अनुरंजित दिशाएं (लघुकथा)
अनुरंजित दिशाएं (लघुकथा)
"मां जल्दी आइए , वह देखिए, ये रस्सी पर क्या टंगा है?" उर्वि ने कहा। " वो तो एक घोंसला है।" मां बोली
पर मां एक रस्सी के सहारे कैसे बना लिया ये घोंसला चिड़िया ने ? और इतना सारा सामान कहां से लाई ? क्या इसे घोंसला गिरने का डर नहीं है?
"थोड़ी देर बैठ कर घोंसले को और चिड़िया को गौर से देखो, प्रश्न के उत्तर तुम्हें मिल जाएंगे।" मां ने कहा। चिड़िया तिनका लेकर आई और घोंसले में गूंथ दिया। फिर कुछ देर बाद धागे का टुकड़ा, चिंदी, पत्तियां आदि सामान लाती रही। कभी जल्दी लौट आती और कभी बहुत देर से लौटती। कई बार तिनका गूंथते समय गिर जाता। फिर उठाती फिर उसे घोंसले में लगाती। उर्वि कौतूहल से देखती रही।
कुछ सोच कर दौड़ते हुए स्टडी टेबल पर लौटी, जहां वो एक चित्र अधूरा छोड़ कर गई थी जो सुबह उससे नहीं बन पा रहा था। फिर से बनाने में जुट गई। रेखाएं बनाती, फिर मिटाती , छवि को आकार देती ।
अब चित्र का स्वरूप निखरने लगा था।
