Aakanchha Trivedi

Horror Tragedy

5.0  

Aakanchha Trivedi

Horror Tragedy

चौकीदार

चौकीदार

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जी हमारा नाम हैं, मनोहरलाल गुप्ता। हम यहाँ इस सोसाइटी के चौकीदार हैं। परिवार हमारा गांव में रहता है। हम यहाँ अकेले रहते हैं। 10 साल हो गए अब तो गांव से दूर रहते हुए। लोग बहुत भले हैं इस शहर में।

सारे साहब मेमसाहब लोग आते जाते वक्त हालचाल पूछते हैं हमारा। हमने भी कभी किसी को शिकायत का मौका नहीं दिया। सच कहें तो हम खुश हैं यहाँ। बस कभी कभी घर बहुत याद आता है।

बाहर चारपाई पर बैठी हुई अम्मा, रसोई मे खाना बनाती हुई हमारी पत्नी सुमन और पढ़ाई करती हुई हमारी बेटी पिंकी। सबके चहरे याद आते ही आँखें भर जाती हैं। अब आप भी कहेंगे मनोहर, यह कौन सी बातें लेकर बैठ गये। अब हम भी क्या करें साहब, इतनी लम्बी रात, अब जागते हुए भला काटे भी कैसे। तो जो कोई भी मिलता है उससे दुख दर्द बाँट लेते हैं। चलिए आपको एक मजेदार किस्सा सुनाते हैं। पिछले साल यहां एक चोरी हुई थी। हमने पूरी कोशिश कि थी उन चोरों को रोकने की। पर उनके पास तरह तरह के हथियार थे साहब। उनमें से एक ने हम पर गोली चला दी। उसके बाद का तो हमें कुछ याद नहीं साहब। जब आँख खुली तो देखा अम्मा और सुमन ज़ोर ज़ोर से रो रही हैं। थोड़ा और नज़दीक गये तो देखा हुबहु हमारे जैसा दिखने वाला कोई लेटा हुआ है सफेद चादर मे लिपटा हुआ, जैसे वह लाश को लिटाते हैं न बिल्कुल वैसे। हम पूछते रहे सबसे पर हमे कोई सुना नहीं। थोड़ी देर बाद कुछ आदमी आये उसे ले गये और जला दिये। अम्मा, सुमन, पिंकी ...कोई हमें नहीं सुन पा रहा था। तबसे हम यहीं रहते हैं इसी सोसाइटी में और आपके जैसा कोई भला आदमी मिल जाए तो मन हल्का कर लेते हैं। अब हम भी क्या करें साहब, इतनी लम्बी रात, अब जागते हुए भला काटे भी कैसे। अरे साहब आप कहाँ जा रहे हैं? अरे भाग क्यों रहे हैं? संभलकर जाइयेगा इस शहर में लोग बिलकुल भी भले नहीं हैं।


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