कर देने वाला था। पर अजित की ज़िद ने उसे अजीब सी उलझन में डाल दिया था। वह बच्चा नहीं चाहता था। ये बात उसने अंजली को शादी से पहले ही बता दी थी। अजित से उसकी मुलाक़ात एक क्लायंट के तौर पर हुई थी। वो एक आर्किटेक्चर फर्म में असिस्टेंट आर्किटेक्ट थी। अजित अपने नए ऑफिस का डिजाइन बनवाने आया था। बार- बार डिजाइन में बदलाव करवाने वह हर दूसरे दिन ऑफिस आने लगा।
अंजली पूरी शिद्दत से बताए हुए चेंजेस करती लेकिन फिर अगले दिन वह फिर नए चेंजेस लेकर पहुंच जाता। उससे बात करने के बहाने खोजता।
कई बार अंजली ने उसे अपनी ओर ताकते हुए देखा तो उसे कुछ अजीब लगा और वह उसे इग्नोर करने लगी।
एकबार तो उसका एड्रेस और फोन नंबर पता कर,उसके घर के पास तक पहुंच गया । उसी समय अंजली अपनी मां के साथ मार्केट से लौट रही थी। और अंजली ने उसे अपनी कॉलोनी में तफरी करते देख लिया। वह बहुत नाराज़ हुई ।उसे खरी-खोटी सुनाते हुए ,कभी ऑफिस ना आने की हिदायत दे डाली। उसके बाद कभी अजित ने ऑफिस का रुख नहीं किया । बाद में अंजली को लगा भी की शायद वो कुछ ज़्यादा रूड हो गई थी । उसके ना आने से अंजली उसे मिस करने लगी थी।
फिर एक दिन अजित का फोन आया और उसने अंजली से अपने मन की बात कही । वह लोग अक्सर मिलने लगे ।
अंजली उसको जितना जानती गई, उतना ही उसके प्यार में डूबती चली गई। अजित के पिता के गुज़रने के बाद परिवार को उसने ही संभाला था।कॉलेज के पहले साल में ही ये हादसा हो गया था। उसने अपनी पढ़ाई पूरी करने के साथ, बिजनेस भी संभाला और बहनों की पढ़ाई और शादियों की ज़िम्मेदारी एक पिता की तरह पूरी की। मां का साथ तो था ,पर हेड ऑफ़ द फॅमिली उसे ही बनना पड़ा था। अब वो अपनी सब जिम्मेदारियों से फारिग हो चुका था। शादी के पहले ही अजित ने उससे कहा था कि- अब मैं अपनी ज़िन्दगी मे कोई नई जिम्मेदारी नहीं चाहता हूं । इतने साल परिवार की ज़रूरतें पूरी करते, ऐसे ही निकल गए । अब बिल्कुल फ्री रहना चाहता हूं।" मैं बच्चे की जिम्मेदारी नहीं चाहता हूं, इसलिए ऐसी कोई भी डिमांड बाद में मत रखना अंजली। अंजली को लगा कि ये कोई बहुत बड़ी बात नहीं है शादी के बाद देखेंगे।
शादी के शुरुवात के दिन बहुत सुहाने थे, जैसा अंजली ने सोचा था । उसे अजित का भरपूर प्यार मिला और जीने की पूरी आज़ादी भी। पर रिश्तेदारों में फ्रैंड सर्किल में यह सवाल गूंजता रहता ,"बेबी कब प्लान कर रहे हो ?" अजित तो अपने डिसीजन पर कायम रहा । पर इस सवाल से अंजली अपने अंदर कुछ टूटता सा महसूस करती। किसी छोटे बच्चे को अपनी मां के साथ देखती तो खुद को मां की जगह इमेजिन करने लगती थी। अजित की मां की हसरत भरी निगाहों का सामना करना भी दिन- ब -दिन मुश्किल होता जा रहा था। और इन सबके ऊपर अपने अंदर , मां बनने की ख्वाहिश को अनसुना करना था। कई बार उसने अजित से बात करने की कोशिश भी की। पर अजित का दो टूक जवाब यही होता -"देखो अंजली इसके अलावा कुछ भी मांग लो। पर ये नहीं। और बार- बार इस बारे में बहस करना पसंद नहीं है मुझे ।" कहते है ना प्यार में सरेंडर करना होता है, अंजली भी कर दिया था। अपनी मां बनने की ख्वाहिश को सात तालों में बंद कर चाबी गहरे समुंदर में फेंक दी थी उसने । फिर अचानक एक दिन उसकी दुनिया बदल गई।
