छोटा घर
छोटा घर
मैंने अभी कुछ दिनों पहले ही फ्लैट खरीदा था। अभी मैं और मेरी पत्नी नीलम मिलकर गृहस्थी के लिए आवश्यक सामान जुटा रहे थे।
अभी हम पति-पत्नी के अलावा परिवार में कोई नहीं था। हमारे लिए फ्लैट व सामान दोनों ही पर्याप्त थे।
पर जब मेरे मौसा जी का फोन आया तो मुझे चिंता हो गई। मौसा जी घुमक्कड़ थे। अक्सर अपने ग्रुप के साथ टूर पर रहते थे। उनके ग्रुप में उनके अतिरिक्त उनके चार दोस्त और थे।
चिंता का कारण यह था कि मौसा जी ने बताया कि वह अपने ग्रुप के साथ एक रात के लिए हमारे घर ठहरेंगे। दरअसल वो लोग ट्रेन से भ्रमण पर निकले थे। वह एक ट्रेन से मेरे शहर पहुँचने वाले थे। उसके बाद अगली सुबह उन सबको दूसरी ट्रेन पकड़नी थी। वो लोग रात हमारे घर पर बिताना चाहते थे।
मेहमानों के आने की खुशी थी। पर समस्या यह थी कि अचानक पाँच लोगों के रहने की व्यवस्था करनी थी। ठंड के दिन थे। अतः रज़ाई-गद्दे सब चाहिए था। हमारे घर में केवल हम पति-पत्नी के लिए ही व्यवस्था थी।
मैंने नीलम को बताया तो उसने कहा कि, बाकी तो ठीक है पर सबके सोने की उचित व्यवस्था ही कठिन होगी। पर हम दोनों को कुछ ना कुछ तो करना ही था।
मौसा जी और उनके दोस्तों के आने में सिर्फ एक ही दिन बचा था। मैंने पास के एक टेंट वाले से पाँच लोगों के लिए रज़ाई, गद्दे, चादर और तकिए की व्यवस्था कर ली थी। अब बात थी कि कमरे में इतने बिस्तर कैसे लग पाएंगे।
नीलम ने उसका भी उपाय निकाल लिया। हमने ड्राइंगरुम में जो फर्नीचर था उसमें से कुछ बालकनी में रख दिया। बाकी को दीवार से चिपका कर एक के ऊपर एक ऐसे लगा दिया कि गिरे ना। एक दरी बिछाकर उस पर गद्दे और चादर डाल दी। रज़ाई और तकिए रख दिए।
मौसा जी और उनके दोस्तों को सारी तैयारी बहुत अच्छी लगी।
उस रात हमने देर रात तक बातें की। अगले दिन सब खुशी खुशी चले गए।