उसे दाल मे तड़का लगाते वक्त उबकाई सी आई। फिर तो कभी किसी परफ्यूम की खुशबू से, कभी मसाले से, कभी चूल्हे पर से उतरती गरम रोटी से दिक्कत होने लगी। अपनी सास प्रमिला जी को बताया, तो खुश होते हुए उन्होंने प्रेगनेंसी टेस्ट करने का सुझाव दिया। अंजली बहुत डर गई थी अजित की नाराजी से। पर एक उम्मीद की किरण भी दिख रही थी। शायद अब अजित मान जाए। टेस्ट का रिजल्ट पॉजिटिव आया । सुखी धरती पर पड़ती पहली फुहार सा सौंधा हो गया था उसका मन। प्रमिला जी भी खुश थी। उन्होंने अजित को कुछ भी ना बताने कि सलाह दी। वे अजित की जिद के बारे में जानती थी।
पर अजित से कहां छुपने वाला था । एक दिन उसने पूछ ही लिया "क्या बात है? आजकल कुछ अजीब सा व्यवहार रही हो।" और फिर उसने अजित का वो रूप देखा जिसके बारे में उसने कभी सोचा नहीं था।
लगभग चीखते हुए उसने कहा था" ये कैसे होने दिया इतना केयरलैस कैसे हो सकती हो तुम ? एक काम करो अपनी मम्मी के यहां चली जाओ। वहां पर रेस्ट भी अच्छे से हो पाएगा।"तुम कल ही डॉक्टर से मिलो और "पहले वाली अंजली बन कर ही वापस आना। "
"पहले वाली अंजली…..पहले वाली अंजली …मन ही मन बुदबुदाते हुए अंजली ने कहा
क्या बन पाऊंगी मैं फिर कभी? "
आंसुओं का सैलाब अपने अंदर समेटे अंजली कमरे से बाहर निकल गई। वो रात बहुत लंबी लग रही थी, नींद तो आंखों से कोसो दूर थी। ख्यालों की दुनियां हमें वहां ले जाती हैं जहां हम खुद कभी पहुंच नहीं सकते। कितनी सुहानी होती है वो दुनियां जहां हर चीज़ हमारे मन के मुताबिक़ होती है। उसने भी सजा ली थी उस रात, एक प्यारी सी दुनिया, जिसमें एक नन्हीं परी अजित का हाथ पकड़े दौड़ रही थी। अजित कभी उसे कंधे पर बिठाते ,कभी गोदी में झुलाते और अंजली दूर खड़ी मुस्कुराती उन्हें देखती । पर कितना दर्द भरा होता है ,वापस हमारी वास्तविकता में लौटना। रात तो बीत गई पर छोड़ गई थी कुछ ऐसे घाव जिनके भरने की उम्मीद अंजली को नहीं थी।
मां के घर पहुंचते ही अंजलि के सब्र का बांध टूट गया। विश्वास और भरोसे की इमारत दरक तो गई ही थी पिछली रात और आंसुओं के सैलाब से वह बह भी गई थी आज ।
मां -पापा ने उसे समझाया -"तुम लोग गलत कर रहे हो। "कई लोग इस ख्वाहिश को पूरा करने के लिए दर- दर भटकते हैं। मंदिर और दरगाह के चक्कर काटते हैं, कई डॉक्टरों से इलाज करवाते हैं ,फिर भी इस खुशी से महरूम रह जाते है।और तुम लोग ईश्वर का दिया हुआ तोहफा ठुकरा रहे हो।वह किसी पर जिम्मेदारी बनकर नहीं आ रहा ,अपनी किस्मत खुद लेकर आ रहा है उसका अपना भाग्य है
अपने रास्ते वो खुद ही बना लेगा तुम लोग क्यों भगवान बनने की कोशिश कर रहे हो?
प्रमिला जी के भी फोन आते रहे उसे समझाने के लिए। पर अंजली का जवाब यही था कि -"अजीत की खुशी के लिए मुझे यह करना होगा। उसकी आंखों में अपने लिए नफरत नहीं देख सकती हुं मै ।" आप मुझे माफ कर दीजिए मां।"
प्यार आदमी को इतना कमजोर बना देता है, इस बात का एहसास उसे हो रहा था।अंजलि फैसला ले चुकी थी ।अजित के बिना जीना या उसकी नफरत के साथ जीने की कल्पना मात्र से सिहर उठी वह। इसलिए उसने अजित को चुना। अंतर्द्वंद से जूझती अंजलि की तंद्रा तब टूटी जब मां ने उसे आवाज दी
" चलो अंजलि कैब आ गई है । मां उसे फैमिली डॉक्टर मृदुला के पास ले जा रही थी।
कैसी हो अंजलि? डॉ मृदुला ने पूछा। अंजली ने अबॉर्शन करवाने के बारे में बताया। पूरा माजरा समझने के बाद उन्होंने कहां-" ठीक है ये अजीत का डिसीजन है, पर तुम क्या चाहती हो?"
"वही जो अजीत चाहते हैं।" अंजलि ने दबी सी आवाज़ में कहा।
डॉक्टर ने एक कैटलॉग अंजलि की तरफ बढ़ा दिया और कहां -"फर्स्ट पिक्चर देख रही हो ना, तुम्हारा बेबी अभी ऐसा दिखता है। एक अंगूठे से भी छोटा। तुमने इसे जिंदगी दी है ।यह सिर्फ तुम्हारे भरोसे ही धीरे -धीरे बढ़ रहा है । उसे पता है कि उसके मां- बाप बाहर उसका बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। इस बात से बेखबर की तुम लोगों ने उसके लिए जिन्दगी को नहीं बल्कि .. इतना कह कर वह चुप हो गई।"
जैसे ही यह दवाइयां मैं तुम्हें दूंगी ,यह पूरी तरह ख़त्म हो जाएगा। और यदि तुम यह प्रेगनेंसी कंटिन्यू करती हो तो (कैटलॉग का अगला पेज दिखाते हुए बोली) अगले तो कुछ दिनों में ही इसकी धड़कन सुनाई देने लगेगी। फिर धीरे -धीरे इसमें बाकी के अंग विकसित होंगे। यह तुम्हारे अंदर खेलेगा,घूमेगा, मुस्कुराएगा । और फिर एक दिन तुम्हारी बांहों में होगा। इतने साल हो गए मुझे इस प्रोफेशन में कई डिलीवरीज करवा चुकी हूं ।पर जब भी किसी जिंदगी को मां के अंदर बढ़ते देखती हूं, तो आज भी रोमांचित हो जाती हूं, और इमोशनल भी। यह डिसीजन सिर्फ अकेले अजीत का नहीं होना चाहिए इसमें तुम्हारी भी बराबर की हिस्सेदारी होना चाहिए? अब तुम सोचो ठंडे दिमाग से कि तुम क्या चाहती हो ?"
अंजलि अपने अंदर एक नए तरह का साहस और उमंग महसूस कर रही थी। अब वह एक मां की तरह सोच रही थी। किसी भी कीमत पर अपने बच्चे को खोना नहीं चाहती थी। खोना तो दूर उसको तकलीफ़ और दर्द में देखने की कल्पना से भी उसका मन दहल गया था।उसे अपने आप से नफरत हो रहीं थीं। ये क्या करने जा रही थी मैं ।तुम्हें कुछ भी नहीं होने देगी तुम्हारी मां । "सही रास्ता दिखाने के लिए थैंक्यू" ।
इतना कह कर डॉ मृदुला के गले लग कर खूब रोई अंजली । अपना डिसीजन उसने अजीत को भी फोन करके बता दिया था और साथ में यह भी की कोई बात नहीं, अगर वह उसका साथ नहीं देना चाहता। वह अपनी जिंदगी जीने के लिए पूरी तरह से आजाद है। वह अब प्रेमिका से मां बन चुकी थी। स्याह रात के बाद नई उम्मीद की आमद से अंजली की दुनिया नई रोशनी से सारोबार हो गई थी।